यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद देश के अधिकतर लोगों को पता चला कि एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए हर साल भारत से औसतन 18 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स यूक्रेन जाते हैं. सिर्फ यूक्रेन ही नहीं, 44 से अधिक अन्य देशों में भी भारतीय छात्र एमबीबीएस की पढ़ाई करने जाते हैं. देश हो या विदेश, कहीं भी एमबीबीएस करने के लिए नीट में सफल होना जरूरी है. देश में हमेशा नीट का क्वालिफाइंग मार्क्स आम तौर पर 140 से 160 के करीब रहता है, लेकिन इस मार्क्स पर भारत के निजी मेडिकल कॉलेजों में भी एडमिशन मुश्किल है. उधर, विदेशों में एडमिशन के लिए क्वालिफाइंग मार्क्स ही काफी है. हालांकि कुछ संपन्न परिवार के बच्चे 150 अंक लाने के बाद भी देश में एक करोड़ रुपये खर्च कर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन ले लेते हैं, तो कहीं 720 में से 600 अंक हासिल करने वाले योग्य स्टूडेंट्स का भी एमबीबीएस में एडमिशन नहीं हो पाता है. पढ़िए अनुराग प्रधान की रिपोर्ट…
देश में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स के लिए करीब एक करोड़ रुपये लग जाते हैं, जबकि यही कोर्स यूक्रेन, रूस, जार्जिया, तजाकिस्तान, तंजानिया, पोलैंड, बेलारूस, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मलेशिया आदि देशों में 17 से 25 लाख में एमबीबीएस की डिग्री मिल जाती है. लेकिन, विदेश से एमबीबीएस कर भारत लौटने वाले काफी कम संख्या में लोग फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (एफएमजीइ) पास कर पाते हैं.
वर्ष 2018-2019 के दौरान 21351 उम्मीदवार एमएफजीइ में शामिल हुए थे, जिनमें से 3449 उम्मीदवारों ने ही यह परीक्षा पास की. दिसंबर 2019 में 12077 स्टूडेंट्स इस परीक्षा में शामिल हुए. इनमें से मात्र 1969 लोग ही सफल हो सके. जून 2018 में 9274 लोगों ने परीक्षा दी थी, जिनमें से सिर्फ 1480 ही क्वालीफाई कर सके. दिसंबर 2021 में तो तीन स्टूडेट्स में से सिर्फ एक ही सफल हो पाया. एफएमजीइ में पास प्रतिशत कम होने के कारण विदेश के मिलने वाली एमबीबीएस की शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं.
देश के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) यूजी सफल होना जरूरी है. नीट यूजी 2021 में करीब 16 लाख से अधिक स्टूडेंट्स ने नीट के लिए रजिस्ट्रेशन किया था. इनमें से 15.50 लाख स्टूडेंट्स एग्जाम में शामिल हुए और 8.70 लाख से अधिक सफल हुए. नेशनल मेडिकल कमेटी (एनएमसी) के अनुसार देश में 605 मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 90,825 सीटें हैं.
हर साल करीब आठ लाख स्टूडेंट्स नीट क्वालीफाई करते हैं, लेकिन एडमिशन सबका नहीं हो पाता है. यानी पौने आठ लाख सफल उम्मीदवारों को परीक्षा पास करने के बावजूद मेडिकल में एडमिशन नहीं मिल पाता. जिन लोगों को निजी कॉलेजों में एडमिशन मिलता है, उन्हें अच्छी खासी रकम खर्च करनी पड़ती है, जो सबके बस की बात नहीं है. सीटों की संख्या बढ़ी है, लेकिन सफल स्टूडेंट्स की तुलना में सीटें कम हैं.