पटना. बच्चों को शिक्षित करने व उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देने वाले शिक्षक कभी थकते नहीं है. अगर मन में यह जज्बा हो कि कोई भी बच्चा संसाधन के अभाव में शिक्षा से वंचित न रह जाये तो रास्ते अपने खुद ब खुद बनते चले जाते हैं. नौकरी पेशा होना या फिर सेवानिवृत्त होना तो एक प्रक्रिया होती है. इसका असल जीवन से नहीं होता है. शिक्षा बाजार वाद की भेंट चढ़ चुकी है. ऐसे में आज भी नयी पीढ़ी में कुछ ऐसे युवा हैं जो शिक्षा का असल मतलब उसे बांटना समझते हैं. शिक्षक दिवस पर पेश है शहर के ऐसे ही कुछ युवाओं की कहनी जो अपने काम से कुछ समय निकाल कर जरूरतमंद बच्चों के घरों में शिक्षा की लौ जला रहे हैं.
राजापुर की रहने वाली 22 वर्षीय प्रियंका सोनी समाज में शिक्षा का उजाला फैला रही हैं. वे अपनी पढ़ाई करने के साथ ही कुछ समय निकालकर जरूरतमंद बच्चों को शिक्षित करने में अपना योगदान दे रही हैं. प्रियंका बताती है कि 2015 से वे राजापुर के राधाकृष्ण मंदिर अखारा में जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने की शुरुआत की. शुरुआत में वार्ड पार्षद अनीता देवी के सहयोग से उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. आज करीब 200 बच्चों को वे निशुल्क पढ़ा रही हैं. प्रियंका बताती हैं कि जब मैट्रिक में थी तो देखती थी कि मेरे आसपास के बच्चे योंही अपना समय बर्बाद करते थे. मुझे लगा कि पैसे के अभाव में इनकी जिंदगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए इसलिए मैंने इन्हें पढ़ाना शुरू किया. प्रियंका फिलहाल बीएड की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही हैं और रोजाना शाम में चार से साढ़े छह बजे तक बच्चों को पढ़ाती हैं.
बैरिया के रहने वाले प्रेम रंजन बताते हैं कि कोरोना काल में ऐसे कई बच्चे थे जिनकी पढ़ाई छूट गयी थी. इसके बाद ही मैंने जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने के लिये अरविंद माउंट एकेडमी के नाम से 2020 में स्कूल खोला. यहां कम दर में बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क में पढ़ाया जा रहा है. प्रेम बताते हैं कि फिलहाल वे 30 बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के साथ ही उन्हें स्टेशनरी, पोशाक व अन्य खर्च उठा रहे हैं.
हाजीपुर सदर अस्पताल में कार्यरत डॉ शशांक कुमार सप्ताह में तीन दिन जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने के लिये समय निकालते हैं. वे बताते हैं कि स्लम के बच्चों की जिंदगी बर्बाद होते देख उन्होंने इन्हें पढ़ाने की शुरुआत की. ककंड़बाग थाना के पास वे सप्ताह में तीन दिन स्लम के बच्चों को पढ़ाने के लिये हाजीपुर से पटना आते हैं. शशांक का कहना है कि शिक्षा सभी बच्चों का अधिकार है. मेरी यही कोशिश है कि जो कुछ भी सीखा है उसे दूसरे में बांट सकूं.
आइजीआइएमएस के पैथोलोजी विभाग में पढ़ाई करने वाले शिवहरी कुमार बताते हैं कि पढ़ाई का असल बतलब है कि उससे दूसरों को फायदा पहुंचे. उन्होंने बताया कि स्लम के बच्चों के हालात को देखते हुए उन्होंने पढ़ाना शुरू किया है. शिवहरी बताते हैं कि पिछले तीन सालों से पटना जंक्शन के एक नंबर प्लेटफॉर्म पर जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क पढ़ाते हैं. वे बताते हैं कि गायत्री परिवार के प्रांतीय युवा प्रकोष्ठ की ओर से चलाये जा रहे निशुल्क क्लास में वह अपना सहयोग आगे भी देते रहेंगे.
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मार्शल आर्ट ऐसी कला है जिसके सहारे आसानी से अपनी रक्षा की जा सकती है. बच्चों को आत्मरक्षा के गुर सिखाने की शुरुआत साल 2006 में किया था. इस दौरान ज्यादातर बच्चे फीस देकर ही ट्रेनिंग लेते थे. फील्ड में बच्चों को ट्रेनिंग देते समय कुछ ऐसे भी बच्चे खड़े रहते थे जिनके मन में मार्शल आर्ट सीखने का जज्बा तो था, मगर उनके पास फीस देने के पैसे नहीं थे. इन्हीं बच्चों को देखकर मैंने जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क ट्रेनिंग देने की शुरुआत की. यह कहना है मार्शल आर्ट ट्रेनर अविनाश कुमार का. अविनाश ने बताया कि आज शहर के कंकड़बाग, बुद्धा कॉलोनी, पाटलिपुत्र समेत विभिन्न इलाके में 15 ट्रेनिंग सेंटर हैं जहां पर बच्चों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दी जाती है. इन सेंटरों पर जरूरतमंद बच्चियों को भी निशुल्क ट्रेनिंग भी दी जाती है. आज अलग-अलग ट्रेनिंग सेंटर पर 60 से अधिक जरूरतमंद बच्चों को निशुल्क मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे रहे हैं. इसके साथ ही इन बच्चों को टूर्नामेंट और चैंपियनशिप में पार्टिसिपेट करने का भी खर्च उठा रहे हैं