लोकतंत्र को मजबूत करने की कहानी बयां करती है ‘संपूर्ण क्रांति’, गांधी मैदान में लोकनायक जेपी ने दिया था ये नारा
‘जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो. समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो’, पांच जून, 1974 को पटना के गांधी मैदान में यान नारा गूंजा था. उसी दिन लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया था. जिसे आज हम संपूर्ण क्रांति दिवस के रूप में मनाते हैं.
संपूर्ण क्रांति दिवस: पांच जून, 1974 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा दिया था. जेपी की अगुवाइ में विधानसभा और सचिवालय पर कब्जा के लिए जुलूस निकली. पुलिस ने कई जगहों पर लाठी चलायी, आंसू गैस छोड़े. खबर आयी कि जेपी को भी लाठी लगी है. इस खबर से बिहार समेत पूरे देश में सनसनी फैल गयी. आंदोलन का आकार बड़ा होता गया.
इस संदर्भ में पटना के तत्कालीन डीएम वीएस दूबे ने उस दिन की घटना को याद करते हुए बताया, जून की भीषण गर्मी में भी जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर लोग पटना आने को तैयार बैठे थे. पांच-छह दिन पहले से ही लोग पटना आने लगे थे. कोई बस से आया, तो कइयों ने नदी का मार्ग चुना. गंगा में कई ऐसी नावें दिख रही थी, जिसमें चालीस-पचास की संख्या में लोग बैठे हुए होते थे. रेलवे स्टैंड, बस अड्डा यहां तक कि कई लोग अपने परिचितों के यहां डेरा डाले हुए थे.
जेपी ने सिंहासन खाली करो कि जनता आती है…
‘जेपी ने सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नारा दिया था. इस नारे के पीछे जो उद्देश्य काम कर रहा था कि लाखों लोगों की भीड़ विधानसभा व सचिवालय परिसर में जायेगी और वहां जबरन मंत्री और विधायकों से इस्तीफा लिखवायेगी. इस्तीफा नहीं दे रही तत्कालीन सरकार को हटाने का उद्देश्य था. सरकार को जेपी का यह रास्ता गंवारा नहीं था. जिला व पुलिस प्रशासन भीड़ को रोके रखने की तैयारी कर रहा था. उन दिनों आज की तरह तकनीक सपोर्ट नहीं था. मसलन वाट्स एप, कैमरा, मोबाइल फोन का जमाना नहीं था. अखबार भी कम थे.
हमलोगों ने अखबार में विज्ञापन और पंपलेट के माध्यम से यह सूचना जारी करवायी कि पांच जून को पूरे पटना में धारा 144 लागू किया गया है. किसी तरह भीड़ या जत्था के रूप में यहां पहुंचना कानूनी रूप से मान्य नहीं है. इतना ही नहीं हवाइ जहाज और हेलीकॉप्टर से मोकामा से आरा और मसौढ़ी से हाजीपुर यानी पटना और आसपास जहां से भीड़ पहुंचने की संभावना थी, पंपलेट गिराये गये. इसका असर भी हुआ.
18 से 20 हजार लोग उनके साथ जुलूस में चल रहे थे
पांच जून को जब जयप्रकाश नारायण कदमकुंआ स्थित अपने आवास से बाहर निकले, तो कांग्रेस मैदान में करीब दो हजार के आसपास लोग ही जुट पाये. जेपी अपनी जीप पर सवार थे. बारी पथ होते हुए वे मिश्रा पेट्रोल पंप के सामने से गांधी मैदान में प्रवेश किया. उस समय करीब 18 से 20 हजार लोग उनके साथ जुलूस में चल रहे थे. प्रशासन को सख्त हिदायत थी कि जेपी को नहीं रोका जाये. लेकिन,उनके साथ भीड़ नहीं हो, इसका पूरा प्रबंध किया गया था.
