पटना की इस गृहिणी ने एप्लीक कढ़ाई से जीता दुनिया का दिल, सुई-धागा बनीं बिहार की पहचान

देश में एप्लिक-कशीदाकारी के लिए चर्चित पटना की सुशीला देवी जितनी सरल व सभ्य हैं, उनकी कशीदाकारी में भी वहीं सहजता और सौम्यता झलकती है. इन्होंने सुई-धागे की कशीदाकारी से देशभर में नाम कमाया गया. उनकी कला को बिहार सरकार के प्रतिष्ठित राज्य पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है. पेश है सुशीला देवी से हुई बातचीत के कुछ अंश.

By Anand Shekhar | August 4, 2024 6:20 AM
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Sushila Devi: छोटा कद, भोली सूरत, वाणी में स्वाभाविक मिठास, ग्रामीण वेशभूषा, व्यवहार में सरलता और सिर पर साड़ी की पल्लु रखने वाली सुशीला देवी का नाम आज एप्लिक-कशीदाकारी के क्षेत्र में देश भर में चर्चित है. इनके बनाये एप्लिक-कशीदाकारी के कुशन कवर, चादर, तकिए के गिलाफ, दीवार पर टांगने की वस्तुएं और कपड़े काफी पसंद किये जाते हैं. इनकी बनायी गयी कृतियों व नक्काशियों पर बिहार की परंपरागत शैली में चटकदार रंग दिखता है. पेश है सुशीला देवी से बातचीत के कुछ अंश…

Q. आप मूल रूप से कहां की रहने वाली हैं और इस क्षेत्र से कैसे जुड़ीं?

मैं मूलरूप से पटना सिटी की रहने वाली हूं. मेरे यहां कशीदाकारी की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है. इस कला को हमने अपनी मां से सीखा था. शौक के तौर पर कशीदाकारी करती थी. पर, कभी सोचा नहीं था कि यह हमें इतनी प्रसिद्धि दिलायेगा. पिता की एक दुकान थी, जिससे घर का खर्च किसी तरह से निकलता था. जिस वक्त मैंने दसवीं की परीक्षा दी थी, उस समय अचानक दुकान में आग लग गयी. काफी नुकसान हुआ था. तब मेरी शादी कर दी गयी. पति नौकरी में थे, लेकिन मासिक आय 90 रुपये थी. जिससे बच्चों के साथ घर चलाना आसान नहीं था. फिर हमने एप्लिक-कशीदाकारी की शुरुआत की.

Q. इस दौरान कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा

घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. इसलिए आस-पास के लोगों के लिए सिलाई का काम करती थी. मेरी पड़ोसन ने मुझे एक महिला से मिलवाया, जहां से मुझे कुशन कवर बनाने का ऑर्डर मिलने लगा. दिनभर बच्चों और घर को संभालती और रात में कुशन कवर तैयार करती. एक कुशन कवर का मुझे आठ अना मिलाता था. ससुराल वालों का हमेशा सहयोग मिला.

एक दिन मैं खादी भंडार के बगल से गुजर रही थी, तभी वहां एप्लिक के एक डिजाइन को देखा. घर लौटकर इसे अपने हाथों से तैयार किया. फिर इसे बेचने के लिए बाजार निकल गयी. उस दिन कशीदाकारी किये हुए कपड़े की बिक्री तुरंत हो गयी. धीरे-धीरे इस काम ने मुझे पहचान दिलाना शुरू कर दिया. पटना और राज्य के बाहर लगने वाले मेले व प्रदर्शनियों में भाग लेने लगी.

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Q. देश के अलावा आप कहां-कहां प्रशिक्षण देती हैं?

मुझे देश के कई राज्यों में प्रशिक्षण देने का मौका मिला है. मैं आज भी इससे जुड़ी हूं. साल 2017 में मॉरीशस में अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला. पटना के निफ्ट और उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान से भी इन्हें प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया जाता है. मैंने बचपन से गरीबी देखी है इसलिए अपने शिल्प को गरीबी उन्मूलन से जोड़ दिया है. अब तक कई महिलाओं और युवतियों को नि:शुल्क प्रशिक्षण दे चुकी हूं. मेरा मानना है कि हुनर बांटने से बढ़ता है.

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