लक्ष्मण उतेकर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘छावा’ 14 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. यह फिल्म शिवाजी सावंत की लिखी नॉवेल पर आधारित है, जिसमें छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार को विक्की कौशल निभा रहे हैं. शनिवार को गांधी मैदान स्थित मोना सिनेमा में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए. साथ ही, अपने बिहारी फैंस को संबोधित करते हुए कहा कि मैं बहुत एक्साइटिड था, जब मुझे पता चला कि पटना में भी मुझे प्रमोशन के लिए जाना है. कार्यक्रम में विकी कौशल का स्वागत मराठा शैली में किया गया.
पहली बार जल प्रोमो का हुआ रिलीज
विक्की ने कहा कि पटना के साथ मेरा काफी पुराना नाता रहा है. इंडस्ट्री की जब मेरी यात्रा शुरू हुई थी, तो मैं गैंग्स ऑफ वासेपुर में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर शुरू किया था. तब मैं पहली बार पटना शूटिंग के लिए आया था बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में. आज 13 साल बाद बतौर अभिनेता छावा को लेकर आया हूं. वहीं, फिल्म का जिक्र करते हुए कहा कि मराठा वॉरियर (Maratha Warrior) नेचर का काफी प्रयोग करते थे. इसलिए, फिल्म में भी चार तत्वों का प्रयोग किया है. जिसमें जल, अग्नि, पृथ्वी व वायु. पृथ्वी का प्रोमो हमने रिलीज कर दिया है. जल का पहली बार पटना (Patna) में रिलीज कर रहे हैं. इसके बाद पूरी दुनिया देखेगी.
पटना के लिट्टी चोखा का स्वाद कहीं और नहीं
तारामंडल के पास मौर्य लोक परिसर में अभिनेता विकी कौशल (Actor Vicky Kaushal) ने लिट्टी चोखा का स्वाद चखा. इसके बाद लंच के लिए होटल तक पहुंच गए. लेकिन, लिट्टी चोखा इतना भा गया कि होटल में भी एक प्लेट ऑर्डर किया. उन्होंने कहा कि बनारस में पिछली बार लिट्टी चोखा (Litti Chokha) खाया था लेकिन, पटना जैसा स्वाद नहीं मिला. साथ ही, लोगों से आग्रह किया कि 14 फरवरी को सिनेमा घर में गर्दा उड़ा दीजिए और इस बार उस दिन को छावा दिवस के रूप में मनाइए. इसके अलावा प्रभात खबर के साथ उन्होंने विशेष बातचीत की. पढ़ें साक्षात्कार के अंश..
Q. छावा के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी और किन-किन चीजों का प्रशिक्षण लिया?
– तकरीबन सात माह की तैयारी रही. हर रोज एक से डेढ़ घंटे घुड़सवारी, शाम में तलवारबाजी, भाले और लाठी सीखनी होती थी. दिन में दो बार जिम जाता था, उसके लिए 25 किलो वजन बढ़ाया था. सात बार खाना होता था. मैं खाना खाकर थक जाता था. खाने में तेल, मसाला आदि का ध्यान रखना होता था. इसमें कोई समझौता नहीं करना था.
Q. किरदार को समझने के लिए क्या करना पड़ता है?
– किसी भी किरदार के लिए तीन पहलू फिजिकैलिटी, इमोशनल और मेंटलिटी को समझना होता है. छावा (Chhaava) के लिए भी मैंने काफी तैयारी की. ऐतिहासिक फिल्मों में थोड़ी चुनौती होती है, क्योंकि उस दौर को हमने देखा नहीं है. किताबों और पेंटिंग्स के माध्यम से ही समझने की कोशिश की है.
Q. असिस्टेंट डॉयरेक्टर से थिएटर का खुमार कैसे और कब चढ़ा?
– साल 2010 में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में असिस्टेंट डायरेक्टर (Assistant Director) था. तब मनोज वाजपेयी, पीयूष मिश्रा और पंकज त्रिपाठी से पता चला कि थिएटर बहुत गहरा और समृद्ध माध्यम है. उस समय मेरी उम्र 22 साल थी. फिर मैंने बंबई में नसीर साबह, मानव कौल और कुमुद मिश्रा के साथ थिएटर करना शुरू किया. थिएटर में रियाज करते हैं, अपनी बॉडी और सांसों से अवेयर होते हैं. लाइव ऑडियंस होती है, कट का कोई चांस नहीं होता. थिएटर एक्टर का मीडियम है, जबकि सिनेमा निर्देशक का माध्यम है, जिसमें एडिट और बदलाव हो सकते हैं.
Q. रस्मिका आपके साथ लीड रोल निभा रही हैं, कैसा अनुभव रहा?
– रस्मिका (Rashmika Mandanna) के साथ पहली बार फिल्म कर रहा हूं. वह बहुत प्यारी अभिनेत्री और इंसान हैं. हमेशा दूसरों के प्रति अच्छी रहती हैं. यही पॉजिटिविटी फिल्म में भी चाहिए थी. हिस्टोरिकल फिल्मों में हजारों लोगों की भीड़, हाथी, घोड़े, आदि को मैनेज करना स्ट्रेसफुल हो जाता है. लेकिन उन्होंने शानदार काम किया है. वह जितनी महाराष्ट्रियन लग रही थीं, उतनी ही बेहतरीन थीं.
Q. युवाओं के लिए क्या मैसेज देंगे?
– मैं मानता हूं कि अपने ऐतिहासिक देश में हम जिस आजादी से रह रहे हैं, उसमें हमारे योद्धाओं का बहुत बड़ा योगदान है. आज के इंस्टाग्राम (Instagram) वाले जमाने में हम अक्सर दूसरों की जिंदगी देखते हैं. इसके साथ ही रियल हीरो को जानना बहुत जरूरी है. इंटरनेट के इस दौर में लोगों का ध्यान कम हो गया है. हमारा देश ऐतिहासिक है. हमारे यहां वास्तविक सुपर हीरो (Superhero) होते हैं. वहीं, विदेशी फिल्मों में काल्पनिक हीरो होता है.
Q. फिल्म का ऑफर जब आपको मिला तो कैसा रिएक्शन था?
– ‘जरा हटके जरा बचके’ की शूटिंग के दौरान निर्देशक ने फिल्म के बारे में बताया था. उन्होंने मुझसे कहा, यह हमारी दूसरी फिल्म होगी. मैंने इतिहास की किताबों में छत्रपति संभाजी महाराज (Chhatrapati Sambhaji Maharaj) के बारे में पढ़ा था, इसलिए मैं इस प्रोजेक्ट को लेकर बहुत उत्साहित था. मुंबई से होने के कारण इस फिल्म से भावनात्मक जुड़ाव था.
Q. फिल्म में औरंगजेब से आपकी मुलाकात कब और कैसे होती होती है?
– औरंगजेब का किरदार अक्षय खन्ना (Akshaye Khanna) ने निभाया है. मुलाकात देखने के लिए तो सिनेमा घर में जाना होगा. हालांकि, फिल्म में औरंगजेब (Aurangzeb) जब दिल्ली से संभाजी महाराज को निकले थे, तो ढूंढने में 9 साल लग गये थे. वह लाखों की सेना लेकर आए थे, जबकि इनके पास सिर्फ 25 हजार सेना थी. फिर भी, नहीं पकड़ पाए. कैसे खोजते रहे व नहीं पकड़ पाए, जब पकड़ पाए तो कैसे क्या हुई, इसपर यह देखने को मिलेगी. फिल्म रिलीज होने के बाद मैं उनसे मिलने उनके घर भी जाऊंगा.