दानापुर की तरफ से आने वाली सड़क और गांधी मैदान तक पहुंचने वाली दूसरी सभी सड़क को बैरिकेटिंग कर दिया गया था. मौर्या होटल के पास पहुंच जेपी जीप पर सवार होकर आगे बढ़े. इतने में छज्जू बाग और अन्य गली से कुछ लोग उनके साथ हो लिये. पुलिस ने एक बार यहां भी लाठियां चलायी और आंसू गैस छोड़े. भीड़ को तितर बितर किया गया.
जेपी आगे बढ़ते रहे. डाक बंगला चौराहे के आसपास पहुंचते जेपी के साथ महज तीन-चार सौ लोग ही रह गये. आयकर गोलंबर पहुंचने के करीब मंदिरी नाले की ओर से कुछ लोग भीड़ में शामिल होना चाहते थे. जुलूस में जैसा कि आमतौर पर होता है कुछ मवाली टाइप लोग भी घुस गये थे. जिंदाबाद-मुर्दाबद के नारे लगने शुरू हो गये थे. कुछ पत्थर भी चलाये गये.
‘अर्लियर मैसेज सैड नॉट करेक्ट, किल्ड’…
पुलिस ने यहां लाठिया चलायी और आंसू गैस भी छोड़े. तब तक दोपहर पौने तीन बज रहा था. एक तो गर्मी, उपर से आंसू गैस के गोले से लोग पसीने से तर-बतर हो रहे थे. उन दिनों आयकर गोलंबर के पास बड़े-बड़े कई पेड़ होते थे. जेपी भी वहां जीप से उतर पड़े. उन्होंने अपने सिर पर गमछा बांध रखा था. उनके सुरक्षा कर्मी रूमाल को भिगो कर उनके चेहरे पर रख रहे थे. जेपी उतर कर वृक्ष के नीचे बैठ गये. उसी समय एक समाचर एजेंसी के रिपोर्टर को लगा कि पुलिस की लाठी जेपी को भी लगी और वो गिर पड़े हैं.
उन्होंने यह खबर अपने दफ्तर भिजवा दी कि जेपी पर भी लाठी चली और वो बेहोश होकर गिर पड़े हैं. जब तक मुझे उनके इस खबर चला देने की जानकारी मिली, मैने उन्हें टोका. वह भी सहमत हुए कि जेपी पर लाठी नहीं चली है. उन्होंने तुरत अपने दूसरे साथी को यह मैसेज लिखकर भिजवाया- ‘अर्लियर मैसेज सैड नॉट करेक्ट, किल्ड’.
जेपी की कोई पार्टी नहीं थी, उनका व्यक्तित्व बड़ा था
इधर जेपी पानी मांग रहे थे. उन दिनों आज की तरह ठंडा बोतल लेकर चलने का प्रचलन नहीं था. लेकिन, मैने अपने सुरक्षा गार्ड को अपनी गाड़ी में रखे थर्मस से पानी निकाल कर जेपी को देने को कहा. जेपी ने पानी पिया. भीड़ तितर-बितर हो चली थी. जेपी आगे बढ़े और सर्पेंनटाइन रोड के करीब ही दारोगा प्रसाद राय का आवास था.
वहीं जो लोग उनके साथ थे, वे धरने पर बैठ गये. बाद में जेपी का यह आंदोलन पूरे देश में फैलता गया. वीएस दूबे बताते हैं, जेपी की अपनी कोई पार्टी नहीं थी, उनका व्यक्तित्व बड़ा था. प्रतिष्ठा बड़ी थी,सोच बड़ी थी. कोई उनका कैडर नहीं था. आरएसएस या जनसंघ उनके लिए कैडर का काम कर रहा था. उनकी अपील लोगों पर असर करती थी.
