पटना हाइकोर्ट ने राज्य के सभी शिक्षण संस्थानों में छात्राओं के लिए बने शौचालयों की दयनीय स्थिति पर नाराजगी जताते हुए कहा कि ऐसे मामलों में भी कोर्ट को ही आदेश देना पड़ रहा है, जबकि इस तरह की बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य सरकार का दायित्व है. कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश चक्रधारी शरण सिंह और न्यायाधीश पार्थसारथी की खंडपीठ ने एक समाचार पत्र में इस संबंध में छपी खबर पर स्वतः संज्ञान लेकर की गयी सुनवाई के दौरान यह बात कही.
अधिवक्ता शम्भू शरण सिंह ने कोर्ट को बताया कि पटना जिले के डीइओ की ओर से दाखिल हलफनामा में शहरी क्षेत्रों के सरकारी गर्ल्स स्कूल के शौचालय का पूरा ब्यौरा दिया गया है उसमें कहा गया है कि नौवीं से बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली दो हजार से ज्यादा छात्राओं के लिए सिर्फ दो शौचालय हैं. पटना के नामी गिरामी सरकारी स्कूलों का भी जो चार्ट दिया गया है उससे साफ पता चलता है कि आखिर बच्चियों बीच में ही पढ़ाई क्यों छोड़ देती हैं.
दायर हलफनामा में सैनेटरी नैपकिन के बारे में एक शब्द नहीं लिखा गया है. डीइओ की ओर से दायर शपथ पत्र में कहा गया है कि शहर के बीस स्कूलों में वर्ग नौ से 12वीं में पढ़ने वाली कुल 12 हजार 4 सौ 91 छात्राओं के लिए सिर्फ 128 शौचालय हैं. कोर्ट ने पटना समेत राज्य के सभी जिलों से संबंधित छात्राओं के स्कूलों में इस मामले को लेकर उपलब्ध करायी गयी बुनियादी सुविधाओं से संबंधित एक चार्ट प्रस्तुत करने का निर्देश सरकार को दिया है.
कोर्ट ने अपने दो पुराने आदेश का हवाला देते हुए राज्य के सभी जिलों के जिला शिक्षा अधिकारी को एक सप्ताह के भीतर सभी सरकारी गर्ल्स स्कूल के शौचालय और सैनेटरी नैपकिन मुहैया कराने से लेकर उसके निष्पादन के बारे में पूरी जानकारी 13 फरवरी तक देने का निर्देश दिया.