राज्य के पारंपरिक विश्वविद्यालयों पर 2600 करोड़ के उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया

राज्य के सभी पारंपरिक विश्वविद्यालयों पर 2600 करोड़ रुपये से अधिक के उपयोगिताप्रमाण पत्र बकाया है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 24, 2024 12:35 AM

– सर्वाधिक उपयोगिता प्रमाणपत्र एलएनएमयू, बीआरएबीआरयू, बीएनएमयू,टीएमबीयू,पाटलिपुत्र और पटना पर बकाया – शिक्षा विभाग ने जारी किये उपयोगिता प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने के आदेश संवाददाता,पटना राज्य के सभी पारंपरिक विश्वविद्यालयों पर 2600 करोड़ रुपये से अधिक के उपयोगिताप्रमाण पत्र बकाया है. शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालयों को हिदायत दी है कि वह अविंलब प्रमाणपत्र उपलब्ध कराएं. आधिकारिक जानकारी के अनुसार विश्वविद्यालयों पर यह बकाया पिछले चार वित्तीय वर्षों मसलन 2019-20, 2020-2021, 2021-2022, 2022-2023 और 2023-2024 के उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया हैं. सर्वाधिक उपयोगिता प्रमाणपत्र के बकाया ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पर हैं. इसने अभी तक 500 करोड़ के खर्च के उपयोगिता प्रमाणपत्र अब तक नहीं दिये हैं. आधिकारिक जानकारी के अनुसार भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय पर 487 करोड़, पाटलिपुत्रा विश्वविद्यालय पर 383 करोड़, तिलका मांझी बिहार विश्वविद्यालय पर 344 करोड़, बीएन मंडल विश्वविद्यालय पर 271, पटना विश्वविद्यालय पर 178 करोड़, मुंगेर विश्वविद्यालय पर 119 करोड़, पूर्णिया विश्वविद्यालय पर 69.59 करोड़, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्याय पर 28.72 करोड़, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय पर 28.36 करोड़, मगध विश्वविद्यालय पर 26.31 करोड़ और मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय पर 6.60 करोड़ से अधिक के उपयोगिताप्रमाण पत्र बकाया हैं. आधिकारिक जानकारी के अनुसार मुंगेर विश्वविद्यालय पर पिछले चार सभी वित्तीय वर्षों के उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया है. मगध विश्वविद्यालय, टीएमबीयू , बीएनएमयू और बीआरएबीआरयू पर 2020-21 का छोड़ कर अन्य तीनों वित्तीय वर्ष , पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय पर 2021-22 को छोड़कर शेष सभी वित्तीय वर्षों का , ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पर पिछले केवल दो वित्तीय वर्षों का , जय प्रकाश और वीकेएसयू पर पिछले तीनों वित्तीय वर्ष के, केएसडीएस, पटना विवि, एमएमएच अरबी-फारसी विवि और पूर्णिया विश्वविद्यालय पर केवल पिछले वित्तीय वर्ष के उपयोगिता प्रमाणपत्र बकाया हैं. उल्लेखनीय है कि राज्य और केंद्रीय अनुदान खर्च करने के बदले विश्वविद्यालयों को उस राशि के उपयोग होने का प्रमाणपत्र देना होता है. इनके आधार पर ही उस संस्थान की साख भी निर्भर करती है.

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