अब शिक्षण संस्थानों को स्वयं उच्च शोध मानकों को करना होगा सुनिश्चित -केयर सूची को खत्म करने का उद्देश्य अकादमिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना: प्रो एम जगदीश कुमार -अब शोधकर्ता अपने विषय के अनुरूप जर्नल में शोध प्रकाशित करने के लिए होंगे स्वतंत्र -बिना किसी केंद्रीय सूची के जर्नल में भी शोध करवा सकते हैं प्रकाशित -शैक्षणिक संस्थान स्वयं की मूल्यांकन प्रणाली विकसित करें और शोध प्रकाशनों की नैतिकता एवं गुणवत्ता बनाये रखें: प्रो कुमार अनुराग प्रधान, पटना: यूजीसी ने अपने ‘केयर जर्नल सूची’ को बंद करने का निर्णय लिया है. इसकी पारदर्शिता और कार्यप्रणाली पर सवाल उठने के बाद यूजीसी ने इसे बंद करने का निर्णय लिया है. अब उच्च शिक्षण संस्थान अपने स्वयं के तंत्र विकसित करेंगे ताकि वे शोध पत्रिकाओं की गुणवत्ता का मूल्यांकन कर सकेंगे. यूजीसी अध्यक्ष प्रो एम जगदीश कुमार ने कहा कि यूजीसी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनइपी) 2020 के संदर्भ में भी इस प्रणाली की समीक्षा की. नीति में अत्यधिक केंद्रीकृत नियमन को अकादमिक स्वतंत्रता के लिए बाधा बताया गया था. यूजीसी ने दिसंबर 2023 में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसकी सिफारिशों के आधार पर यूजीसी-केयर सूची को बंद करने का निर्णय लिया गया. अब उच्च शिक्षण संस्थान अपनी स्वतंत्र मूल्यांकन प्रणाली विकसित कर सकते हैं. प्रो कुमार ने कहा है कि यदि संस्थान खराब गुणवत्ता की पत्रिकाओं को मान्यता देते हैं, तो इससे संस्थान की साख को नुकसान हो सकता है. उन्होंने कहा कि नये नियम से शोधकर्ताओं को फायदा होगा. शोधकर्ता अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त पत्रिका का चयन कर सकेंगे. पत्रिकाओं की गुणवत्ता का मूल्यांकन उच्च शिक्षण संस्थान करेंगे, जिससे प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय होगी. नये और उभरते शोध क्षेत्रों को भी उचित मान्यता मिल सकेगी इस कदम का उद्देश्य शोध प्रकाशनों के मूल्यांकन को विकेंद्रीकृत करना है, जिससे शिक्षकों और छात्रों को अपने शोध पत्र प्रकाशित करने के लिए बेहतर विकल्प मिलेगा. यूजीसी के चेयरमैन प्रो एम जगदीश कुमार ने कहा कि केयर सूची को खत्म करने का उद्देश्य अकादमिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है. अब शोधकर्ता अपने विषय के अनुरूप जर्नल में शोध प्रकाशित करने के लिए स्वतंत्र होंगे, बिना किसी केंद्रीय सूची के प्रतिबंध के. उन्होंने यह भी कहा कि अब उच्च शिक्षा संस्थानों को स्वयं उच्च शोध मानकों को सुनिश्चित करना होगा और खराब गुणवत्ता वाली पत्रिकाओं के प्रसार को रोकने की जिम्मेदारी लेनी होगी. 2028 में शुरु हुई थी यूजीसी केयर यूजीसी-केयर सूची की शुरुआत 2018 में हुई थी, ताकि शोध प्रकाशनों की गुणवत्ता को बनाये रखा जा सके. हालांकि, समय के साथ इस सूची की कई खामियां उजागर हुईं. जैसे:पत्रिकाओं को सूची में जोड़ने और हटाने में देरी. पारदर्शिता की कमी. खराब गुणवत्ता वाली और प्रेडटॉरी पत्रिकाओं का शामिल हो जाना. भारतीय भाषाओं में प्रकाशित शोध पत्रों पर नकारात्मक प्रभाव. इन समस्याओं के कारण यह महसूस किया गया कि शोध प्रकाशनों के मूल्यांकन की जिम्मेदारी अब संस्थानों को दी जानी चाहिए. संस्थानों को सलाह दी है कि वे अपने स्वयं के तंत्र विकसित करने की कोशिश करें यूजीसी अध्यक्ष प्रो कुमार ने कहा कि एनइपी 2020 के लिए यह सही नहीं था. यूजीसी केयर का प्रभाव सीमित रहा. इस कारण दिसंबर 2023 में यूजीसी ने यूजीसी केयर योजना की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनायी. विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर यह फैसला किया है और संस्थानों को सलाह दी है कि वे अपने स्वयं के तंत्र विकसित करने की कोशिश करें. ताकि वे पत्रिकाओं और प्रकाशनों की गुणवत्ता का मूल्यांकन कर सकें. पत्रिकाओं के मूल्यांकन के लिए अपना तंत्र विकसित करें. यह तरीका अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक मानकों के अनुरूप होगा और संस्थानों को विश्वसनीय शोध को मान्यता देने में अधिक लचीलापन प्रदान करेगा. इस बदलाव को आसान बनाने के लिए यूजीसी ने जर्नल मूल्यांकन के लिए कुछ सुझावात्मक मापदंड जारी किये हैं और इस पर प्रतिक्रिया भी मांगी है. सीमित नहीं रहना पड़ेगा, अपने विषय एवं शोध के अनुसार उपयुक्त पत्रिका चुन सकते हैं: अनुभवी संकाय सदस्यों को युवा शोधकर्ताओं का मार्गदर्शन करना चाहिए ताकि वे सही पत्रिका का चयन कर सकें. संस्थानों को स्वयं जागरूकता अभियान चलाने चाहिए और एक मजबूत मूल्यांकन प्रणाली विकसित करनी चाहिए. अब शोधकर्ताओं को किसी केंद्रीयकृत सूची तक सीमित नहीं रहना पड़ेगा और वे अपने विषय एवं शोध के अनुसार उपयुक्त पत्रिका चुन सकते हैं. अगर कोई शैक्षणिक संस्थान खराब गुणवत्ता की पत्रिकाओं को मान्यता देता है, तो उसकी शैक्षणिक साख प्रभावित हो सकती है.
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