पटना. लोक जनशक्ति पार्टी में दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान की विरासत को लेकर उनके बेटे चिराग पासवान और चाचा पशुपति पारस में सियासी संग्राम मचा है. बिहार की राजनीति में यह भूचाल रविवार की रात तब आया जब लोजपा के 6 सांसदों में से 5 ने चिराग को छोड़कर उनके चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया. चाचा पशुपति पारस ने भतीजे चिराग पासवान मात देने कु तुरंत बाद लोकसभा के संसदीय दल का नेता पद से उनको हटाकर खुद इसपर कब्जा कर लिया.
भतीजे ने भी चाचा पर पलटवार करते हुए चाचा समेत सभी बागी पांच सांसदों को पार्टी निकाल दिया. अब दोनों पक्ष शह-मात में अपनी विजय के लिए कानूनी विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं. मामला कोर्ट से लेकर चुनाव आय़ोग की चौखट तक ले जाने की तैयारी है. राजनीतिक परिवारों में उत्तराधिकार को लेकर यह पहला सियासी संग्राम नहीं हो रहा है. इससे पहले भी पद और पावर के लिए जंग होते रहे हैं. इसकी एक बानगी यूपी, हरियाणा और महाराष्ट्र में भी दिखी है.
यूपी में चाचा शिवपाल बनाम भतीजे अखिलेश
यूपी में चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच की जंग का ही परिणाम है कि सपा सत्ता से बेदखल हो गई. दरअसल, उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिली तो पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के सामने सीएम पद को लेकर दो विकल्प थे. बेटा अखिलेश यादव और भाई शिवपाल सिंह यादव. पार्टी में ये दोनों मजबूत विकल्प थे. शिवपाल का राजनीतिक करियर और अनुभव अखिलेश के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावी था, लेकिन मुलायम ने भाई की जगह बेटे को चुना. अखिलेश यादव राज्य के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी भी उनके पास ही रही.
मगर युवा भतीजे के अधीन अनुभवी चाचा को काम करना रास नहीं आ रहा था. यही कारण था कि दोनों के बीच शीत युद्ध धीरे-धीरे सतह पर आ गया. झगड़ा शांत कराने के लिए मुलायम ने शिवपाल को 2016 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो अखिलेश ने शिवपाल से पीडब्ल्यूडी, राजस्व और सिंचाई जैसे अहम विभाग उनसे छीन लिए. दो दिन बाद शिवपाल ने मंत्री पद से, उनके बेटे आदित्य ने कोऑपरेटिव फेडरेशन से अपना इस्तीफा दे दिया.
2017 के विधानसभा चुनाव में शिवपाल समर्थकों को जब पार्टी में भाव नहीं मिला. इसका परिणाम यह हुआ कि पारिवारिक कलह के कारण 2017 का सपा चुनाव बुरी तरह हार गई. अगस्त 2018 में शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी नाम से नया दल बनाया, इससे 2019 के चुनाव में भी सपा कुछ खासा नहीं कर सकी. हालांकि शिवपाल की पार्टी ने भी कोई छाप नहीं छोड़ पाई. फिलहाल शिवपाल और अखिलेश के बीच की दूरियां कम तो हुई हैं, लेकिन कोई भी अभी एक-दूसरे का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं है. यूपी में विधानसभा का चुनाव 2022 में होना है. दोनों एक साथ आएंगे, इस पर फिलहाल संशय है.
हरियाणा में अभय बनाम दुष्यंत चौटाला…
हरियाणा की राजनीति में चौटाला परिवार का काफी रसूख है. मुख्यमंत्री और उप प्रधानमंत्री रहे देवी लाल चौटाला के बाद उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला ने लंबे समय तक प्रदेश में सीएम रहे हैं. लेकिन जब 2013 में नियुक्तियों में फर्जीवाड़े के मामले में इंडियन नेशनल लोकदल में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को 10 साल की जेल हो गई.
तब इनेलो की कमान ओम प्रकाश के एक और बेटे अभय चौटाला को मिल गई, लेकिन अजय के भाई दुष्यंत चौटाला राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनायी और 2014 के लोकसभा चुनाव में कुलदीप विश्नोई को हिसार सीट से मात देकर दुष्यंत ने ताकत दिखाई मगर हरियाणा विधानसभा चुनाव में इनेलो हार गई और पार्टी में फूट पड़ गई.
ओम प्रकाश चौटाला ने अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को पार्टी से बाहर कर दिया और इनेलो की कमान अभय चौटाला के हाथ में रहने दी. इससे खिन्न होकर दुष्यंत चौटाला ने दिसंबर 2018 में जननायक जनता पार्टी बनाई. 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने 10 सीटें जीतकर हरियाणा में बीजेपी की सत्ता में वापसी में मदद की. दुष्यंत चौटाला मनोहर लाल खट्टर की सरकार में उप मुख्यमंत्री बने. लेकिन किसान आंदोलन को लेकर उन्हें नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है.
शरद पवार -अजित पवार के रिश्ते चर्चा में
महाराष्ट्र की राजनीति में भी चाचा-भतीजे के बीच अक्सर पावर और पद को लेकर नोक झोक की खबरें सोशल मीडिया पर चलती रहती है. चाचा शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच भी उतार-चढ़ाव भरे रिश्ते हैं. चाचा शरद पवार ने अजित पवार को राजनीति में लाया था. लेकिन कथित सिंचाई घोटाले को लेकर वो अपने चाचा के लिए मुसीबत बन गए हैं. अजित पवार के बेटे पार्थ पवार के मावल लोकसभा सीट से मई 2019 में चुनाव हारने पर भी दोनों में मनमुटाव की सूचना सामने आयी थी. फिर नवंबर 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे जब किसी पार्टी के पक्ष में नहीं आए तो अजित पवार ने अपने चाचा को भरोसे में लिए बिना पार्टी के कुछ विधायकों के साथ बीजेपी से हाथ मिला लिया था.