Sharda Sinha Death
सुपौल के हुलास गांव से राजीव झा की रिपोर्ट
राघोपुर प्रखंड अंतर्गत हुलास गांव के लोगों को शारदा सिन्हा के नहीं रहने की बात पर विश्वास नहीं हो रहा है. सब यही कहते हैं कि वह छठ के बाद आयेगी और अपने स्वर से अपने नैहर के आंगन को गुलजार कर देंगी. 31 मार्च 2024 को शारदा सिन्हा अपने भाई पद्मनाभ के पुत्र के रिशेप्सन में अपने मायके आयी थी. अंतिम बार गांव वालों ने अपने लाडली को देखा था. उसके बाद वह गांव नहीं आयी. विवाह गीत गाकर उन्होंने वर-बधू को आशीष दिया था. परिजन कहते हैं कि शादी के माहौल में गीत गाते हुए वह इतनी मगन हो गयी कि लगता ही नहीं था कि वह कई साल बाद अपने आंगन में गा रही हैं. अंतिम बार जब वह मायके से जा रही थी, तो मिथिला परंपरा के अनुसार दूब-धान खोंइछा में लेकर गयी थी. उसने भाभियों से कहा था कि खोंदछा भरि कें पठाउ हमरा. बेटी के जत्ते देबै, नैहर तत्ते बेसी उन्नति करत. (खोइंछा भर कर ससुराल भेजें मुझे. बेटी को जितना नैहर से मिलता है, नैहर उतना ही खुशहाल रहता है. )
शारदा बेटीक अंतिम जतरा सं हुलास गाम भेल उदास
जब प्रभात खबर की टीम हुलास गांव पहुंची, तो सभी लोग शांत अपने-अपने घरों में बैठे थे. एक बुजुर्ग ने कहा कि गांव की कोहिनूर नहीं रही. हमने बचपन में उसे गाते हुए सुना था. अब कौन सुनायेगा ससुर की कमाई दिलहे… गाना. विद्यापति के पद उनके जैसा बहुत कम लोग गाते थे. लगता था जैसे वह खुद गीत में उतर गयी हों. बर सुख सार पाओल तुअ तीरे…. सुनते ही लगता है जैसे विद्शपति ने इनके लिए ही लिखा हो. गांव वाले कहते हैं कि वह जब भी गांव आती थी तो हर एक लोगों से मिलती थी. उसकी सरलता ही उसे महान बना दिया. शारदा सिन्हा के मायका के लोग कहते हैं कि शारदा हुलास गांव सहित पूरे बिहार की बेटी थी. मिथिला कोकिला की अंतिम विदाई से नैहर हुलास गांव उदास हो गया है. भतीजा विजय बताते हैं कि दीदी ने उस दिन भी घर में गीत गाया था. अब कौन सुनायेगा गीत.
उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुलास व स्थानीय विलियम्स स्कूल में ही हुआ था. वहीं संगीत की प्रशिक्षण उन्हें महान संगीतज्ञ पंडित रघु झा से मिली, जो उस समय में विलियम्य स्कूल में ही संगीत शिक्षक पद पर पदस्थापित थे. हलांकि इससे पूर्व बचपन में पैतृक गांव हुलास में पंडित रामचन्द्र झा ने उन्हें संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी थी, लेकिन पंडित रघु झा के सान्निध्य ने उन्हे संगीत की ऊंचाई प्रदान की. पंडित युगेश्वर झा तब तबले पर उनका संगत करते थे. तब शिक्षा विभाग के सचिव पद से सेवानृवित्त उनके पिता सुखदेव ठाकुर लोगों के अनुरोध पर स्कूल के प्राचार्य के पद पर आसीन थे.
