Social Media: सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट, शेयर की प्रतिस्पर्धा युवाओं में बढ़ा रही ‘पियर प्रेशर’
Social Media: यंगस्टर्स के बीच बढ़ता सेल्फी और सोशल मीडिया पर फोटो, कंटेंट व वीडियो पोस्ट करने का क्रेज मुसीबत बनता जा रहा है. यह क्रेज एक बीमारी का रूप लेता जा रहा है. इसमें सर्वाधिक संख्या स्कूल और कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स की है.
Social Media: यंगस्टर्स के बीच बढ़ता सेल्फी और सोशल मीडिया पर फोटो, कंटेंट व वीडियो पोस्ट करने का क्रेज मुसीबत बनता जा रहा है. यह क्रेज एक बीमारी का रूप लेता जा रहा है. इसमें सर्वाधिक संख्या स्कूल और कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट्स की है. सोशल मीडिया की चकाचौंध यूथ पर कूल और ट्रेंडी दिखने का नकारात्मक दबाव पैदा कर रही है. इसी कारण से वह कम उम्र में ही गलत कदम उठा रहे हैं.
आज के युवा अपनी असल दुनिया के साथ-साथ एक वर्चुअल वर्ल्ड में भी जी रहे होते हैं. जहां, उन्हें लगता है कि अगर हम लोगों से हटकर नहीं दिखेंगे तो हमारे कम दोस्त बनेंगे. लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे. इस सब कारणों से वे एक वर्चुअल दुनिया में खोते जा रहे हैं और असली दुनिया से दूर हो रहे हैं. यही वजह है कि आजकल ‘पियर प्रेशर’ के रोजाना 4-5 मामले सामने आ रहे हैं
145 मिनट से अधिक सोशल मीडिया पर युवा बिता रहे समय
इंटरनेट के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल के बीच सोशल मीडिया की जरूरत महसूस की गयी और लोगों को आपस में जोड़ने के लिए फेसबुक, ट्विटर, वाट्स एप, यूट्यूब और इंस्टाग्राम को डेवलप किया गया, ताकि एक दूसरे के साथ अपने अनुभव साझा कर सकें, एक दूसरे की भावनाओं को समझ सकें लेकिन एक रिसर्च में दावा किया गया है कि दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी इस समय सोशल मीडिया में एक्टिव है. ज्यादातर लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि पिछले साल की तुलना में इस साल 3.7 प्रतिशत लोगों की संख्या सोशल मीडिया पर बढ़ी है. औसतन एक व्यक्ति प्रतिदिन सोशल मीडिया पर 145 मिनट बिताता रहा है
छोटी उम्र में हो रहे एंग्जाइटी के शिकार
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी की रिपोर्ट्स के अनुसार जिन बच्चों को सोशल मीडिया का दबाव महसूस होता है, उनमें छोटी उम्र से ही एंग्जायटी, डिप्रेशन देखा जा रहा है. इन बच्चों में काफी नकारात्मकता भी रहती है. बच्चों को हमेशा यह दबाव रहता है कि हमें दूसरों से बेहतर दिखना है. इसी कारण वे खुद को खुद के किरदार से काफी अलग दिखाते हैं.सोशल मीडिया का यह दिखावा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. बच्चों को महसूस होता है कि वे जितना अधिक पैसा खर्च करेंगे, उतनी ही ज्यादा ट्रेंडी नजर आयेंगे. युवा और बच्चे अपने दोस्तों को दबाव में आकर गलत कदम उठा रहे हैं. यह उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी खराब कर रहा है.
कम लाइक्स व कमेंट्स की वजह बढ़ रही निराशा
कोरोना के बाद से हम इंटरनेट और सोशल मीडिया से ज्यादा जुड़ गये हैं. यही वजह है कि व्हाट्स एप स्टेटस, फेसबुक रील्स, स्टोरी, इंस्टाग्राम पर रील, स्टोरी ज्यादा अपलोड करते हैं. एक बार आपने कुछ अपलोड कर दिया तो बस पूरा समय आप इसके नोटिफिकेशन चेक करते रहते हैं. किसने लाइक किया किसने कमेंट किया कितने व्यूज हुए और यह सिलसिला घंटों तक जारी था. जहां आपके अपेक्षा के विपरीत परिणाम आते हैं और आप निराशा से भर जाते हैं. धीरे-धीरे यह आपको लोगों से दूर कर अकेलेपन की ओर ले जाता है जिसकी वजह से आप एंग्जाइटी और डिप्रेशन में चले जाते हैं.
