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Video: मॉर्डन शादियों से गायब हुए शादी-विवाह के पारंपरिक गीत-संगीत, अब केवल बजता है डीजे

पहले शादी विवाह के अवसर पर या किसी भी पारिवारिक समारोह पर जब दूर-दूर से नाते रिश्तेदार जुटते थें, तब माहौल खुशनुमा हो जाता था. महिलाएं गीत-संगीत के माध्यम से ही एक दूसरे को छेड़ती और हंसी मजाक करती थीं. शादी में महिलाओं द्वारा गाली गायी जाती थीं और ऐसा नहीं करने पर रिश्तेदार शिकायत तक करते थें. पर अब ये परंपराएं खत्म हो रही हैं.

रिपोर्ट : जुही स्मिता

Video भारतीय परंपरा व संस्कृति में लोकगीत और लोक कथाओं का अहम योगदान है, जो मनुष्य को उसकी संस्कृति व समाज से जोड़ती है. लोकगीतों की जो परंपरा हमारे पूर्वजों ने बनायी है, उनमें एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है. तभी तो शादी-विवाह से लेकर छठ्ठी, सतइसा व अन्य समारोह गीतों के बिना अधूरा रह जाता है. पहले शादी विवाह के अवसर पर या किसी भी पारिवारिक समारोह पर जब दूर-दूर से नाते रिश्तेदार जुटते थें, तब माहौल खुशनुमा हो जाता था. महिलाएं गीत-संगीत के माध्यम से ही एक दूसरे को छेड़ती और हंसी मजाक करती थीं. शादी में महिलाओं द्वारा गाली गायी जाती थीं और ऐसा नहीं करने पर रिश्तेदार शिकायत तक करते थें. पर अब ये परंपराएं खत्म हो रही हैं. हालांकि शहर में कई महिलाएं और लोक कलाकार ऐसे हैं, जो इस परंपरा को जीवित रखने की कोशिश में लगे हैं.

 कुछ परंपराओं को जोड़े रखना जरूरी : रंजना झा
‘राम जी से पूछे जनकपुर के नारी, बता द बबुआ लोगवा देत काहे गारी’… यह गाना काफी मशहूर है. यह लोकगीत उस समय से चलन में रहा है, जब भगवान राम की शादी हुई थी. उस समय जनकपुर की महिलाएं भगवान राम के बहाने उनके पिता तो गाली देती थी, तब से यह चलन में है. पर अब मॉडर्न महिलाएं शादी-विवाह में नहीं गातीं है, केवल डीजे चलता है. बदलते वक्त के साथ यह सब अब गायब होने लगा है. यह कहना है मिथिला की लोक गायिका रंजना झा का. वे कहती हैं, कुछ परंपराओं को जोड़े रखना जरूरी है. इसलिए बचपन से मैंने अपने माता-पिता से गाना सीखा है. मुझे इस क्षेत्र में 43 साल हो चुके हैं. आज बदलते वक्त के साथ पारंपरिक गाने गायब होने लगे हैं. हालांकि कई लोक गायक व गायिका गाना गाकर यूट्यूब पर अपलोड करते हैं. हमारी संस्था संगीत सुधा फाउंडेशन भी नयी पीढ़ी को इससे जोड़ती है.


पारंपरिक लोक गीत हमारी धरोहर हैं :  देवी
हमारे लोक गीत हमारी परंपरा की परिचायक हैं और यह सदियों से चली आ रही है, जो अपने आप में बहुत पावरफुल है. हमने कई मंगल गीत, शादी ब्याह के पारंपरिक गानों को गाया है, जिसे लोग अपने घरों में शादी विवाह पर जरूर बजाते हैं. क्योंकि आज की जनरेशन इसे सीखना और समझना नहीं चाहती है. हमारे जैसे कई कलाकार इन गीतों को संरक्षित करने के साथ-साथ आज की पीढ़ी को इससे जोड़ रहे हैं. मेरे पिता मेरे आदर्श रहे हैं. घर में और आस पास की महिलाओं की ओर से गाये जाने वाले इन गीतों को सुनकर बड़ी हुई और इसे सीखना शुरू किया. इनमें जो मिठास है इसे सुनने के बाद आप इसे महसूस कर सकते हैं. गांवों में अब भी इन गीतों को गाने की परंपरा है, पर शहरी जीवन से ये गीत लगभग विलुप्त हो चुके हैं.

मेरे पास आज भी कई गीतों का संग्रह है : पल्लवी मिश्रा
परिवार में बुआ की शादी पर आयी महिलाओं से मैंने पहली बार शादी के गीत को सुना था. धीरे-धीरे आस-पास के घरों में होने वाली शादियों में जाने का मौका मिला और महिलाओं से इन गीतों को सीखना शुरू किया. फिर लगा कि मुझे भी लोक संगीत के परंपरा को आगे बढ़ाने में अपना योगदान देना चाहिए और आज की पीढ़ी को इसके महत्व पर चर्चा की जरूरत है. मेरी गुरु रंजना झा हैं, जिनसे मैंने लोक गायिकी सीखी है. पिछले 15 साल से मैं गायकी के क्षेत्र में हूं.बिना किसी साज के इन गीतों में एक मिठास है, जो आपको अपने जड़ों से जोड़े रखती है. मेरे पास ऐसे कई गीतों का संग्रह आज भी मौजूद है, जो आगे चलकर आने वाली पीढ़ी के काम आयेगी. शादी के गीत में हर विद के गाने हैं और यह आपको भावुक कर देंगे.

विशेष अवसरों पर लोकगीत गाने की परंपरा है : सुनीता सिन्हा
अपने यहां विशेष अवसरों पर कई तरह के लोकगीतों को गाने की परंपरा रही है. इनमें से ही एक है- ‘गाली गीत’. पहले लोक उत्सवों को इन गाली गीतों के बिना अधूरा माना जाता था. कई बार तो न सुनाये जाने पर लोग शिकायत किया करते थे. मैं पिछले 10 साल से शादी के पारंपरिक गीत गा रही हूं. वे बताती हैं कि संयुक्त परिवार की वजह से बचपन से ही पारंपरिक संगीत से जुड़े रहने का मौका मिला और इसे सीखा. मेरी तीन बेटियां हैं और मैंने उन्हें भी इन गीतों को सिखाया है, जो हमारी संस्कृति के परिचायक है. गाना मैथिली, मगही और हिंदी में गाती हूं. आज की पीढ़ी और महिलाएं इन गीतों को सीखना नहीं चाहती क्योंकि वह इनसे रूबरू नहीं हुई है. सीखने की ललक ऐसी होती है कि आपको जहां मौका मिले आप इसे सीखते हैं. 

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