संवाददाता, पटना
नागाबाबा ठाकुरबाड़ी में दस दिवसीय रामलीला में चौथे दिन सीता स्वयंवर की प्रस्तुति हुई. दशरथनंदन श्रीराम भ्राता लक्ष्मण संग जनकपुर पहुंचे थे. सीता स्वयंवर में संसार के एक से बढ़कर एक वीर योद्धा विराजमान थे. राजा जनक ने शिवधनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले वीर से अपनी पुत्री सीता के विवाह की शर्त रखी थी. स्वयंवर में मौजूद सभी योद्धाओं ने बारी-बारी से प्रयास किया, लेकिन वे शिवधनुष को हिला भी न सके. राजा जनक को चिंता सताने लगी. वे इस सोच में पड़ गये कि क्या धरा वीरों से खाली हो गयी है. तभी महर्षि विश्वामित्र ने राम को आदेश दिया. श्रीराम शिवधनुष की ओर बढ़ने लगे. रानी सुनैना समेत राजमहल की स्त्रियां सुकोमल शरीर वाले श्रीराम के लिए प्रार्थना करने लगीं. जानकी सीता ने विघ्नहर्ता भगवान गणेश का ध्यान लगाया. शिवधनुष के पास पहुंचकर श्रीराम ने अयोध्या में विराजमान गुरु वशिष्ठ को मन ही मन प्रणाम किया और शिवधनुष को एक बार में उठा लिया. प्रभु श्रीराम के प्रबल प्रताप से शिवधनुष भंग हो गया. राजमहल रघुकुलनंदन श्रीराम के जयकारे से गूंज उठा.सीता ने वरमाला श्रीराम के गले में डाल दी.
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