वीमेन ऑफ द वीक: कभी ताने देने वाले, अब मेरे नाम से पहचानते हैं, पढ़िए संघर्ष की पूरी कहानी
बेगूसराय के कुश्ती खेल के इतिहास में आज तक किसी ने सीनियर पदक प्राप्त नहीं किया था, लेकिन जूही ने इस पदक को प्राप्त कर इतिहास रच दिया है.
Success Story बिहार की बेटियां अब कुश्ती में भी अपना जौहर दिखा रही हैं. दंगल में दांव पेश कर इन्होंने साबित कर दिया है कि वो किसी से कम नहीं हैं. इन्हीं में से एक उभरती हुई खिलाड़ी हैं ‘जूही कुमारी’. जूही हाल ही में राष्ट्रीय सीनियर फेडरेशन कप कुश्ती प्रतियोगिता में कास्य पदक जीतकर बेगूसराय की दंगल गर्ल बन चुकी हैं.
बेगूसराय के कुश्ती खेल के इतिहास में आज तक किसी ने सीनियर पदक प्राप्त नहीं किया था, लेकिन जूही ने इस पदक को प्राप्त कर इतिहास रच दिया है. पर यहां तक का सफर उनके लिए आसान नहीं था. वे कहती हैं, जब मैं खेलने जाती थी, तब लोग घरवालों को ताना मारते थे. पर मैंने अपनी मां से वादा किया था कि जो लोग आपको ताना दे रहे हैं, वही कल आपको और मुझे सम्मान देंगे और मेरे नाम से जानेंगे.
Q. कुश्ती खेलने की शुरुआत आपने कब और कैसे की?
– जब मैं 11वीं में थी, तब से इसके प्रति लगाव बढ़ा. मेरे रोल मॉडल बजरंग पूनिया हैं. उन्हीं को देखकर मैंने भी कुश्ती खेलना शुरू किया. मेरे गांव में कुश्ती का माहौल नहीं था. पर मैं अपनी नानी के घर (मधुरापुर) जाकर कुश्ती सीखना शुरू किया. बेगूसराय से मैं रोज नानी घर जाकर कुश्ती का दांव सीखती और अपनी पढ़ाई भी करती. पढ़ाई के दौरान शिक्षकों और सहपाठियों का भरपूर सहयोग मिला. पिता के निधन के बाद मेरा पूरा ध्यान खेल पर रहा. पहली बार बेगूसराय के गांधी स्टेडियम में कुश्ती लड़ी, जिसमें पहला स्थान हासिल किया.
Q. इस खेल से नाता जोड़ने के दौरान आपको किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
– गांव का माहौल और गांव के लोग बड़े अजीब से होते हैं. जब मैं खेलने जाती थी, तब लोग मेरी मां को ताना देते थे. लोग कहते- बिना पिता की बेटी है, शादी करवा दो वरना भाग जायेगी. ऐसी बातों से मेरी मां काफी आहत होती थीं. पर, मैंने उनसे वादा किया था कि आप मुझपर भरोसा रखो. जो लोग आपको ताने दे रहे हैं, वहीं लोग मेरे नाम से पहचानेंगे और आपको सम्मान देंगे. मैं कभी कोई गलत काम नहीं करूंगी. आज देखिए- वही लोग गांव जाने पर मुझे सम्मानित करते हैं और गर्व महसूस करते हैं.
Q. आपको पहलवानी किसने सिखाया?
– मेरे मामा ललित सिंह पहलवान हैं. वे मेरे पिता की तरह मेरे मार्गदर्शक भी हैं, उन्होंने ही मुझे दंगल के सारे दांव-पेंच सिखाये हैं. उन्होंने कभी लड़के-लड़की में भेद नहीं किया. विभिन्न राज्यों में आयोजित प्रतियोगिताओं में मैने खेला और विजेता रही. आज मुझे जो राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, वो मेरे मामा और मेरी मां की वजह से, जिन्होंने मुझे हमेशा सपोर्ट किया. अब मेरा सपना है ओलंपिक में पदक प्राप्त करना. उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मैं जी तोड़ मेहनत कर रही हूं.