संवाददाता, पटनासाइकिलिंग न सिर्फ सेहत, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी अनुकूल मानी जाती है. इसे चलाना बेहद आसान है. इसके लिए न ड्राइविंग लाइसेंस और न ही फ्यूल की जरूरत होती है. यही वजह है कि इसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने और इसके फायदों के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष तीन जून को विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य लोगों को यह समझाना है कि साइकिल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर है ही, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए भी अनुकूल है. शहरवासी आसपास की दूरी तय करने के लिए साइकिल का इस्तेमाल करें, तो प्रतिदिन सैकड़ों लीटर पेट्रोल की खपत कम होगी, प्रदूषण स्तर भी कम होगा. देश में साइकिल व इ-व्हीकल को भी बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है. वहीं, साइक्लिंग करियर के लिए भी बेहतर ऑप्शन है. इसके साक्षी हैं प्रदेश के कई साइक्लिस्ट.
दरभंगा के जलालुद्दीन ने साइकिलिंग कर लाया मेडल तो मिली सरकारी नौकरी
फरवरी 2024 में 12वीं एशियाई ट्रैक साइक्लिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाले दरभंगा जिले के जलालुद्दीन अंसारी ने 10वीं कक्षा में साइकिल चलाना सीखा. रुचि बढ़ने के बाद अपने जिले में ही आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए सोचा. परंतु, आवेदन खत्म हो जाने से एक साल का इंतजार करना पड़ता है. अगले साल वह 16वें स्थान पर रहे. जिसके बाद हौसला बुलंद हुआ. साल 2015 में मुजफ्फरपुर व पटना में आयोजित स्टेट चैंपियनशिप में भाग लेकर तीसरा व चौथा स्थान हासिल किया. इसके बाद लखनऊ के बाबू केडी सिंह स्टेडियम में 2016 में लगातार 12 घंटों तक साइकिल चलाकर उन्होंने रिकॉर्ड कायम किया था. जबकि, उन्हें सिर्फ 100 मीटर चार घंटे में पूरा करना था. तब तक सामान्य साइकिल ही चलाते थे. खैर अभी जलालुद्दीन के पास 2.40 लाख की साइकिल है. साथ ही ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ के तहत सरकारी नौकरी भी मिल गई है. बता दें कि, 6 साल की उम्र में ट्रेन की चपेट में आने से उन्होंने अपना एक पैर गंवा दिया था. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वे साइक्लिंग के बेहतरीन खिलाड़ी बनकर उभरे.
गया के प्रह्लाद के पास है आठ लाख की साइकिल
गया जिले के नरावट गांव के रहने वाले प्रह्लाद कुमार ने साल 2023 में एशियन ट्रैक साइकलिंग चैंपियनशिप के लिए चयनित हुए थे. बचपन से ही प्रह्लाद को साइकिलिंग में रुचि थी. दसवीं कक्षा में ट्यूशन जाने के लिए घर पर रखे साइकिल से ही उसने इसे चलाना सीखा. इसके बाद वह प्रतियोगिता में भाग लेने लगे. फिर खेलो इंडिया के तहत ट्रायल में सफल होने के बाद पटियाला चले गये. साल 2022 में उन्हें ट्रायल साइकिल दिया गया. परंतु, लगन और मेहनत के बलबूते बिहार सरकार की ओर से करीब आठ लाख की साइकिल दी गई है. प्रह्लाद बताते हैं कि इस उपलब्धि में उनके फुफेरा भाई का अहम योगदान है. उन्होंने ही इसे साइकिलिंग के लिए प्रेरित किया. वह भी साइकिलिंग करते थे लेकिन थोड़ा से चूकने के कारण उनका चयन नहीं हो पाया था.छपरा की सुहानी को 17 वर्ष में ही राष्ट्रीय स्तर पर चार पदक
छपरा जिले की 17 वर्षीय सुहानी कुमारी अपने मेहनत के बूते राष्ट्रीय स्तर पर एक गोल्ड, दो सिल्वर व एक ब्रान्ज जीत चुकी हैं. बता दें कि, महाराष्ट्र के नासिक में नेशनल रूट चैंपियनशिप सब जूनियर गर्ल्स में 30 किलोमीटर रोड रेस इवेंट में गोल्ड मेडल मिला. वहीं, फरवरी 2024 में दिल्ली में आयोजित एशियन ट्रैक साइक्लिंग चैंपियनशिप में ब्रान्ज ली. सुहानी बताती हैं कि वह बचपन में गांव में साइकिल चलाना सीखी थी. बता दें कि जब वह 13 साल की थी तब ही खेलो इंडिया के रांची व दिल्ली ट्रायल में सफल होकर पटियाला गई. वह देश के लिए साइकिल चला रही हैं. उन्होंने कहा कि इससे हम फिट भी रहते हैं. इससे से ना कोई प्रदूषण फैलता है और ना ही इसे चलाने के लिए पेट्रोल की जरूरत होती है.
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