बिहार से विलुप्त होती जा रही होली व चैता गायन की परंपरा, आधुनिकता के नाम पर जानें कितना बदला त्योहार
आधुनिकता के नाम पर अब होली पूरी तरह बदल चुकी है. अब सामाजिक समरसता और भाईचारे का माहौल भी नहीं दिखता. वहीं होली व चैता गायन की परंपरा भी अब बिहार से विलुप्त होती जा रही है.
रंगों का पर्व होली भी बदलाव से अछूता नहीं है. वसंत पंचमी से ही रंग और अबीर की शुरुआत हो जाती है. वसंत की मादकता पक्षी को भी प्रभावित कर देता है. कोयल की कू सुनाई देने लगती है. इसका समाज पर अपना रंग होता था. हर तरफ खुशी एवं सामाजिकता का माहौल बन जाता था. एक अलग ही मानसिक अंदाज का अनुभव होने लगता था. समाज में आपसी भाईचारा बन जाती थी. सभी एक दूसरे को गले लगाने लगते थे.
आधुनिकता के नाम पर लगभग विलुप्त हो गयीं परंपरा
अपनी परंपराओं को भूलना अपने रीति-रिवाजों से कट जाने को आज आधुनिकता का नाम दे दिया गया है. वर्षों पहले से अब फागुन एवं चैत की परंपराएं विलुप्त हो चुकी हैं. फागुन आते ही हंसी-ठिठोली, उल्लास और अल्हड़पन का माहौल अब गायब हो गया है. न तो फाग के बोल सुनाई देते और न हुड़दंग मचातीं युवाओं की टोलियां दिखतीं.
संस्कृति और परंपराओं को बचाना जरुरी
होली के रंग, फगुआ गीत, गुझियां, पापड़, चिप्स बनाने के साथ सुरीले कंठ से आंगन में फाग गातीं महिलाएं जैसे नजारों को आधुनिकता ने चौपट कर दिया. इस संबंध में कई बुद्धिजीवियों का कहना है कि हमें गांवों को बचाना होगा.अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाना होगा.
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आपसी मतभेद के चलते घर से दूर ही होली
लोगों का कहना है कि पहले की होली और अब में बहुत बदलाव आता जा रहा है. पहले हर सदस्य परिवार के बीच त्योहार मनाना पसंद करते थे.बाहर रहने वाले लोग होली के समय अपने घर जरूर आ जाते थे. लोग कोसों पैदल और कच्ची सड़क से चलकर घर पहुंचते थे. अब साधन होने के बावजूद आपसी मतभेद के चलते घर आने की जहमत नहीं उठाते.
क्या कहते हैं बुजुर्ग
हमारे जमाने में होली का काफी महत्व था. यह अपनी परंपरा है. सामाजिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण है. होली से समाज में प्रेम बना रहता था. सभी लोग एक जगह एकत्र होकर होली गाते थे. आपस में कोई भेद भाव नहीं रह जाता था. बहुत आनंद होता था. अपनी परंपराओं को नहीं भूलनी चाहिए.
मनमुटाव दूर करती थी होली
एक बुजुर्ग कहते हैं कि उस समय समाज में काफी एकता होती थी. सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे. यदि किसी को मनमुटाव भी है तो होली आते ही सब भेदभाव को भूल जाते थे. आपस में एक हो जाते थे.मिलकर होली गाते थे.आपसी प्रेम देखते ही बनता था.परंपराएं समाज की आधार होती हैं.