Republic Day 2025: अंग्रेजों का जुल्म देखा ही नहीं, उसे भोगा भी है जगदीश सिंह और फूलमती ने
Republic Day 2025 यह उनकी कहानी है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना जीवन दाव पर लगा दिया. यह उनकी कहानी है जिनके चलते भारत गणतंत्र बना. स्वतंत्रता संग्राम के जो चेहरे आपको याद हैं, वे अकेले ऐसे लोग नहीं हैं, जिन्होंने आजादी में अपना योगदान दिया. इसके पीछे अनगिनत भारतीयों के संघर्ष और बलिदान का इतिहास छिपा है, जो भारत की आजादी को सुरक्षित रखने के लिए जेल गये.
मोनू कुमार मिश्रा,बिहटा.
Republic Day 2025 अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में कई लोगों ने अपनी जान गंवायी, कई जेल गये. जिस उम्र में लोग घर बसाने के सपने देखते हैं, उस उम्र में युवाओं ने सीने पर गोलियां खायीं. कइयों ने खुशी-खुशी देश के नाम अपना पूरे जीवन कुर्बान कर दिया. इनमें बिहार के भी कई लोग शामिल रहे. ऐसे ही लोगों में बिहटा प्रखंड के दिलावरपुर गांव निवासी 99 वर्षीय जगदीश सिंह और उनकी 100 वर्षीय धर्मपत्नी फूलमती देवी का नाम भी शुमार है.
इन्होंने अंग्रेजो का जुल्म देखा ही नहीं, बल्कि भोगा भी है. पुलिस की राइफल के कुंदे और लाठियों के जख्म आज वर्षों बाद भी टिस मार रहे हैं. स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा रहे जगदीश सिंह के पिता का नाम रामनंदन सिंह और मां का नाम सीता देवी था. जगदीश सिंह का जन्म 1924 में हुआ था. 11 वर्ष की उम्र में 1935 में उनकी शादी नत्थूपुर निवासी 12 वर्षीय फूलमती देवी से हुई. शादी के बाद अंग्रेजों का आतंक देख वे अपने चाचा शिव सिंह उर्फ सिपाही सिंह के साथ स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े.
1942 में आंदोनकारियों ने लूट ली थी ट्रेन
जगदीश सिंह बताते हैं कि 1942 में पूर्व मंत्री राम लखन सिंह यादव, अमहारा के पूर्व विधायक श्यामनंदन सिंह उर्फ बाबा, बिहटा के श्रवण सिंह, राघोपुर के राजपाल सिंह, अंगद यादव, देवपूजन सिंह आदि के नेतृत्व में उनके पैतृक आवास कौड़िया-पाली में बैठक हुई थी. इसी बैठक में ट्रेन लूट की योजना बनी. ट्रेन में खाद्य सामग्री और आर्म्स लदे थे. उन्होंने बताया की 1942 में भादो का महीना था.
बिहटा स्टेशन से फिरंगियों के लिए खाद्य सामग्री और हथियार लेकर गुजर रही ट्रेन को रोक लिया गया. इसके बाद हम लोग हजारों बोरा चीनी, आटा, सूजी, दूध, घी आदि लेकर भाग निकले. घटना के तुरंत बाद फिरंगी फौज आ धमकी, लेकिन भगवान का शुक्र था कि उसी समय बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी और लगातर तीन दिनों तक होती रही. मौका मिलने पर हमलोगों ने बिहटा क्षेत्र की तरफ आने वाली सड़क काटकर मार्ग को अवरुद्ध कर दिया था.
पेड़ पर रहकर बिताये दो दिन और दो रात
जगदीश कहते हैं कि हमलोगों को पकड़ने के लिए गोरों ने पूरा क्षेत्र घेर लिया था. इसके बाद गांवों के सभी मर्द अपने-अपने घरों को छोड़ जंगल के तरफ भाग निकले. सभी ने पेड़ पर चढ़ कर दो रात और दो दिन बिताये.
अंग्रेजों ने तोड़ दिया था फूलमती देवी का हाथ
जगदीश सिंह की पत्नी फूलमती देवी बताती हैं कि ट्रेन लूट की घटना के बाद एक दिन मेरे पति को खोजते हुए अंग्रेज गांव आए. उनमें से कुछ मेरे घर में घुसकर मेरे पति के बारे में पूछने लगे. वे गाली गलौज भी कर रहे थे. मैं घर में रखी तलवार को लेकर उनके पीछे दौड़ी. एक फिरंगी ने मुझसे तलवार छीन लिया और राइफल के बट से मेरा हाथ तोड़ दिया.
घर मे किसी मर्द के नहीं होने पर मैने हाथ पर हल्दी का लेप लगाने के बाद बांस की कवांची लगायी और उसे सूती कपड़ा से बांध लिया. जगदीश सिंह के तीन बेटे हैं.बड़े पुत्र सुदर्शन सिंह सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर से रिटायर्ड हैं. उनके बेटे मुकेश कुमार जमीन के कारोबार से जुड़े है. दूसरे बेटे बिजेंद्र सिंह किसान थे. उनके दो बेटे संजय और विवेक दवा कारोबार से जुड़े है. तीसरे बेटा अशोक सिंह वाहन कारोबार से जुड़े है. उनके दो बेटे मन्नू और विकास ठेकेदारी करते हैं.
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