पटना सिटी : सौम्य ललाट, सिर पर चांद त्रिपुड चंदन आभा विखेरती भगवान गौरीशंकर मंदिर में यूं तो सालों भर श्रद्धालु जुटते हैं, लेकिन सावन में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है. मंदिर में सालों भर धार्मिक अनुष्ठान व विवाह संपन्न होता है. सावन में रूद्राभिषेक व रामकथा, शिवरात्रि में शिव विवाह का अनुष्ठान होता है. इसके अलावा जन्माष्टमी व अन्य धार्मिक आयोजन यहां होता है. सोमवारी व पूर्णिमा को यहां पर शाम के समय विशेष शृंगार होता है. ऐतिहासिक गौरीशंकर मंदिर 521 वर्ष से भी अधिक प्राचीन मंदिर है.
मंदिर न्यास समिति के सचिव विश्वनाथ चौधरी बताते है कि कभी गंगा नदी मंदिर के पास से बहती थी, गंगा तट पर बने इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना कब हुई, इसका कोई प्रमाण तो नहीं है, उपलब्ध तथ्यों के अनुसार यह स्पष्ट था कि यहां गंगा बहती थी, अब गंगा दूर हो गयी है. सचिव की मानें तो मुगल शासन काल के दौरान मंदिर व शिवलिंग को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा हुई, नुकसान पहुंचाने के लिए जो कील ठोका गया, वह कील आज भी मंदिर में है.
सदस्य राजेंद्र प्रसाद, नवीन सिन्हा ने बताया खरपैल में स्थापित शिव मंदिर की सेवा करने के लिए सोनपुर के गंडक स्थिति हरिहर नाथ मंदिर से एक संत यहां आये थे, संत अपने साथ गऊ को भी लाये थे, गंगा नदी के किनारे मंदिर होने की वजह से गाय प्रतिदिन गंगा में स्नान कर दुग्धाभिषेक करती थी. संत ने जब मंदिर में शरीर त्यागा, तब आसपास के लोगों ने मंदिर के पास ही उनकी समाधि बना दी. जो आज भी मंदिर के पास में विराजमान है. सोमवारी के दिन मंदिर के बाहर सावन सोमवी का मेला लगता है.दूर दरात से भक्त दर्शन पूजन के लिए आते हैं.
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शिव भक्तों का कहना है की मंदिर में आस्था इतनी है कि बचपन से ही वो भोले बाबा के दरबार में आते है. अधिकांश धार्मिक अनुष्ठान व भंडारा का प्रसाद ग्रहण करने के लिए शामिल होते है. सावन माह में परिवार के साथ प्रदेश की सुख समृद्धि की कामना के लिए रूद्राभिषेक का अनुष्ठान परिजन के साथ करते है.