संवाददाता,पटना बिहार विधानसभा आम चुनाव 2025 में कांग्रेस को बिहार में 70 सीटों को फिर से हासिल करने की बड़ी चुनौती बनी हुई है. विधानसभा चुनाव 2020 में पार्टी का स्ट्राइकिंग रेट इतना गिरा था कि बाद में उपचुनावों में राजद नेताओं का तंज झेलना पड़ा था. कांग्रेस के उम्मीद के अनुसार प्रदर्शन नहीं करने को लेकर राजद और कांग्रेस के नेताओं के बीच तीखी नोक-झोंक भी हुई थी, जिसमें लालू प्रसाद ने तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रभारी भक्तचरण दास के लिए देसज अंदाज में नया नाम तक दिया था. कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में महागठबंधन के तहत राजद को 144 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 70 सीटें दी गयी थीं. वाम दलों को सिर्फ 29 सीटें दी गयीं. राजद ने 144 सीटों में से 75 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस 70 सीटों में से सिर्फ 19 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी. इसी प्रकार से वर्ष 2015 में महागठबंघन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू भी शामिल थी उस समय सीटों के बंटवारे में कांग्रेस को सिर्फ 41 सीटें दी गयी थीं. कांग्रेस 41 सीटें लेकर भी उनमें 27 सीटें जीत गयी थी. पार्टी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस के जो सामाजिक आधार के वोट हैं, उसका बिहार में बिखराव हुआ है. राजद और जदयू व भाजपा का आधार वोट बिहार में सबसे अधिक मजबूत हुआ है. इधर, कांग्रेस पिछले 10 वर्षों में अपने आधार वोटों को भी बढ़ाने में बहुत सफलता नहीं पायी है. कांग्रेस का बिहार में ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो समाज के सभी वर्गों के भीतर पार्टी का प्रवेश करा सके. इसके अलावा कांग्रेस का 243 विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय कार्यकार्ताओं का भी अभाव है. न तो जिला स्तर पर और ना ही प्रखंड में पार्टी का सांगठनिक ढांचा है. ऐसे में पार्टी की बिहार के क्षेत्रीय दलों पर अधिक निर्भरता बन गयी है. इसको लेकर पार्टी नेताओं की चिंता है कि वर्ष 2015 जैसी स्थिति कांग्रेस की नहीं हो जाये, जब 50 से नीचे सीटें ही थमा दी जाएं.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है