Patna : प्री-मेच्योर बच्चों में अंधापन का खतरा, आइजीआइएमएस में इलाज शुरू

समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों में होने वाली रेटिनोपैथी बीमारी के इलाज के लिए अब आपको न तो दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और शंकर नेत्रालय चेन्नई जाने की जरूरत है, क्योंकि आइजीआइएमएस के नेत्र रोग विभाग में इसका इलाज शुरू किया गया है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 20, 2024 1:31 AM

आनंद तिवारी, पटना : पटना सहित पूरे बिहार में हर साल अनुमानत: डेढ़ लाख बच्चे समय से पहले पैदा हो रहे हैं. इनका वजन सामान्य बच्चों की तुलना में कम होता है. ऐसे अधिकतर बच्चों का वजन दो किलो से भी कम होता है. खास बात तो यह है कि इनमें करीब आधे ऐसे बच्चे हैं, जिनको रेटिनोपैथी ऑफ प्री मेच्योरिटी (आरओपी) नामक बीमारी देखने को मिल रही है. नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक अगर इन बच्चों का समय पर इलाज नहीं किया गया, तो बाद में ये बच्चे अंधेपन से ग्रस्त हो सकते हैं. इस तरह के केस आइजीआइएमएस के क्षेत्रीय चक्षु संस्थान (नेत्ररोग) में आ रहे हैं. हर महीने 50 से 80 के बीच इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे इलाज को आ रहे हैं.

आइजीआइएमएस बिहार का पहला सरकारी अस्पताल, जहां आरओपी के इलाज की सुविधा :

समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों में होने वाली रेटिनोपैथी बीमारी के इलाज के लिए अब आपको न तो दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़ और शंकर नेत्रालय चेन्नई जाने की जरूरत रहेगी और न ही इसके लिए अधिक खर्च होगा, क्योंकि आइजीआइएमएस के नेत्र रोग विभाग में इसका इलाज शुरू किया गया है. इसके लिए यहां लेजर मशीन लगायी गयी है. इस तकनीक के बाद अब प्री मेच्योर बच्चों के अंधेपन की जांच और उनका इलाज भी संभव हो गया है. संस्थान प्रशासन के अनुसार आइजीआइएमएस बिहार का पहला सरकारी संस्थान बन गया है, जहां नयी तकनीक से आरओपी का इलाज किया जा रहा है.आइजीआइएमएस के उपनिदेशक व नेत्र रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ विभूति प्रसन्न सिन्हा ने कहा कि क्षेत्रीय चक्षु संस्थान में आरओपी का सुपर स्पेशलिस्ट ट्रीटमेंट मिल रहा है. डॉ अभिषेक आनंद के साथ कई ट्रेंड डॉक्टरों को इलाज के लिए लगाया गया है. हाल ही में डॉ मनीष कर्ण को देश के बेस्ट इंस्टीट्यूट में भेज कर ट्रेनिंग दिलायी गयी है. इतना ही नहीं, अगले महीने संस्थान में पूर्वी भारत का सबसे बड़ा आंख का अस्पताल बनने जा रहा है, जहां हर तरह के नेत्र रोग का इलाज हो सकेगा. आइजीआइएमएस के आइ बैंक के इंचार्ज डॉ निलेश मोहन ने कहा कि आठ माह से पहले जन्म लेने वाले 30 फीसदी बच्चे आरओपी के शिकार हो जाते हैं. छह फीसदी की हालत क्रिटिकल होती है. रेटिना के आसपास खून की नसों के दबने से यह बीमारी होती है. अगर चार सप्ताह के अंदर इसका इलाज न किया जाये, तो वे अंधेपन के शिकार हो जाते हैं. अब आइजीआइएमएस में नयी मशीनों उपलब्ध होने के कारण समय पर इसकी जांच व इलाज होने लगा है.

पीएमसीएच में पहली बार हुई वैस्कुलर सर्जरी

पीएमसीएच के न्यूरो सर्जरी विभाग में पहली बार वैस्कुलर की सर्जरी की गयी. मरीज का नाम मीना देवी है, जो मुजफ्फरपुर जिले की रहने वाली है. पीएमसीएच के अधीक्षक डॉ आइएस ठाकुर ने बताया कि अब पीएमसीएच में भी वैस्कुलर सर्जरी की सुविधा बहाल कर दी गयी है. संबंधित महिला को मिर्गी समेत कई तरह की परेशानी थी. इसे देखते हुए न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की टीम बनायी गयी और सफल सर्जरी हुई. डॉ आइएस ठाकुर ने कहा कि शरीर में खून का संचार रुकने, नसों के ब्लॉक होने से मरीजों को बड़ी परेशानी होती है. यह जीवन के लिए भी खतरनाक है. यहां के सर्जन को वैस्कुलर सर्जन की तकनीकों से अवगत कराया गया. अचानक खून की नली में अवरोध, इंज्यूरी के कारण नसों का कटना, खून जमाने से संबंधित पहलुओं को बारीकी से डॉक्टरों द्वारा अब सर्जरी की जायेगी.

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