‘आप शांति बनाये रखें और गांधी मैदान चले आयें’…
आंदोलन के साथी रहे श्रीनिवास ने बताया कि पांच जून,1974 की उस ऐतिहासिक रैली, जिसे उस समय तक की पटना की सबसे बड़ी रैली माना गया था, के सिर्फ एक प्रसंग का यहां जिक्र करना चाहूंगा. राजभवन से रैली की वापसी के दौरान एक विधायक (फुलेना राय, पश्चिम चंपारण, जहां से मैं आंदोलन से जुड़ा था) के फ्लैट से रैली पर गोली चली थी. संयोग से तब हमारी टोली वहीं थी. आंदोलनकारियों में भारी उत्तेजना फैल गयी. सभी उस जगह जमा होने लगे.
तभी एक जीप पर लगी माइक से जेपी की अपील सुनाई पड़ी- ‘आप सब चुपचाप शांति बनाये रखते हुए गांधी मैदान चले आयें’. यह सुनकर लोग शांत हो गये. ऐसा था उस जननायक का प्रभाव! यदि उस समय हिंसा भड़क गयी होती, तो पता नहीं आंदोलन का स्वरूप क्या हो जाता! क्या पता उस दिन गांधी मैदान में वह सभा हो पाती भी या नहीं. बहरहाल, सभा हुई.
…और सरकार बदलने का तात्कालिक उद्देश्य हावी होने लगा
गांधी मैदान में जेपी, जिन्हें शायद उसी सभा में पहली बार ”लोकनायक” घोषित किया गया, एक शिक्षक की तरह बोलते रहे. आवाज में कोई उत्तेजना नहीं. मेरे पल्ले बहुत कुछ पड़ा भी नहीं या कहें, उतने धैर्य से सुन ही नहीं सका. बस इतना जान गया कि यह कोई तात्कालिक या कुछ दिनों का मामला नहीं है, कि इसमें लगना है, तो लंबी तैयारी के साथ लगना होगा. शायद जीवन भर. जल्द ही वह आंदोलन बिहार के बाहर फैलने लगा.
उसकी ताप केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार तक पहुंचने लगी. लेकिन इसके साथ यह भी हुआ कि समाज परिवर्तन के लक्ष्य पर सरकार बदलने का तात्कालिक उद्देश्य हावी होने लगा. पांच जून को जेपी ने गांवों से जुड़ने, जनता को जागरूक करने, संगठित करने का दायित्व हमें सौंपा था, मगर हम उस काम में ईमानदारी और गंभीरता से नहीं लग सके. गांव गांव में ”जनता सरकार” गठित करना था. बहुत कम जिलों में बहुत कम गांवों में गठित हो सकी. हमारे जिले में सिर्फ एक गांव- सिरिसिया अड्डा- में, जो प्रशासन की आंखों में चुभता रहा.
वह समग्र बदलाव का आंदोलन बन गया
जेपी का वह (पांच जून का) भाषण बहुप्रचारित है, जिसमें उन्होंने पहली बार संपूर्ण क्रांति का उद्घोष किया था. कहा था- ‘मित्रो, आंदोलन की चार मांगें हैं- भ्रष्टाचार, मंहगाई और बेरोजगारी का निवारण हो और कुशिक्षा को दुरुस्त किया जाये. लेकिन समाज में आमूल परिवर्तन हुए बिना क्या भ्रष्टाचार मिट जाएगा या कम हो जायेगा? मंहगाई और बेरोजगारी मिट जायेगी या कम हो जायेगी? शिक्षा में बुनियादी परिवर्तन हो जायेगा? नहीं. यह संभव नहीं है, जब तक कि सारे समाज में आमूल परिवर्तन न हो.
इन चार मांगों के उत्तर में समाज की सारी समस्याओं का उत्तर है. यह संपूर्ण क्रांति है मित्रो.’ फिर उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति के मुख्य आयाम भी बताये- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैचारिक, शैक्षणिक और नैतिक क्रांति. साथ में यह भी कहा कि डॉ लोहिया ने जिस ‘सप्त क्रांति’ की बात कही थी, यह संपूर्ण क्रांति भी लगभग वही है.
