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रेमडेसिविर की कालाबाजारी पर कैसे लगे लगाम!, स्वास्थ्य विभाग की नयी तैयारी को चुनौती दे रही निजी अस्पतालों की ये चालाकी…

बिहार में कोरोना के बढ़ते मामले के बीच स्वास्थ्य विभाग लगातार नयी चुनौतियों का सामना कर रहा है. अस्पतालों में बेड की जरुरत हो या फिर ऑक्सीजन की समस्या, हर तरफ स्वास्थ्य विभाग मुश्किलों का सामना कर रही है और रोज नयी तैयारी के साथ इसके समाधान में जुटी है. इस दौरान कोरोना मरीजों के बीच रेमडेसिविर दवा की डिमांड भी तेज हुई और इसकी आपुर्ति को लेकर विपक्ष और सत्तादल भी आमने-सामने हुए. डिमांड बढ़ी तो कालाबाजारी भी चरम पर पहुंच गई. अब स्वास्थ्य विभाग एक तरफ जहां इसके कालाबाजारी को रोकने की तैयारी में जुटी है और नये नियमों के साथ इसे मुहैया करा रही है वहीं कालाबाजारी के धंधे को कुछ प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं.

बिहार में कोरोना के बढ़ते मामले के बीच स्वास्थ्य विभाग लगातार नयी चुनौतियों का सामना कर रहा है. अस्पतालों में बेड की जरुरत हो या फिर ऑक्सीजन की समस्या, हर तरफ स्वास्थ्य विभाग मुश्किलों का सामना कर रही है और रोज नयी तैयारी के साथ इसके समाधान में जुटी है. इस दौरान कोरोना मरीजों के बीच रेमडेसिविर दवा की डिमांड भी तेज हुई और इसकी आपुर्ति को लेकर विपक्ष और सत्तादल भी आमने-सामने हुए. डिमांड बढ़ी तो कालाबाजारी भी चरम पर पहुंच गई. अब स्वास्थ्य विभाग एक तरफ जहां इसके कालाबाजारी को रोकने की तैयारी में जुटी है और नये नियमों के साथ इसे मुहैया करा रही है वहीं कालाबाजारी के धंधे को कुछ प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं.

बिहार में रेमडेसिविर की डिमांड अचानक बढ़ गई. हालात कुछ ऐसे बन गए कि 600 रुपये के करीब की ये दवा पचास हजार से भी अधिक कीमत पर दलालों के जरिये बिकने शुरु हो गए. अभी ऑक्सीजन की समस्या सामने खड़ी ही थी कि रेमडेसिविर ने भी दस्तक दे दी. बिहार में रेमडेसिविर का 14 हजार डोज और मंगवाया गया है. स्वास्थ्य विभाग बेहद सतर्कता के साथ इसे जिलों में सप्लाई करने वाली है जिससे ये जरुरतमंद तक आसानी से पहुंच जाए. लेकिन कालाबाजारी करने वाले अभी भी अलग तरीके से अपना धंधा चला रहे हैं.

राजधानी पटना व भागलपुर सहित कई जिलों से प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कई कोरोना मरीज के परिजनों को रेमडेसिविर लेने में पसीने छूट रहे हैं. एक तरफ जहां स्वास्थ्य विभाग यह दावा करता है कि अब मरीजों को आसानी से ये दवा अपने जिले के सिविल सर्जन कार्यालय से उपलब्ध होगा. जहां उन्हें मरीज का आधार कार्ड व डॉक्टर का लिखा चिट्ठा जिसमें उन्होंने रेमडेसिविर सजेस्ट किया गया हो, वो लाने पर आसानी से ये सरकार के तरफ से दिया जाएगा. लेकिन कई प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर पुर्जे पर लिखकर ये दवा बाहर से लाने कहते हैं. मरीज के परिजनों के आरोप के अनुसार, कई डॉक्टर तो गाइडलाइन्स का हवाला देकर चिट्ठे पर लिखने से मना करते हैं लेकिन बाहर से जुगाड़ करके लाने की सलाह दे देते हैं. मरीज के परिजन जान बचने की आस लेकर औने-पौने कीमत देकर बाहर से ये लेकर आने को मजबूर होते हैं.

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स्वास्थ्य विभाग को इन बातों पर एक्शन लेने की सख्त जरुरत है ताकि किसी भी जरुरतमंद का शोषण ना हो और अगर सरकार के पास यह दवाई उपलब्ध है और उसने जिले को ये दवा मुहैया कराया है तो वो जरुरतमंद मरीज को आसानी से उपलब्ध भी हो जाए. साथ ही रेमडेसिविर के नाम पर कालाबाजारी के पसरे धंधे पर भी लगाम लगाई जा सके. इसपर कड़ी निगरानी की जरुरत है.

By: Thakur Shaktilochan

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