संवाददाता, पटना सूबे के सभी 19 नगर निगम सहित 45 नगर निकायों में डंप साइट पर बने कचरों के पहाड़ (लिगेसी वेस्ट) का सर्वे कर उसका अध्ययन होगा. सर्वे के आधार पर लिगेसी वेस्ट के उपचार व उसके निस्तारण को लेकर आवश्यक प्रोसेसिंग इकाइयां लगायी जायेंगी. नगर विकास एवं आवास विभाग ने इसको लेकर तकनीकी रूप से सक्षम और अनुभवी छह एजेंसियों का चयन करते हुए उनको जिम्मेदारी सौंप दी है. इसका उद्देश्य इन डंप साइटों का स्थानीय पर्यावरण पर पड़ रहे असर को समझना और उसे दूर करना है. मात्रा का आकलन कर विभाग को रिपोर्ट करेगी चयनित एजेंसी : मिली जानकारी के मुताबिक चयनित एजेंसी ड्रोन सर्वेक्षण के माध्यम से अपशिष्ट की मात्रा का आकलन कर विभाग को रिपोर्ट करेगी. साथ ही इस कचरे के निबटान को लेकर अपना सुझाव देंगी. डंप साइटों के सर्वेक्षण के उपरांत उपलब्ध कचरे की मात्रा के हिसाब से नगर विकास एवं आवास विभाग उसकी प्रोसेसिंग कर नष्ट किये जाने या पुन: इस्तेमाल को लेकर योजना बनायेगी. डंप साइट से रिसाइकल होने वाली सामग्रियों यथा प्लास्टिक आदि को निकाल कर उसका पुन: इस्तेमाल हो सकेगा, जबकि प्रोसेसिंग के बाद बचे सूखे कचरे का इस्तेमाल खाद बनाने के साथ ही गड्ढे वाले क्षेत्रों को भरने के लिए किया जा सकेगा. पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक डंप साइटों पर वर्षों से फेंके जा रहे कचरों में जैविक, औद्योगिक और नष्ट न होने वाली सामग्रियों का मिश्रण होता है. यह पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ाता है. लैंडफिल स्थल मिट्टी और भूजल के प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार होते हैं. संग्रहित कचरे में सीसा और पारा जैसे भारी पदार्थ आसपास की मिट्टी और पानी में फैल जाता है. वहीं, लैंडफिल साइटों से निकलने वाले कचरे से उत्पन्न मीथेन कभी-कभी विस्फोट और आग का कारण बन जाता है. यह पक्षियों के प्रवास पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है. लैंडफिल साइटों से भोजन प्राप्त करते वाले पक्षी प्लास्टिक, एल्युमिनियम, जिप्सम और अन्य सामग्री निगल जाते हैं, जो घातक साबित हो सकते हैं.
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