बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, अदालत का समय बर्बाद करने के एवज में लगाया जुर्माना, जानें पूरा मामला
बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है. सूबे की सरकार के द्वारा दायर की गई एक अपील को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अदालत का समय बर्बाद करने का आरोप लगाया है. इसके एवज में उस पर 20 हजार रुपये जुर्माना लगाया गया है. यह अपील पटना उच्च न्यायालय द्वारा एक मामले का निस्तारण करने से जुड़ी हुई है. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल की थी. जिसपर अदालत ने सुनवायी की है.
बिहार सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है. सूबे की सरकार के द्वारा दायर की गई एक अपील को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अदालत का समय बर्बाद करने का आरोप लगाया है. इसके एवज में उस पर 20 हजार रुपये जुर्माना लगाया गया है. यह अपील पटना उच्च न्यायालय द्वारा एक मामले का निस्तारण करने से जुड़ी हुई है. राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल की थी. जिसपर अदालत ने सुनवायी की है.
पिछले वर्ष सितंबर में बिहार सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी. पटना हाईकोर्ट ने दिसंबर 2018 में एक नौकरशाह की याचिका पर फैसला सुनाया था. मामला सेवा से बर्खास्त करने से जुड़ा हुआ था. जिसमें सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी. हाइकोर्ट की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान जून 2016 के बर्खास्तगी के आदेश को खारिज कर दिया था और जांच रिपोर्ट भी खारिज कर दी थी.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल सितंबर में बिहार सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मामले पर कुछ समय सुनवाई के बाद राज्य सरकार की तरफ से पेश हुए वकील ने संयुक्त रूप से आग्रह किया कि अपील का सहमति के आधार पर निपटारा किया जाए और इसके बाद सहमति के आधार पर इस मामले का निपटारा कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब मामले का निपटारा सहमति के आधार पर हो चुका था तो राज्य सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करना कहीं से उचित नही है. कोर्ट ने इसे अदालत के समय की बर्बादी व अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और इसके एवज में उस पर 20 हजार रुपये जुर्माना लगाया.उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार यह जुर्माना उन अधिकारियों से वसूले, जो इस काम के लिए जिम्मेदार हैं.
बता दें कि मामला नौकरशाह के बर्खास्तगी से जुड़ा हुआ है. जिसमें एक अधिकारी को जून 2016 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. उनके खिलाफ कथित तौर पर अवैध रूप से संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगा था और प्राथमिकी दर्ज की गई थी. जिसके बाद उन्हें निलंबित कर उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई थी. सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी. दिसंबर 2018 में उच्च न्यायालय ने नौकरशाह की याचिका पर फैसला सुनाया था और बर्खास्तगी के आदेश व जांच रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.
Posted By: Thakur Shaktilochan