आज रक्षाबंधन है. यह त्योहार भाई-बहन के लिए पावन पर्व होता है, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहन को उपहार देता है. हर भाई चाहता है कि वो अपनी बहन को एक स्पेशल गिफ्ट दे. शहर में ऐसे कई भाई-बहन हैं, जिन्होंने एक दूसरे की जीवन की रक्षा कर जिंदगी की डोर कटने से बचायी है और ‘स्नेह के धागे’ का मान रखा है. इन्होंने ब्लड, किडनी, प्लाजमा, बोन मैरो जैसे अनमोल उपहार देकर अपने अटूट प्यार की निशानी को जिंदा रखा है. रक्षाबंधन पर पेश है जूही स्मिता की रिपोर्ट.
वैशाली की रहने वाली आयुषी कुमारी ने अपने छोटे भाई विशाल को बोन मैरो इसी साल मार्च में डोनेट किया है. आयुषी का भाई थैलेसीमिया से पीड़ित था. आयुषी बताती हैं कि वे अपने भाई से बहुत प्यार करती हैं. भाई की तबियत जब खराब हुई तो उन्होंने अपनी मां को रोते हुए देखा. उस वक्त वो रोती हुई बोली थी कि वो अपनी भाई को बचा लेंगी. जब उसके पिता ने बोन मैरो टेस्ट के लिए कहा तो उसने बिना डरे टेस्ट करवाया. टेस्ट रिजल्ट में उसका बोन मैरो मैच हो गया और उसके भाई का ऑपरेशन मार्च में किया गया. आयुषी अपने को इस बार कार्टून वाली राखी बांधेंगी.
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मीठापुर की रहने वाली मानसी जैन बताती हैं कि तीन भाइयों में वह एकलौती बहन हैं. इस साल जब बड़े भाई अमन को कोरोना हुआ तो मानसी ने उन्हें ठीक करने के लिए सारी जिम्मेदारी खुद पर ले ली. मानसी बताती हैं कि भैया से साथ उनकी बॉन्डिंग बेहद खास है. जब उन्हें यह पता चला कि भैया को कोरोना हो गया है, तो उन्होंने सबसे पहले उनका रूम तैयार किया जिसमें उनकी जरूरत की हर चीज मौजूद था. मानसी अपने भाई के लिए सुबह के नाश्ते से लेकर डिनर तक उनके कमरे में पूरे एहतियात के साथ सर्व करती थीं. वह कहती हैं इस बार का राखी खास होगा.
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एजी कॉलोनी की रहने वाली अनिता सिंह बताती हैं कि साल 2016 में उन्हें नयी जिंदगी मिली थी. उनके भाई संजीव कुमार सिंह उनके लिए किसी फरिश्ता से कम नहीं थे. वे अपने आप को काफी खुशकिस्मत मानती हैं कि उनके भाई ने उनकी जान बचाने के लिए अपनी खुद की किडनी उन्हें डोनेट की है. पति, बेटे और भाई ने भी किडनी डोनेशन के लिए टेस्ट करवाया था, पर मेरा भाई डोनर के तौर पर मिला. उन्होंने बिना कोई चांस लिए किडनी देने का मन बनाया. यह बिहार का पहला ऐसा मामला था जहां किसी भाई ने अपनी बहन के लिए किडनी दी थी.
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राजा बाजार के रहने वाले श्रेष्ठ मोदी अपनी दीदी साक्षी से हमेशा प्रेरित होते हैं. उनकी दीदी 2018 से दूसरों की जान बचाने के लिए ब्लड डोनेट करती हैं. वे कहती हैं, जब श्रेष्ठ 18 साल का हुआ तो उसने भी मेरी तरह बल्ड डोनेट कर लोगों की जान बचाने का मन बनाया. जब भी साक्षी ब्लड डोनेट करने जाती हैं, श्रेष्ठ उसके साथ रहते हैं. ये दोनों दूसरे लोगों को भी ब्लड डोनेट करने को लेकर जागरूक करते हैं. अौर ब्लड डोनेट करने के फायदों के बारे में लोगों को बताते हैं. साक्षी अबतक कई बार ब्लड डोनेट कर कई लोगों की जान बचा चुकी हैं.
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POSTED BY: Thakur Shaktilochan