राजद का स्थापना दिवसः लालू-शरद के बीच तनातनी से दिल्ली में पड़ी थी राजद की नींव

राजद सोमवार को अपनी रजत जयंती मना रहा है. स्थापना से लेकर अब तक का सफर काफी दिलचस्प रहा है. राजद का स्थापना राजनीति के दो महारथियों के बीच तनातनी के कारण हुई थी. जो कि आगे चलकर बिहार की राजनीति को दो धाराओं में बांट दिया. लालू प्रसाद पांच जुलाई 1997 को जनता दल में शरद यादव के तिकड़म से तंग आकर अपनी एक अलग नई पार्टी बनाई थी.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 5, 2021 11:36 AM
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पटना. राजद सोमवार को अपनी रजत जयंती मना रहा है. स्थापना से लेकर अब तक का सफर काफी दिलचस्प रहा है. राजद का स्थापना राजनीति के दो महारथियों के बीच तनातनी के कारण हुई थी. जो कि आगे चलकर बिहार की राजनीति को दो धाराओं में बांट दिया. लालू प्रसाद पांच जुलाई 1997 को जनता दल में शरद यादव के तिकड़म से तंग आकर अपनी एक अलग नई पार्टी बनाई थी. यह वह समय था जब केंद्र में जनता दल के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी और प्रधानमंत्री आइके गुजराल थे, लेकिन पार्टी की कमान लालू प्रसाद के पास ही था.

46 में से 22 सांसदों को तोड़कर लालू ने बनायी थी नई पार्टी

जनता दल में संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया चल रही थी. बापू कालदाते राष्ट्रीय चुनाव पदाधिकारी थे. चुनाव करवाने की जिम्मेवारी जगदानंद सिंह और चितरंजन गगन के पास थी. इधर, शरद यादव और रंजन यादव की जोड़ी ने लालू प्रसाद को अध्यक्ष पद से हटाने की तैयारी कर लिया था. लालू प्रसाद को इसकी भनक लगते ही उन्होंने 46 में 21 सांसदों को अपने साथ मिलाकर जनता दल को तोड़कर राजद का गठन कर लिया था.

लालू के एकाधिकार से शरद यादव परेशान थे

राजद के गठन का माहौल 1991 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के साथ ही तैयार होने लगा था. दिग्गज नेता चंद्रशेखर, देवीलाल और मुलायम सिंह ने जनता दल से अपने को अलग कर लिया था. लालू यादव अकेले बचे हुए थे. उनके नेतृत्व में जनता दल गठबंधन को लोकसभा चुनाव में संयुक्त बिहार की 54 में से 48 सीटों पर जीत मिली थी. अन्य राज्यों में पार्टी को कोई खास कामयाबी नहीं मिली थी. इसके कारण लालू केंद्र की राजनीति में सर्वाधिक प्रभावशाली हो गए थे. प्रधानमंत्री पद के लिए देवेगोड़ा और गुजराल की दावेदारी को पक्का करने में लालू सबसे आगे थे. इसी कारण लालू को किंग मेकर भी कहा जाने लगा था.

लालू का पार्टी में बढ़ते एकाधिकार से शरद यादव परेशान थे. रंजन यादव का साथ मिलकर उन्होंने लालू को अध्यक्ष पद से हटाने की रणनीति बनाने लगे. लेकिन, लालू इससे अनजान थे. लालू आश्वस्त थे कि उन्हें फिर से चुन लिया जाएगा. इधर, शरद ने दूसरे प्रदेशों के बड़ी संख्या में अपने वफादारों को कार्यकारिणी में जोड़ लिया था, जिससे लालू को लगने लगा कि उनके लिए आसान नहीं होगा. मजबूरन उन्होंने अपना रास्ता अलग करना जरूरी समझा. इस तरह दिल्ली के बिहार निवास में ही पांच जुलाई 1997 को राजद का जन्म हुआ.

चार सदस्यों ने बनाया था पार्टी का ड्राफ्ट

इसके बाद लालू ने रामचंद्र पूर्वे के नेतृत्व में अपने चार समझदार और वफादार लोगों की ड्राफ्ट कमेटी बनाई. इसमें शकील अहमद खां, चितरंजन गगन और विजय कृष्ण सदस्य थे. पूर्वे और गगन ने मिलकर रात भर में प्रस्ताव बनाया था. नई पार्टी का नाम तय किया-राष्ट्रीय जनता दल. कुछ और नाम भी विचार के लिए रखे गए, लेकिन रामकृष्ण हेगड़े ने राजद को मुफीद माना. लालू ने भी फिर इसपर मुहर लगा दी और लोकसभा में जनता दल के बिहार के 22 में से 21 सदस्य और बिहार विधानसभा के 164 में से 137 सदस्यों ने लालू का साथ दिया.

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