लोक गीतों से लेकर शास्त्रीय संगीत तक में है होली गीतों का महत्व
भारतीय संस्कृति में लोक गीत-संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत तक में होली के गीतों का खास महत्व है. आम अवाम ने होली गीतों में अपने जज्बातों को बताया है.
साकिब, पटना : भारतीय संस्कृति में लोक गीत-संगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत तक में होली के गीतों का खास महत्व है. आम अवाम ने होली गीतों में अपने जज्बातों को बताया है. होली के रंग में भारतीय साहित्य रंगा पड़ा है. अलग-अलग कालखंडों में देखें तो पाते हैं कि विभिन्न लेखकों, कवियों, संगीतकारों, ने इस परंपरा को समृद्ध किया है. सबसे खास बात तो यह कि सूफी संत भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.
कई सूफी संतों और मुस्लिम शायरों-कवियों ने होली पर गीत लिखे हैं. उनकी ये रचनाएं हिंदू- मुस्लिम एकता और इस देश की साझी संस्कृति की विरासत हैं. इन्हें पढ़ने पर अंदाजा होता है कि मुस्लिम सूफी संत हिंदू देवी-देवताओं और त्योहारों से भी काफी प्रभावित रहे हैं. मुस्लिम बादशाहों ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया. मुगल बादशाह खूब शौक से न सिर्फ होली खेलते थे बल्कि उन्होंने तो होली पर कविताएं भी लिखी हैं.
अपने रंगीले पे हूं मतवारी, जिनने मोहे लाल गुलाल लगायो
भारत में साझी संस्कृति को विकसित करने में सूफी संतों का बड़ा योगदान रहा है. सूफी संतों ने अपने कामों से हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत किया और भारतीय रीति, रिवाजों, त्योहारों, भाषा को मजबूत किया. इन सूफियों ने होली को लेकर कई रची हैं. सूफीमत भारतीय दर्शन और हिंदुओं के वेदांत से काफी प्रभावित था. इनके कई गीत और संगीत आज भी भारतीय जनमानस के दिलों में जिंदा हैं.
सूफी सूफी संत हजरत निजामुद्दीन औलिया तो कहा करते थे कि हर कौम रास्त राहे दीने व किब्ल गाहे जिसका मतलब है कि दूसरे मजहब के अवतारों और संतों को हरगिज बुरा नहीं कहना चाहिए, हर जमीन पर खुदा ईश्वर ने पैंगंबर उतारे हैं, ये सब हमारे हैं.
हजरत निजामुद्दीन औलिया के मुरीद और प्रसिद्ध सूफी शायर और संगीतकार अमीर खुसरो ने दिल्ली के कालकाजी मंदिर से सूफीमत परंपरा में वसंत और होली मनाने का रिवाज शुरू किया था. बसंत के बाद से ही दरगाहों पर अमीर खुसरो के फारसी और हिंदवी में लिखे होली और रंगों से संबंधित गाने की परंपरा रही है. कई दरगाहों पर तो फाग उत्सव भी मनाया जाता रहा है, जिसमें हर मजहब के लोग शिरकत करते हैं. इनकी परंपरा को मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर और नजीर अकबराबादी जैसे शायरों ने आगे बढ़ाया.
एक मान्यता यह भी है कि हजरत निजामुद्दीन औलिया को सपने में भगवान कृष्ण ने दर्शन दिये. इसके बाद उन्होंने खुसरो को बुलाकर कृष्ण पर उस समय की लोक भाषा हिंदवी में दीवान लिखने के लिए कहा.
खुसरो ने ‘हालात ए कन्हैया और किशना’ नाम से श्रीकृष्ण पर हिंदवी में दीवान लिखा. इसमें श्रीकृष्ण की जिंदगी और उन पर गीतों के अलावा होली के गीत भी मौजूद हैं. खुसरो इन गीतों में अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन के साथ होली खेलते हैं.
‘गंज शकर के लाल निजामुद्दीन चिश्त नगर में फाग रचायो,
ख्वाजा मुईनुद्दीन, ख्वाजा कुतबुद्दीन प्रेम के रंग में मोहे रंग डारो
सीस मुकुट हाथन पिचकारी, मोरे अंगना होरी खेलन आयो,
खेलो रे चिश्तियों होरी खेलो, ख्वाजा निजाम के भेस में आयो।
अपने रंगीले पे हूं मतवारी, जिनने मोहे लाल गुलाल लगायो
ख्वाजा निजामुद्दीन चतुर खिलाड़ी बईयां पकर मोपे रंग डारो,
धन धन भाग वाके मोरी सजनी, जिनोने ऐसो सुंदर प्रीतम पायो’
सूफी संतों के लिए होली खुदी के मिट जाने का उत्सव है और परमात्मा के मिलन का नृत्य भी है. यही कारण है कि अमीर खुसरो इस रंग को महा रंग कहते है. आज रंग है री महा रंग है… में उन्होंने अपने इसी मनोभाव का वर्णन किया है.
‘आज रंग है ए मां रंग है री
मोरे महबूब के घर रंग है री
सजन गिलावरा इस ऑगन में
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया
गंज शकर मोरे संग है री’…
उर्दू के मशहूर शायर नजीर अकबराबादी की एक चर्चित नज्म होली के महत्व को बताती है. इसके बोल हैं-
हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार.
जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार
तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार…