पटना. शिक्षा विभाग और बीपीएससी BPSC द्वारा एनसीटीइ के दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं किये जाने से राज्य के बीएड स्पेशल एजुकेशन व डीएलएड स्पेशल एजुकेशन डिग्रीधारी शिक्षक प्राथमिक स्कूल के प्रधान शिक्षक नहीं बन पायेंगे. राज्य के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षक और शिक्षिकाएं 14-15 वर्षों से अधिक समय से कार्यरत हैं, जो बीएड स्पेशल एजुकेशन और डीएलएड स्पेशल एजुकेशन डिग्रीधारी हैं. ऐसे सभी शिक्षक बीपीएससी द्वारा विज्ञापित प्रधान शिक्षक नियुक्ति वाला फॉर्म भरने से वंचित रह जायेंगे.
बीपीएससी द्वारा कुल 40506 प्रधान शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन में बीएड स्पेशल एजुकेशन और डिप्लोमा इन स्पेशल एजुकेशन की डिग्री को अनिवार्य प्रशैक्षणिक योग्यता की सूची में शामिल नहीं किया गया है. जबकि एनसीटीइ वर्ष 2010 और 2011 में ही अधिसूचना जारी कर बीएड स्पेशल एजुकेशन और डिप्लोमा इन स्पेशल एजुकेशन की डिग्रीधारियों को प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति के लिए योग्य करार दिया था. बशर्तें ये दोनों डिग्रियां भारतीय पुनर्वास परिषद् (आरसीआइ) से मान्यता प्राप्त हों.
इसके बाद शिक्षा विभाग ने वर्ष 2012 में बिहार पंचायत प्रारंभिक शिक्षक (नियोजन एवं सेवा शर्त) नियमावली-2012 में स्पेशल एजुकेशन की दोनों डिग्री और डिप्लोमा कोर्स को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की नियुक्ति की अनिवार्य योग्यता में शामिल किया. ऐसे हजारों शिक्षक हैं, जो वर्ष 2007 से ही प्राथमिक स्कूलों में कार्यरत हैं, लेकिन शिक्षा विभाग और बीपीएससी की गड़बड़ी के चलते हजारों शिक्षकों को प्रधान शिक्षक नियुक्ति के लिए फॉर्म भरने से ही वंचित रह जायेंगे.
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डॉ कुमार संजीव, पटना यूनिवर्सिटी के सीनेट सदस्य और समावेशी शिक्षा के एक्सपर्ट ने कहा कि जब नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 की धारा 23 की उपधारा-1 के तहत एनसीटीइ ने अधिसूचना जारी कर बीएड स्पेशल एजुकेशन और डीएड स्पेशल एजुकेशन डिग्री को प्रारंभिक स्कूल (कक्षा 1-8) में शिक्षक बनने की न्यूनतम प्रशैक्षणिक योग्यता अधिसूचित कर दिया, तो वर्ष 2007 से कार्यरत ऐसे सभी शिक्षकों को प्रधान शिक्षक बनने का मौका राज्य सरकार को देना चाहिए.