– सरकारी स्तर पर आइजीआइएमएस में प्रदेश की पहली स्पाइग्लास एंडोस्कोपी की सुविधा बहाल
आइजीआइएमएस में अब पित्त और पैंक्रियाज नली में होने वाली बीमारी का स्पाइग्लास एंडोस्कोपी के जरिये कंप्यूटर पर देखकर बीमारी की पहचान व इलाज आसान हो गया है. अभी तक पित्त की नली में एंडोस्कोपी नहीं डाली जा सकी थी और इसी वजह से बीमारी को पकड़ने में समय लगता था. लेकिन अब आइजीआइएमएस अस्पताल के गेस्ट्रोएंट्रोलोजी विभाग में स्पाइग्लास एंडोस्कोपी के जरिये पित्त की नली के अंदर एंडोस्कोपी डालकर न केवल 15 एमएस से बड़े स्टोन बल्कि सैंपल लेकर बायोप्सी भी आसान हो गयी है. डॉक्टरों के अनुसार अगर इलाज नहीं किया जाता है, तो मरीजों में स्टोन, कैंसर के कारण आने वाली रुकावटों से पीलिया भी हो सकता है.
मात्र पांच से 10 हजार रुपये में होगा इलाजसंस्थान के गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के अध्यक्ष व मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल ने बताया कि स्पाइग्लास एंडोस्कोपी के जरिये मात्र पांच से 10 हजार रुपये में इलाज होगा. जबकि निजी अस्पताल में 50 से 80 हजार रुपये में इलाज किया जाता है. बड़ी बात यह है कि पित्त की नली की जांच के दौरान यदि डॉक्टर को लगता है कि नली में रुकावट करने वाला अपशिष्ट कैंसर हो सकता है, तो बायोप्सी के लिए नमूना भी लिया जा सकता है. उन्होंने बताया कि पित्त की नली नाभि के ऊपरी हिस्से में लीवर और भोजन नली के बीच स्थित होती है. इसका काम पाचन दुरुस्त रखने वाले बाइल जूस को बनाकर स्त्रावित करना होता है. यह 3 से 6 सेंटीमीटर लंबी और 6 एमएम मोटी होती है. डॉक्टरों के अनुसार, 10 फीसदी मामलों में बीमारी पकड़ में नहीं आती. ऐसे में स्पाइग्लास एंडोस्कोपी काफी उपयोगी साबित होगी.
आइजीआइएमएस में लिवर ट्रांसप्लांट के लिए आयी थी यह तकनीकसंस्थान के डॉक्टरों के मुताबिक आइजीआइएमएस में लिवर ट्रांसप्लांट के लिए स्पाइग्लास एंडोस्कोपी तकनीक मंगायी थी. इसका उपयोग लिवर ट्रांसप्लांट के समय जांच व इलाज के साथ-साथ अब पित्त व पैंक्रियाज नली से स्टोन निकालने के काम में भी किया जा रहा है. डॉ मनीष के अनुसार, पहले मुंह के रास्ते में दूरबीन को छोटी आंत के ऊपरी हिस्से जहां पर पित्त की नली व पैंक्रियाज नली खुलती है, वहां पर पहुंचाया जाता है. उसके बाद में पित्त की नली के अंदर केथेटर्स को प्रवेश कराकर पित्त के रास्ते को काटकर पहले चौड़ा किया जाता है. फिर स्पाइग्लास को दूरबीन के अंदर से पित्त के रास्ते में प्रवेश कराया जाता है. इससे पित्त की नली में जमा स्टोन (पथरी) को देखकर हाइड्रोलिक तरंगों के जरिए स्टोन के टुकड़े कर पानी के प्रवाह के साथ बाहर निकाल लिया जाता है. इससे 15 एमएस से बड़े स्टोन को निकालना भी आसान है.
कोट : स्टोन की पहचान कर बाहर निकालना आसानस्पाइग्लास एंडोस्कोपी से मरीजों के पित्त की नली में एंडोस्कोपी से जांच की जा सकेगी. इस तकनीक से जांच और इलाज प्रारंभ किया गया है. इसके लिए मात्र पांच से 10 हजार रुपये ही लिये जा रहे हैं. मशीन में लगे कैमरे की मदद से पित्त व पैंक्रियाज नली से स्टोन की पहचान कर बाहर निकालना आसान हो गया है. इससे बीमारी को भी पकड़ना आसान हो गया है.
डॉ मनीष मंडल, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, आइजीआइएमएस.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है