कभी बुद्ध के प्रतीक के रूप में स्तूप पूजे जाते थे

बिहार संग्रहालय और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के पुरातत्व निदेशालय की ओर से दक्षिण एशियायी पुरातत्त्व समिति(सोसा) का आठवां अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन आयोजित किया जा रहा है. महासम्मेलन के दूसरे दिन लगभग 12 सत्रों में लगभग 80 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये. वक्ताओं की ओर से प्राचीन कालीन पुरावशेषों के खोज से संबंधित लेख प्रस्तुत किये गये, जिसमें पाषाणकालीन विभिन्न कालक्रमों यथा निम्न पुरापाषाणकाल, मध्य पुरापाषणकाल और उच्च पुरापाषाणकाल के दौरान उस काल की विस्तृत जानकारी दी गयी.

By Prabhat Khabar News Desk | April 5, 2024 11:36 PM

– बिहार संग्रहालय में महासम्मेलन. वक्ताओं ने पाषाणकाल, बौद्ध धर्म, मंदिर व स्तूपों पर प्रस्तुति किया शोध पत्र

– मंदिरों के वास्तु विन्यास, उत्पति और विकास पर हुई चर्चा

लाइफ रिपोर्टर@पटना

बिहार संग्रहालय और कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के पुरातत्व निदेशालय की ओर से दक्षिण एशियायी पुरातत्त्व समिति(सोसा) का आठवां अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन आयोजित किया जा रहा है. महासम्मेलन के दूसरे दिन लगभग 12 सत्रों में लगभग 80 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये. वक्ताओं की ओर से प्राचीन कालीन पुरावशेषों के खोज से संबंधित लेख प्रस्तुत किये गये, जिसमें पाषाणकालीन विभिन्न कालक्रमों यथा निम्न पुरापाषाणकाल, मध्य पुरापाषणकाल और उच्च पुरापाषाणकाल के दौरान उस काल की विस्तृत जानकारी दी गयी. दक्षिण भारत से कर्नाटक और तमिलनाडु के आर्कियोलॉजिस्ट, शोधार्थियों की ओर से वहां के महापाषाणिक पुरास्थल के बारे में विस्तृत जानकारी दी गयी.

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पीपीटी के माध्यम से तथ्यों को किया साझा

प्रागैतिहाासिक और ऐतिहासिकालीन अनेक शोध पत्रों को पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया. इसमें वक्ताओं ने मंदिरों के वास्तु विन्यास, उनकी उत्पति और विकास के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी. उन्होंने बौद्ध धर्म के आरंभिक चरण में हीनयान प्रभाव के कारण बुद्व की मूर्तियों का निर्माण नहीं किया जाता है. बुद्ध के प्रतीक के रूप में स्तूप पूजे जाते थे. पूजित स्तूपों को ही चैत्य कहा जाता था, जहां ध्यान साधना और वंदना होती थी. उस समय जहां भी चैत्य का निर्माण किया जाता था वहां पर बौद्ध तीर्थयात्रियों के आवासन हेतु बौद्ध विहार का निर्माण किया जाता रहा. इस विषय में विद्वानों ने अपने–अपने शोध पत्रों द्वारा विस्तार से प्रकाश डाला. बाद के वषोंर् में जब महायान और बज्रयान का प्रभाव पड़ा, तब भगवान बुद्ध की मूर्ति का निर्माण किया गया और उसका प्रचार–प्रसार 12 शताब्दी के अंत तक होता रहा.

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इन वक्ताओं ने लिया भाग

शोध पत्र प्रस्तुत करने वालों में प्रो ओएन सिंह, डॉ आशोक कुमार सिंह, प्रो अमरजीवा लोचन, डॉ मनीष राय, प्रो शिवांगी रेड्डी, डॉ अर्पिता चटर्जी, प्रो डीपी. तिवारी, डॉ अरूण राज, डॉ अजीत कुमार प्रसाद, डॉ मुमताज याटू, जोसेफ मैन्युअल, जेरेमी पेटरीशिया, किम योंगजून, वरुणी विक्रमाआरच्ची, डॉ श्रीलक्ष्मी, डॉ नरेंद्र परमार, डॉ अरूण मल्लिक, डॉ अर्चना शर्मा, डॉ निकी चतुर्वेदी, डॉ डीएन सिन्हा, डॉ तमेघ पवार, डॉ विनय कुमार, डॉ पीवीएस सेंगार, डॉ नीधि पांडे, डॉ प्रभाकर उपाध्याय, डॉ राजीव निगम, मो अजमल, प्रणीत पोलकर और अन्य थे.

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