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लंबे संघर्ष से शादाब ने अभिनय के क्षेत्र में बनायी पहचान

संतोष बादल की फिल्म फाइनल मैच से हिंदी सिनेमा में डेब्यू करने वाले शादाब रहबर खान के पास आज काम की लंबी कतार है. लेकिन, उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है.

साक्षात्कार

संतोष बादल की फिल्म फाइनल मैच से हिंदी सिनेमा में डेब्यू करने वाले शादाब रहबर खान के पास आज काम की लंबी कतार है. लेकिन, उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है. वह 12 साल तक कालिदास रंगालय में थिएटर करने के बाद 2007 में मुंबई पहुंचे, जहां उन्होंने कई दिन भूखे रहकर और रातें बस डिपो में बिताकर अपनी मेहनत की कहानी लिखी. शादाब नवादा के निवासी हैं, लेकिन उनका बचपन पटना में बीता. पेश है रविवार को हिमांशु देव से अपकमिंग प्रोजेक्ट व अभिनय पर बातचीत के प्रमुख अंश…

Q. आपकी अभिनय यात्रा कैसे शुरू हुई व पटना से मुंबई का सफर कैसा रहा?

– बचपन से ही कला से प्रेम रहा है. हालांकि, पिता के कहने पर पढ़ाई भी जारी रखा. लेकिन, 10 साल की उम्र से अभिनय कर रहा हूं. 12 साल तक कालीदास रंगालय में थिएटर किया. बिहार के 18 जिलों में जाकर नाटक खेला. तब 60 रुपये प्रतिदिन मिलते थे. इसी बीच साल 2007 में मुंबई गया. लेकिन, काफी संघर्ष करना पड़ा. उन दिनों को याद करता हूं तो काफी इमोशनल हो जाता हूं.

Q. अभिनय में पहला मौका कब और आपको परिवार का सहयोग कितना मिला?

– सबसे पहले मुझे साल 2004 में दूरदर्शन पटना के धारावाहिक ‘चुटकी भर सिंदूर’ में काम मिला. इसके बाद कई सीरियल के लिए काम किया. लेकिन, साल 2014 में पहली फिल्म ‘फाइनल मैच’ मिला. जिसके बाद काम की कमी नहीं रही. इसमें परिवार का पूरा सहयोग रहा. मेरी जिम्मेदारियों को भी मेरे छोटे भाई ने उठाया.

Q. आपकी डायलॉग डिलिवरी व अभिनय दर्शकों को भा जाता है. इसके लिए आप कितना मेहनत करते हैं?

– हंसते हुए.., एक सफल अभिनेता को इससे संतुष्टि भी मिलती है. पैसे से समझौता कर लेता हूं, लेकिन किरदार से नहीं. मैंने बचपन में ही तय कर लिया था कि अभिनेता ही बनूंगा. इसके लिए हमेशा मेहनत की. इस वजह से ही दर्शकों के दिलों में घर बना सका.

Q. अधिकतर फिल्मों में आपको आम आदमी से जुड़ा किरदार के लिए फिल्माया जाता है, ऐसा क्यों?

– मेरा लुक फेयर नहीं है. रिच लुक नहीं है. इससेे मुझे देखते हुए ही ऐसे किरदार के लिए कास्ट कर लिया जाता है. साथ ही, निर्देशक देखते हैं कि सहनशीलता कितनी है. आगे के सीजन व फिल्म के लिए कितना लॉयल रहेगा.

Q. आपने लंबे समय तक थिएटर किया. तब और वर्तमान में क्या अंतर देखते हैं?

– जब हमलोग थिएटर करते थे, तो हॉल में पीछे बैठे लोगों तक आवाज जाती थी. लेकिन, मंच पर माइक व हॉल में स्पीकर लगा होता है. हमलोग स्लम एरिया में जाकर नाटक के जरिये जागरूकता फैलाते थे. अब सोशल मीडिया का दौर है. अब लोग आइना देखकर सीधा अभिनय के लिए जाते हैं. जबकि, जमीन से जुड़े अभिनेता बारीकी देखना चाहते हैं.

Q. नये कलाकारों को क्या संदेश देंगे व आपके अपकमिंग प्रोजेक्ट्स कौन-कौन से है?

– अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार रहें. भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं. मां सरस्वती आपके पास रहेगी तो लक्ष्मी भी आयेगी. साथ ही, चुनौतियां बहुत मिलेंगी. संघर्ष करना होगा व क्रोध से भी बचें. हाल ही में मेरी वेबसीरीज ताजा खबर सीजन 2 आई. बहुत जल्द फिल्म अमार्ग, वेबसीरीज सरपंच साहब, लल्ला, ब्लैक प्रेम, बंदा नवाज आदि आयेंगी. साथ ही, तापसी पन्नू व संजय मिश्रा के साथ भी प्रोजेक्ट चल रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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