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Sharda Sinha Death: पारिवारिक मूल्यों और संस्कारों की उपज थी शारदा, ससुर का साथ मिलने से बनी लोक गायिका

शारदा सिन्हा सिर्फ एक गायिका नहीं थीं, वह बिहार की समृद्ध संगीत परंपरा के दिल व आत्मा का प्रतिनिधित्व करती थीं. गुजरे हुए पल को याद करते हुए सेवानिवृत्त प्रो. उषा चौधरी बताती हैं कि शारदा को अगर उनके ससुर साथ ना देते, तो वो शायद ही संगीत की दुनिया में इतनी लोकप्रिय हो पातीं.

Sharda Sinha Death लोक संगीत की विरासत को सहेजने, संवारने व उसको नया आयाम देनेवाली प्रसिद्ध लोक गीत गायिका पद्मश्री शारदा सिन्हा ने अपनी विशिष्ट गायन शैली से संगीत की दुनिया में एक अलग पहचान बनायी. भोजपुरी, अवधी के परंपरागत लोकगीतों में नये प्रयोग व शास्त्रीय संगीत के साथ उनका संयोजन कर प्रस्तुति देने का उनका अपना अलहदा अंदाज रहा. समस्तीपुर शहर के एकमात्र महिला कॉलेज में उन्होंने संगीत की शिक्षिका के रूप में 1 जनवरी, 1971 से योगदान देना शुरू किया था.  31 अक्तूबर, 2017 को सेवानिवृत्त हुईं.


महिला कॉलेज की सेवानिवृत्त प्रो निर्मला ठाकुर बताती हैं कि शारदा सिन्हा एक लोकप्रिय भारतीय लोक व शास्त्रीय गायिका थीं, जिनका नाम बिहार की संस्कृति और आकर्षण से जुड़ा हुआ है. उन्होंने अपना जीवन पारंपरिक मैथिली और भोजपुरी गीतों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर दिया था.

प्रो निर्मला बताती हैं कि जब एक बार उनसे पूछा गया कि शास्त्रीय संगीत और दूसरे संगीत में क्या फर्क है, तो उन्होंने सरल भाषा में उत्तर दिया कि योग शास्त्र में कहा जाता है, नाद ब्रह्म; यानी ध्वनि ही ईश्वर है, ध्वनि का इसी समझ से जन्म हुआ है भारतीय शास्त्रीय संगीत का.

पारिवारिक मूल्यों, संस्कारों से उपजती हैं ऐसी लोकगीत गायिका

इसी कॉलेज की सेवानिवृत्त प्रो कल्याणी सिंह ने गुजरे वक्त को याद करते हुए कहा कि शारदा सिन्हा पान की शौकीन थीं. कहती थीं कि पान महज होठों को लाल करने वाला या नशे की हुड़क मिटाने वाली कोई खुराक नहीं है. ये तो एक तहजीब है. अंदाज है. दूसरों के प्रति सम्मान दिखाने वाला हमेशा तैयार एक भेंट है.

महिला कॉलेज की ही सेवानिवृत्त प्रो बिंदा कुमारी कहती हैं कि शारदा सिन्हा की आवाज बिहार की भावना को दर्शाती है और सभी उम्र के लोगों को प्रेरित करती है. जैसे-जैसे वह अपनी स्वास्थ्य चुनौतियों पर काबू पाती थीं, उनका संगीत व विरासत हमें हमेशा हमारी सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने और उसे संरक्षित करने के महत्व की याद दिलाती रहेगी.

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ससुर साथ न देते तो नहीं मिलती इतनी लोकप्रियता
शारदा सिन्हा सिर्फ एक गायिका नहीं थीं, वह बिहार की समृद्ध संगीत परंपरा के दिल व आत्मा का प्रतिनिधित्व करती थीं. गुजरे हुए पल को याद करते हुए सेवानिवृत्त प्रो. उषा चौधरी बताती हैं कि शारदा को अगर उनके ससुर साथ ना देते, तो वो शायद ही संगीत की दुनिया में इतनी लोकप्रिय हो पातीं.

शारदा सिन्हा अक्सर कहा करती थीं कि अगर किसी को भोजपुरी सीखना है तो उसका सबसे आसान रास्ता भोजपुरी में बात करना है. भोजपुरी गाना की चर्चा के दौरान शारदा का कहना था कि भोजपुरी में जो नयी पीढ़ी के गायक आ रहे हैं, उन सभी में बेहतरीन क्षमता है. उन सभी को अपनी इस क्षमता को रचनात्मक दिशा में लगाने की जरूरत है. अगर वह बढ़िया और साफ सुथरा गाना गायेंगे, तो उनकी बेहतर पहचान बन सकती है.

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