हाल के लोकसभा चुनाव में भी दिखा जेपी आंदोलन का असर: बशिष्ठ नारायण सिंह
जेपी आंदोलन को याद कर इस आंदोलन से नजदीक से जुड़े रहने वाले जदयू के वरिष्ठ नेता बशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि पांच जून के इस आंदाेलन का असर हाल के लोकसभा चुनाव में भी दिखा. सभी राजनीतिक दलों ने गरीबों और समाज के अंतिम पायदान के लोगों के विकास के एजेंडे की बात की. उनका कहना है कि देश के ऐतिहासिक आंदाेलन का यह एक प्रमुख तिथि है.
इस आंदोलन से सामाजिक चेतना जागृत हुई और इसका प्रतिफल यह हुआ कि सभी राजनीतिक दलों ने गरीबों को अपने-अपने एजेंडा में शामिल किया. सभी ने माना कि समाज बंटा हुआ है और हर वर्ग के विकास पर ध्यान दिया गया. इस संबंध में आंदोलन के कई पहलुओं पर प्रभात खबर संवाददाता कृष्ण कुमार ने बशिष्ठ नारायण सिंह से बात की.
बशिष्ठ नारायण सिंह उस दौर को याद करते हुये कहते हैं कि इस आंदोलन में जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने एक बड़ी घोषणा की थी कि यह आंदाेलन व्यवस्था परिवर्तन का है. इससे सभी क्षेत्रों में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक और नैतिक क्षेत्र में समाज का परिवर्तन होगा. उनका उद्देश्य यह था कि एक ऐसी व्यवस्था हो जिसमें नीचे से ऊपर तक विकेंद्रीकरण हो. उनका मानना था कि गांव के प्रतिनिधि ही हर तरह की समस्या के समाधान की योजना बनायें.
साथ ही उनके समाधान का प्रयास करें. हालांकि आंदोलन की घोषणा के कुछ समय के बाद ही जेपी की मृत्यु हो गई. इसके चलते आंदोलन के उद्देश्य में कठिनाइयां पैदा हुईं. छात्र आंदोलन में भी बिखराव आया. राजनीतिक पार्टियों का ध्रुवीकरण हुआ था. उनलोगों ने सत्ता के परिवर्तन में अपनी गतिविधि सीमित कर ली. उसमें छात्रों का कुछ समूह बच गया था. उस समूह ने व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रयास किया, लेकिन उसमें धीमापन आ गया.
आंदोलन का हुआ बड़ा फायदा
बशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि उस आंदोलन का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि राजनीति में समाज के अंतिम आदमी, गरीब, असहाय, पिछड़े और दलित के लिए बात होने लगी. राजनीतिक दलों ने अपने एजेंडा और अपने कार्यक्रमों में समाज के अंतिम पायदान के लोगों को शामिल किया और तरजीह दिया. हालांकि नैतिकता के पहलुओं को राजनीतिक दलों ने एजेंडा में नहीं रखा. इससे आंदोलन का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका, लेकिन समाज में चेतना जरूर बढ़ी.
लोकसभा चुनाव में भी दिखा असर
बशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि इस आंदोलन का एक प्रतिफल यह दिखा है कि अभी के लोकसभा चुनाव में अंतिम आदमी या गरीब लोगों की वकालत सभी राजनीतिक दलों ने की. उन्होंने आंदोलन के बारे में कहा कि संपूर्ण रूप से तो नहीं, लेकिन राजनीति का एजेंडा बदलने के लिए जेपी ने एक चेतना पैदा किया जो आज चल रहा है, लेकिन सबसे बड़ी बात थी कि वे यदि स्वस्थ रहते तो इसकी पूरा रूपरेखा समाज में दिखती. उसमें बिखराव आया. हालांकि अभी भी राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर उस आंदाेलन का असर दिखता है.