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शासन से चिंतन तक: किशोर कुणाल के लिए आसान नहीं रहा IPS से आचार्य तक का सफर

Kishore Kunal: बिहार के चर्चित पूर्व आईएएस, प्रसिद्ध आध्यात्मिक शख्सियत और पटना महावीर मंदिर न्यास समिति के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने दुनिया को अलविदा कह दिया. हार्ट अटैक से 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. जिस महावीर वात्सल्य अस्पताल को उन्हों स्थापित किया वहीं अंतिम सांस ली. आचार्य के निधन से बिहार के धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई है. कुशोर कुणाल के लिए जीवन का यह सफर आसान नहीं रहा.

Kishore Kunal: पटना. मुजफ्फरपुर के एक गांव से पढ़ाई शुरू कर किशोर कुणाल ना सिर्फ आईपीएस बने बल्कि देश के आध्यात्मिक दुनिया में बेहतरीन ख्याति हासिल की. आचार्य किशोर कुणाल का जन्म मुजफ्फरपुर के बरुराज गांव के एक भूमिहार परिवार में 10 अगस्त 1950 को हुआ था. उनके पिता का रामचंद्र शाही किसान और सामाजसेवी थे. उनकी मां रूपमती देवी गृहिणी थी. किशोर कुणाल आरंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई थी. बरुराज हाई स्कूल से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और इंटर की पढ़ाई एलएस कॉजेल मुजफ्फरपुर से की. आगे की पढ़ाई के लिए पटना चले आये.

1972 में बने भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी

साल 1970 में उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में स्नातक की उपाधि हासिल की. उन्होंने संस्कृत का भी गहरा अध्ययन किया. ग्रेजुएशन के साथ ही उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दिया था. पढ़ाई में मेधावी किशोर कुणाल साल 1972 में गुजरात कैडर में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी बन कर अपनी प्रतिभा का लोहा
मनवाया. उनकी पहली पोस्टिंग गुजरात के आणंद जिले में हुई. उन्हें आणंद का एसपी बनाया गया. 1978 में उन्हें अहमदाबाद का पुलिस उपायुक्त बनाया गया.

2001 में नौकरी से दिया इस्तीफा

किशोर कुणाल साल 1983 में पटना के एसएसपी बनाए गए. आईपीएस के रूप में विभिन्न पदों पर सेवा देते हुए 2001 में उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और धर्म आध्यात्म की दुनिया में आ गए. बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने कई महत्वपूर्ण सुधार किया. राज्य भर के प्रमुख मंदिरों को धार्मिक न्यास से जोड़ने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. दलित समाज के साधुओं को मंदिरों का पुजारी बनाने में उनकी भूमिका को कभी भुलाया नहीं जा सकता. अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद के निपटारे में भी उन्होंने भूमिका निभाई. बीपी सिंह सरकार द्वारा स्थापित ‘अयोध्या सेल’ में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी बनाया गया.

किशोर कुणाल के परोपकारी कार्य

पटना के प्रसिद्ध महावीर (हनुमान) मंदिर के माध्यम से उन्होंने महावीर कैंसर संस्थान, महावीर आरोग्य संस्थान, महावीर नेत्रालय, महावीर वात्सल्य अस्पताल जैसे कई धर्मार्थ अस्पतालों की स्थापना की और विभिन्न रूपों में बड़े पैमाने पर परोपकारी कार्य किए.
दलितों का उत्थान (क) 13 जून 1993 को पटना हनुमान मंदिर में एक दलित पुजारी नियुक्त किया गया
(बी) बिहार धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक के रूप में उन्होंने बिहटा, पालीगंज, बोधगया, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय और अन्य स्थानों पर कई प्रमुख मंदिरों में दलित पुजारियों की नियुक्ति की है.
(ग) उन्होंने बिहार के सभी मंदिरों में दलित ट्रस्टियों की नियुक्ति की है और उन्हें बड़े पैमाने पर मंदिर के मामलों के प्रबंधन से जोड़ा है.
(घ) संगत (सामुदायिक प्रार्थना) और पंगत (सामुदायिक भोजन) के कार्यक्रमों के माध्यम से, उन्होंने बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में पुनर्जागरण लाया है.
सांप्रदायिक सौहार्द्र यद्यपि वे अयोध्या के एक बहुत ही विवादास्पद मुद्दे पर हिंदू और मुस्लिम धार्मिक नेताओं के बीच बातचीत के नाजुक कार्य से जुड़े थे, फिर भी उन्होंने दोनों समूहों के साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे। इसके बाद उन्होंने विभिन्न धार्मिक मंचों से सांप्रदायिक सद्भाव का झंडा बुलंद किया। समाज के सभी वर्गों से उन्हें बहुत सम्मान प्राप्त है.

पुरस्कार

(i) 2009 में उन्हें जागरण समाचार पत्र समूह द्वारा ‘बिहार रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया गया
(ii) 2008 में उन्हें भगवान महावीर फाउंडेशन, चेन्नई द्वारा प्रायोजित सामुदायिक और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में मानव प्रयास में उत्कृष्टता के लिए भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 11वें महावीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार में एक प्रशस्ति पत्र और 5 लाख रुपये दिए जाते हैं।
(iii) 2006 में उन्हें समाज कल्याण समिति, बिहार, पटना द्वारा सामाजिक सेवा के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया
(iv) 1997 में उन्हें संस्कृत के प्रचार-प्रसार में उनकी सेवा के लिए पूर्व काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह द्वारा श्रृंगेरी मठ, वाराणसी में सम्मानित किया गया था।
(v) 1996 में उन्हें उनकी सामाजिक और सामुदायिक सेवाओं के लिए दूसरे विवेकानंद मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया

ग्रन्थकारिता कई पुस्तकों के लेखक

“दलित देवो भव”, एक महान कृति है, जिसे प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2 खंडों में प्रकाशित किया गया है। उन्होंने अयोध्या रिविजिटेड नामक पुस्तक भी लिखी है.
पाठ्यक्रम आईपीएस में रहते हुए दिसंबर 1995 में यूएसए में ‘क्राइसिस मैनेजमेंट कोर्स’ और हैदराबाद स्थित एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया में टॉप मैनेजमेंट कोर्स सहित कई पाठ्यक्रमों में भाग लिया.
प्रवचन भारत और अमेरिका में भारतीय इतिहास, दर्शन, संस्कृत साहित्य और धर्मग्रंथों के कई विषयों पर प्रवचन दिए.। वाल्मीकि रामायण पर एक महान विशेषज्ञ.
अन्य कार्य (i) पटना के प्रसिद्ध महावीर (हनुमान) मंदिर के सचिव
(ii) सचिव, निखिल भारतीय तीर्थ विकास समिति, दिल्ली में पंजीकृत एक अखिल भारतीय सोसायटी
अध्यक्षता की (क) 2004 में वाराणसी में अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन का इतिहास अनुभाग
(बी) 2006 में जम्मू में अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन के पुरातत्व अनुभाग
(ग) 2008 में कुरुक्षेत्र में अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन का इतिहास अनुभाग
(घ) संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए जगन्नाथपुरी, हरिद्वार, वडोदरा तथा अन्य स्थानों पर अनेक संस्कृत सम्मेलनों में भाग लिया.

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