अब किसके साथ गायेंगे लगनी
उनकी चचेरी भाभी निर्मला ठाकुर ठीक से कुछ बोल नहीं पा रहीं. जब से शारदा सिन्हा के बारे में सुना है, तब से वह जैसे खोई-खोई सी हैं. शुरुआती दिनों में निर्मला भाभी पुराना गीत गाकर शारदा को सिखाती थी. दोनों मिल कर जंतसार (लगनी) गाती थीं. गीत गाते हुए हंसी-मजाक भी खूब होता था. बाद में जब शारदा सिन्हा का कोई गाना हिट होता था, ताे वह खुशी से झूम उठती थीं. दोनों के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आये, लेकिन संबंधों में कटुता नहीं आयी. जब नौ माह पहले शारदा सिन्हा नैहर आयी थी, तो उनका साथ दे रही उनकी भाभी निर्मला की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह गीत गाते-गाते कहती थी कि शारदा तोहर गला एखनहुं ओहिना छौ.
हमर गला तं फंसि जाइए. की खाइ छीही गै. (शारदा, तुम्हारा गला तो अभी भी वैसे ही है. मेरा गला तो फंस जाता है. तुम क्या खाती हो.) इस बात पर शारदा हंस देती थी और कहती थी कि हुलास गांव का पानी पिये हैं हम. गला खराब नहीं होगा कभी. उनके बड़े भाई नृपेंद्र ठाकुर व छोटे भाई पद्मनाभ कहते हैं कि मेरी बहन करोड़ों में एक थी. वह जब पुराने घर में गीत गाती थीं, तो आसपास के लोग जुट जाते थे. उन्हे बचपन से ही गितगाइन (मधुर कंठ से गीत गाने वाली) कहा जाने लगा था. उनके कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था. पुराना खपरैल के घर में वह रियाज किया करती थी. इसी में उनका बचपन बीता था. यह घर अब टूट चुका है. पिछलकी बार जब वह आयी थी, तो अपने पुराने घर को बार-बार निहारती थी और इस दौरान पुरानी बातें खूब हुई थीं.
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मैं फिर आउंगी नैहर, फिर गीत गाउंगी
शारदा सिन्हा के परिजन बताते हैं कि ससुर की कमाई दिहले… उनकी पहली हिट गीत थी. राजश्री प्रोडक्सन के मालिक ताराचन्द बड़जात्या ने जब मौका दिया तो असद भोपाली के लिखे गीत- कहे तो से सैयां… की रिकाडिंग यादगार पल था. दरअसल एचएमवी में सबका उनका ट्रिब्यूट विद्यापति श्रद्धांजलि आयी थी, तो बड़जात्या जी को पसंद आया था. इसमें मुरली मनोहर स्वरूप जी का संगीत व पंडित नरेन्द्र शर्मा की हिंदी कमेंट्री थी, ताकि हिंदी भाषी क्षेत्र में महाकवि विद्यापति को लोग समझ पायें. इसके बाद ही उन्हें मिथिला कोकिला कहा जाने लगा था. गांव वालों का कहना है कि कहे तोसे सजना… गीत के बोल उनके जीवन में चरितार्थ हो गयी. कुछ माह पहले ही उनके पति का निधन हो गया था. इस दुख से वह उबर नहीं पायी और बीमार होकर इस दुनिया से चली गयी. उस गाने के बोल थे-
मोहे लागे प्यारे, सभी रंग तिहारे
दुःख-सुख में हर पल, रहूँ संग तिहारे
दरदवा को बाँटे, उमर लरकइयाँ
पग पग लिये जाऊँ, तोहरी बलइयाँ…
पति के निधन के बाद परिजनों को उन्होंने कहा था कि मैं अकेली रह गयी. उनकी भाभी ने उन्हें काफी दिलासा दिया था, लेकिन उनका दिल टूट चुका था. वह पुरानी बातें (स्मृति) ज्यादा करने लगी थीं. उन्ही के गाये गीत उनके जीवन पर सटीक बैठ गया. उन्होंने सात जनम साथ रहने का वादा निभाया. गांव के लोग कहते हैं कि उन्होंने तो पति को दिया अपना वचन निभा लिया, लेकिन मायके के लोगों को नौ माह पहले दिया अपना वादा कि मैं फिर आउंगी नैहर, फिर गीत गाउंगी… पूरा नहीं किया.