Sonepur Mela : सोनपुर मेले में बिकता था अफगान से ढाका तक का सामान, यहां रखी गई थी किसान सभा की नींव
अंग्रेजों के समय कलकत्ते की दुकान में लंदन की जो बेहतरीन डिजाइन की वस्तुओं की बिक्री होती थी. सोनपुर मेले में उसे बेचने के लिए लाया जाता था. ‛हार्ट ब्रदर्स’ जो एक बहुत अच्छा घोड़ा व्यापारी थे, विभिन्न नस्लों के घोड़ों को सोनपुर मेले में लाते थे.
कभी अपनी भव्यता को लेकर प्रसिद्ध सोनपुर मेला अब छोटे से दायरे में सिमट कर रह गया है. अब ना पशु मेले की वैसी रौनक रह गयी है और ना ही प्रशासन के आला अधिकारियों का जमावड़ा होता है. मगर, मेले का इतिहास काफी पुराना है. इसके इतिहास को लेकर कई दावे किये जाते रहे हैं. उनमें से एक पुराना दावा और प्रमाणिक दावा हरिहर नाथ मंदिर के चबुतरे पर लगा शिलापट्ट के आधार पर है. शिलापट्ट 1306 ई0 का है. उसमें कहा गया है कि हरिहर नाथ मंदिर सनातन से है और यहां कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव होता है.
716 वर्ष का हो गया सोनपुर मेला
सोनपुर का ये मेला अब 716 वर्ष पुराना हो गया है. इतिहास के जानकार स्थानीय निवासी और बिहार स्टेट एक्स सर्विसेज लिक, सोनपुर चैप्टर के प्रेसिडेंट 70 वर्षीय एसपी सिंह बताते हैं कि पुराने समय में मेले में सुई से लेकर दैनिक उपयोग में सभी वस्तुएं मिलती थीं. अंग्रेजी काल में इसे पशु मेला बना दिया गया था.
1871 में लगा था लॉर्ड मेयो ने लगाया था सोनपुर दरबार
मेले का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ा है. सन 1857 की क्रांति दबने के बाद भारत के वायसराय लार्ड मेयो ने वर्ष 1871 में यहां दरबार लगाया था. उसके दरबार में नेपाल के तत्कालीन राजा राणा जंग बहादुर का महिमा मंडन किया गया था. क्योंकि उन्होंने 1857 की क्रांति को दबाने में अंग्रेजों की मदद की थी. इससे पहले वर्ष 1846 में सोनपुर में ही हरिहर क्षेत्र रिजोल्युशन पास किया गया था. इसमें पीर अली, वीर कुंअर से लेकर ख्वाजा अब्बास आदि लोग थे. वहीं लोगों में जनश्रुतियां हैं कि चन्द्रगुप्त मौर्य, अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुंवर सिंह ने भी से यहां हाथियों की खरीद की थी. लाेग वीर शिवाजी द्वारा भी यहां से घोड़ा खरीदने की बात करते हैं. हालांकि इन बातों का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है.
किसान सभा की पड़ी नींव
1908 में सोनपुर मेले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक खान बहादुर नवाब सरफराज हुसैन की अध्यक्षता में हुई. इस बैठक में बिहार कांग्रेस की स्थापना की गई थी. सोनपुर मेला के प्रांगण में ही 1929 में स्वामी सहजानंद सरस्वती की अध्यक्षता में ‛बिहार राज्य किसान सभा’ की नींव पड़ी थी.
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अफगान से लेकर ढाका तक के सामान की होती थी बिक्री
अंग्रेजों के समय कलकत्ते की दुकान में लंदन की जो बेहतरीन डिजाइन की वस्तुओं की बिक्री होती थी. सोनपुर मेले में उसे बेचने के लिए लाया जाता था. ‛हार्ट ब्रदर्स’ जो एक बहुत अच्छा घोड़ा व्यापारी थे, विभिन्न नस्लों के घोड़ों को सोनपुर मेले में लाता. नेपाल और तिब्बत से छोटे-छोटे कुत्ते, चमड़े और जंगली वस्तुएं आया करतीं. ‛मिंडेन विल्सन’ अपने इतिहास लेखन में लिखते हैं कि ‘टाट और तंबुओं से बने दुकानों में न सिर्फ दिल्ली, कश्मीर और कानपुर के व्यापारियों ने अपनी दुकान लगाई थी, बल्कि अफगानिस्तान का माल भी बेचा जा रहा था. ढाका के मशहूर जुलाहों की बेशकीमती सिल्क की वस्तुएं भी बिक्री भी यहां होती थीं.