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खुलासा: वाट्सएप ग्रुप पर कैंडिडेट से होती थी डीलिंग, सरकारी नौकरी के लिए लेते थे 25 लाख रुपये

गिरोह का एक अपना वाट्सएप ग्रुप था और इसी से कैंडिडेट आते थे और बातचीत होती थी. गिरोह के सभी सदस्यों के खिलाफ दानापुर थाने में मामला दर्ज किया गया है.

पटना पुलिस ने ऑनलाइन एग्जाम सेंटर के जिस सॉल्वर गिरोह का भंडाफोड़ किया है, विशेष टीम ने जब जांच की तो कई ऐसे चौंकाने वाले कारनामे सामने आये कि एसएसपी भी दंग रह गये. यह गिरोह न सिर्फ परीक्षा को सॉल्व करते थे, बल्कि प्राइवेट कोचिंग संस्थानों के द्वारा लिये गये अपने एग्जाम को भी यह गिरोह मैनेज करता था. इसके लिए ये प्रति कैंडिडेट से डेढ़ से दो लाख रुपये लेते थे. वहीं सरकारी नौकरी के लिए 20 से 25 लाख रुपये तक की डीिलंग होती थी.

इस पूरे गिरोह के नेटवर्क को तकनीकी रूप से हैंडल कराने के लिए कोलकाता से टीसीएस के आइटी हेड को अधिक सैलरी पर बिहार बुलवाया गया था और उसे अपने इस गिरोह का आइटी सेल का इंचार्ज बना रखा था. इन सभी के बैंक अकाउंट को पुलिस ने खंगालना शुरू कर दिया है. गिरोह का एक अपना वाट्सएप ग्रुप था और इसी से कैंडिडेट आते थे और बातचीत होती थी. गिरोह के सभी सदस्यों के खिलाफ दानापुर थाने में मामला दर्ज किया गया है.

अतुल वत्स ही है इस गिरोह का किंग पिन

मिली जानकारी के अनुसार इस पूरे गिरोह का अतुल वत्स ही किंग पिन है, लेकिन उसका नाम सबके सामने उजागर हो चुका था, जिसके बाद इन लोगों ने अपना खुद का गिरोह बनाया और तैयार कर लिया ऑनलाइन एग्जाम सेंटर में फर्जीवाड़े का बड़ा नेटवर्क. यही नहीं इसके अलावे यूपी के लखनऊ, आगरा और मध्य प्रदेश के ग्वालियर समेत अन्य राज्यों के ऑनलाइन सेंटरों से साठ-गांठ की बातें भी सामने आयी हैं.

इंजीनियरिंग, मेडिकल समेत बड़ी परीक्षाओं में भी सेटिंग

गिरोह ने सबसे बड़े पैमाने पर आरआरबी एनटीपीसी की परीक्षा में सेटिंग की थी. एनटीपीसी का रिजल्ट रद्द होने के बाद फिर से बड़ी संख्या में कैंडिडेट को पास कराने का जिम्मा ले रखा था. प्रत्येक कैंडिडेट से 60-40 के रेशियो से पैसा लेकर काम किया जाता था. 40 प्रतिशत रुपये परीक्षा से पहले और दसवीं, बारहवीं और ग्रेजुएशन की मूल प्रति ले लेते थे. इसके बाद जब सर्टिफिकेट का वैरिफिकेशन हो जाने के बाद भी 60 प्रतिशत पैसा लेते थे. यह गिरोह इंजीनियरिंग, मेडिकल समेत अन्य बड़े परीक्षाओं की भी सेटिंग कराते थे. यही नहीं विदेशों में भी नौकरी लगाने के नाम पर लोगों से पैसा लेते थे.

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