चेटीचंड : सिंधी समाज ने अपने-अपने घरों के आगे पांच-पांच दीप जलाये

चेटीचंड सिंधी समाज ( हिंदू ) द्वारा मनाया जाने वाला अहम त्योहार है, जो हिंदू नववर्ष के प्रथम दिन मनाया जाता है. यह दिन वरुणावतर स्वामी झूलेलाल के प्रकाट्य दिवस और समुद्र पूजा के रूप में मनाया जाता है.

By Prabhat Khabar News Desk | April 10, 2024 8:28 PM

पटना. चेटीचंड सिंधी समाज ( हिंदू ) द्वारा मनाया जाने वाला अहम त्योहार है, जो हिंदू नववर्ष के प्रथम दिन मनाया जाता है. यह दिन वरुणावतर स्वामी झूलेलाल के प्रकाट्य दिवस और समुद्र पूजा के रूप में मनाया जाता है. यह उनके भगवान वरुणावतार की शक्ति का प्रतीक है. विक्रम संवत 1007 को वह पवित्र दिन आया, जब उनका उद्धार करने के लिए भगवान ने नसीरपुर शहर में रतनराय के परिवार में जन्म लिया. इसीलिए भगवान झूलेलाल, जिनको उदेरोलाल के नाम से भी पुकारा जाता है, सिंधी समाज के संरक्षक माने जाते हैं. उनके जन्म या अवतार की खुशी में चैत की द्वितीया को यह पर्व मनाया जाता है. झूलेलाल के जन्म का यही अवसर चेटीचंड का त्योहार है. भगवान झूलेलाल की दो रूपों में पूजा की जाती है. एक पानी में मछली पर सवार, पालथी मारकर बैठे हुए, हाथ में पुस्तक, दाहिने हाथ में माला, ललाट पर तिलक, सफेद मूंछ व दाढ़ी, सिर पर ताज और मोर पंख. दूसरा, घोड़े पर सवार-दाहिने हाथ में नंगी तलवार, बायें हाथ में झंडा, माथे पर टोपी पहनकर वीर के रूप में. इस वरुणावतार को तीन नामों से पुकारा जाता है. झूलेलाल, उदेरोलाल व अमरलाल. बिहार सिंधि एसोसिएशन के वरीय सदस्य रमेश चंद्र तलरेजा, प्रेम तोलानी, कपिल भागचंदानी, अध्यक्ष अशोक लखमानी, सचिव शंभू लाल टहलानी ने बताया कि पूजा के तहत ज्योत जलायी गयी. इससे पहले आरती हुई और महिलाओं ने छाग की परिक्रिया की. शाम सात बजे ज्योत को सिर पर लेकर गंगा किनारे जाकर ज्योत को प्रवाह किया और फिर वापस मंदिर लौट लाये. इसके बाद लोग मत्था टेक कर अपने-अपने घर लौट गये. साथ ही सिंधी समाज के लोगों ने अपने-अपने घरों के आगे पांच-पांच दीप जलाये.

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