काउंसलर ने कहा- सेल्फ डेवलपमेंट पर फोकस करना जरूरी
आइजीआइएमएस की मेडिकल सोशल सर्विस ऑफिसर डॉ शुभम श्री बताती हैं कि इस तरह के मामले पिछले कुछ समय से बढ़े हैं. इसका मुख्य कारण है कि हम कम उम्र में ही बच्चों को फोन दे देते हैं. साथ ही सोशल मीडिया का क्रेज आपको अपनी ओर आकर्षित करता है.15-30 साल के उम्र के युवाओं में एक साथ कई सारी भावनाएं चलती रहती हैं जिसका कारण इनमैच्योरिटी भी होता है. इस समय एक अलग तरह की दुनिया होती है, जिसमें वह खुद को प्रूव करने के लिए हर हद पार करते हैं. जब इस तरह के मामले आते हैं तो हम उनकी काउंसेलिंग करते हैं. जहां उन्हें बिहेवियर मॉडिफिकेशन थेरेपी दी जाती है.
थेरेपी के दौरान हम युवाओं को सोशल मीडिया पर फिक्स समय बिताने के लिए सलाह देते हैं. उनके सेल्फ डेवलपमेंट पर काम करने को कहते हैं जिनमें उनके पसंद की चीजों को शामिल करते हैं. इनमें बुक रीडिंग, गार्डनिंग, म्यूजिक, डांस आदि है. मन को नकारात्मक भावनाओं से बचाने के लिए क्रिएटिव और शॉर्ट टर्म कोर्स करने को कहते हैं क्योंकि हर व्यक्ति में कोई न कोई प्रतिभा और रुचि जरूर होती है. हम उन्हें इस पर फोकस करने को कहते हैं.
केस 1- बच्चे की काउंसेलिंग के लिए आये अभिभावक बताते हैं कि उनका बेटा ग्रेजुएशन में हैं. फर्स्ट इयर में अच्छा रिजल्ट किया लेकिन अब उसका मन बस फोन और सोशल मीडिया पर रहता है. जिद कर महंगी बाइक ली है. अब बस इसपर रील्स बनाता है. स्टोरी बनाता है. लाइक न मिलने पर रूम से बाहर नहीं आता है. सेकंड इयर में कम मार्क्स मिले हैं. पूछने पर नाराज होकर रूम बंद कर देता था. पहली बार काउंसेलिंग के लिए बेटे को लेकर आये हैं.
केस 2- बबीता(काल्पनिक नाम) 19 साल की बताती हैं कि पिछले एक महीने से उनके बिहेवियर थेरेपी चल रही है. कुछ महीने पहले उन्हें सोशल मीडिया के ऐसी लत थी कि हर वक्त फोटो और स्टोरी अपलोड करती थी. इसके लिए पापा से जिद कर मोबाइल लिया और बस सोशल मीडिया पर हर दिन रील्स, स्टोरी डालती. लाइक्स मिलने पर खुशी और कम होने पर खाना ना खाना, चिड़चिड़ापन रहता था. पापा मुझे काउंसेलर के पास लेकर आये और थेरेपी चल रही है. सोशल मीडिया बस तय समय पर यूज करती हूं.
किस प्लेटफार्म पर कितने लाख भारतीय
रैंक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ता
1 फेसबुक 3,070
2 यूट्यूब 2,500
3 वाट्स एप 2,000
4 इंस्टाग्राम 2,000
7 फेसबुक 977
8 टेलीग्राम 900
स्रोत: डेटा रिपोर्टल 2024 (उपयोगर्ता की संख्या लाखों में)