रामचरितमानस एवं गोस्वामी तुलसीदास पर महावीर मंदिर का सेमिनार आज, विद्यापति भवन में श्रोताओं को खुला निमंत्रण
विद्यापति भवन में ‘सामाजिक सद्भाव के प्रवर्तक गोस्वामी तुलसीदास’ विषयक गोष्ठी की अध्यक्षता पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद करेंगे. मगही एवं हिंदी के प्रख्यात जनवादी साहित्यकार बाबूलाल मधुकर गोष्ठी के पहले वक्ता होंगे.
गोस्वामी तुलसीदास विरचित रामचरितमानस पर समय-समय पर उठायी जाने वाली भ्रांतियों को दूर करने के लिए पटना के महावीर मंदिर की तरफ से आयोजित की जा रही विद्वद् गोष्ठी में श्रोताओं को भी खुला निमंत्रण दिया गया है. महावीर मंदिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि इस सारस्वत आयोजन में श्रोता भी आमंत्रित हैं. इस सेमीनार का आयोजन रविवार को पटना के विद्यापति भवन में किया जा रहा है.
पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश करेंगे अध्यक्षता
विद्यापति भवन में ‘सामाजिक सद्भाव के प्रवर्तक गोस्वामी तुलसीदास’ विषयक गोष्ठी की अध्यक्षता पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस राजेन्द्र प्रसाद करेंगे. मगही एवं हिंदी के प्रख्यात जनवादी साहित्यकार बाबूलाल मधुकर गोष्ठी के पहले वक्ता होंगे. वक्ताओं की सूची में शास्त्रज्ञ आचार्य किशोर कुणाल समेत कई विद्वान शामिल हैं. गोष्ठी के संयोजक और महावीर मंदिर की पत्रिका धर्मायण के संपादक पंडित भवनाथ झा विषय प्रवेश तथा संचालन करेंगे.
रामचरितमानस का समाज पर व्यापक प्रभाव
मंदिर की ओर से कहा गया है कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ सामाजिक सद्भाव का प्रेरक महाकाव्य है. लोकभाषा में इसकी रचना इसलिए की गयी थी ताकि धार्मिक तथा सामाजिक स्तर पर सभी वर्गों के लोगों को एक साथ जोड़ते हुए समाज और राष्ट्र को मजबूत किया जा सके. पिछली शताब्दी में जब भारतीय मजदूरों को मॉरीशस भेजा जा रहा था, तब वे सर्वस्व के रूप में अपने साथ रामचरितमानस की प्रति लेते गये थे. इस ऐतिहासिक घटना से इसका व्यापक सामाजिक प्रभाव आंका जा सकता है.
पक्ष-विपक्ष में बोलेंगे वक्ता
महावीर मंदिर की ओर से जारी सूचना में कहा गया है कि इस सेमिनार में पक्ष व विपक्ष में विद्वानों के विचार आमंत्रित हैं, ताकि लोगों में फैलती जा रही भ्रांतियां दूर हो सकें. सोशल मीडिया व अन्य संचार माध्यमों के जरिये लोगों के बीच जो आधे-अधूरे वक्तव्य आ रहे हैं, वे धर्म और समाज के लिए ठीक नहीं हैं. महावीर मंदिर ने इसे दूर करने के लिए स्वस्थ परंपरा का निर्वाह करते हुए सेमिनार आयोजित करने का कदम उठाया है.