राजनीति के मैदान में भी टकरा चुके हैं तेजस्वी और साधु यादव, सीएम बनने की राह में मामा ने अड़ायी थी टांग!
लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव की शादी पर लालू परिवार में बवाल मचा हुआ है. राबड़ी देवी के भाई साधु यादव अपने भांजे की शादी के खिलाफ होकर सार्वजनिक रुप से बयानबाजी कर गये हैं. वहीं तेजस्वी और साधु के बीच का खटास राजनीति से भी जुड़ा हुआ है.
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव की शादी हुई तो भांजे की शादी को लेकर मामा साधु यादव भड़क गये. साधु यादव ने मीडिया के सामने तेजस्वी और उनकी पत्नी रशेल को लेकर बयानबाजी करते हुए सारी हदें पार कर दी. जिसके बाद लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अपने मामा साधु यादव के खिलाफ खुलकर मैदान में उतर गये हैं. लालू के राइट हैंड माने जाने वाले साधु यादव आज जब अपने ही भांजे तेजस्वी पर इतने आक्रमक हो गये तो जरुरी है राजनीति के भी कुछ अध्याय को पलटना…
2005 में बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ और लालू-राबड़ी राज का अंत हुआ. इसके साथ ही जिस साधु यादव की कभी तूती पूरे बिहार में बोलती थी वो साधू लालू परिवार से भी दूर किये जाने लगे. लालू-राबड़ी शासनकाल में साधु का ही नाम सबसे आगे आता था. राजद सुप्रीमो के दोनों बेटे तब छोटे थे. लेकिन जिस जंगलराज को राजद की हार का कारण माना गया, उसमें सबसे अधिक नाम राबड़ी के भाइयों का ही उछलता रहा. कहा जाता है यही वजह भी बनी साधू से दूरी की. जिस साधु यादव को 2004 में लालू यादव ने गोपालगंज का सांसद बनाया था, 2009 में वो सीट लोजपा को दे दी. साधु यादव ने राजद से खुद को अलग कर लिया.
2020 का विधानसभा चुनाव लालू परिवार के लिए बेहद अहम था. इस बार पूरा दांव लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव पर खेला गया था. हर एक सीट की जीत मायने रखती थी. इसी बीच तेजस्वी के मामा यानी राबड़ी देवी के भाई साधु यादव ने फिर एकबार गोपालगंज की राजनीति में दांव खेला. साधु यादव यहां से बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर गये.
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गोपालगंज सीट महागठबंधन में कांग्रेस के खाते में गई थी. उम्मीदवार आसीफ गफूर के पक्ष में जब तेजस्वी यहां सभा करने आए तो मंच से ये कह दिया था कि दातून के चक्कर में आपलोग पेड़ मत काट लिजिएगा. अगर सीएम बनेंगे तो गोपालगंज को चमका देंगे. तेजस्वी के निशाने पर उनके मामा साधु यादव ही थे. तेजस्वी भी जान रहे थे कि इस बार उनके मामा यहां बड़ा डैमेज कर सकते हैं. यही सच परिणाम में भी दिखा जब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार सुभाष सिंह जीते और दूसरे नंबर पर साधु यादव रहे. जबकि महागठबंधन के उम्मीदवार यहां तीसरे नंबर पर रहे.
बता दें कि लालू परिवार से साधू के रिश्ते बिगड़े तो साधु की राजनीति के सितारे भी गर्दिश में ही रहे. वो लगातार अलग-अलग दलों के साथ अपना भाग्य आजमाते रहे लेकिन राजनीति की माटी पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर सके. राबड़ी देवी के खिलाफ 2014 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतर जाना एक उदाहरण के तौर पर माना जा सकता है कि लालू परिवार से नाराज साधु खेल बिगाड़ने के लिए भी कइ बार उत्सुक दिखे हैं.
Published By: Thakur Shaktilochan