23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Water Crisis: अप्रैल में ही सूख गयी बिहार की 60 से अधिक नदियां, भूजल स्तर में रिकार्ड गिरावट

Water Crisis: बिहार में गंभीर जल संकट पैदा हो चुका है. अप्रैल में ही बिहार की 60 से अधिक नदियां सूख गयी हैं. कोसी जैसे इलाके में भूजल स्तर में रिकार्ड गिरावट दर्ज की गयी है.

Water Crisis: पटना. बिहार में पानी का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. पिछले पांच-छह वर्षों से बिहार में गर्मियों के दस्तक देने के साथ ही नदियों के सूखने का सिलसिला आरंभ हो जाता है. इस साल यह समस्या और विकराल बनकर सामने खड़ी है. एक ओर जहां पोखर से नदी तक सूख रही है, वहीं भूजल स्तर भी अपने रिकार्ड गिरावट पर पहुंच चुका है. कुआं, तालाब, आहर-पईन के सूखने का सिलसिला जारी है. नहरों में पानी नहीं है. इन जल स्रोतों में पानी पहुंचने के रास्ते अतिक्रमण कर अवरुद्ध कर दिए गए हैं. इस कारण इनमें पानी का भंडार नहीं हो पा रहा है. हाल ये है कि अप्रैल में ही बिहार की 60 से अधिक नदियां सूख चुकी हैं. बैशाख में ही इन नदियों में पानी की जगह दूर-दूर तक रेत नजर आ रहे हैं. नदी की तलहटी पर घास झाड़ी उग आये हैं. यह पहली बार है जब अप्रैल में ही नदियों में पानी नहीं है. आलम यह है कि अब तक पांच दर्जन से अधिक नदियां सूख चुकी हैं.

सूख गईं बिहार की ये नदियां

नूना, पुनपुन, बनास, अधवारा, खिरोई, झरही, अपर बदुआ, बरंडी, पश्चिम कनकई, चिरायन, पंडई, सिकरहना, फरियानी, परमान, दाहा, गंडकी, मरहा, पंचाने, धोबा, चिरैया, मोहाने, नोनाई, भूतही, लोकाईन, गोईठवा, चंदन, चीरगेरुआ, धर्मावती, हरोहर, मुहानी, सियारी, माही, थोमाने, अवसाने, पैमार, बरनार, अपर किउल, दरधा, कररुआ, सकरी, तिलैया, मोरहर, जमुने, नून, कारी कोसी, बटाने, किउल, बलान, लखनदेई, खलखलिया, काव, कर्मनाशा, कुदरा, सुअवरा, दुर्गावती, कमला धार, तीसभवरा, जीवछ, बाया, नून कठाने, डोर, कुंभरी, सोइबा, सांसी, धनायन, अदरी, केशहर, मदाड़, झिकरिया, सुखनर, स्याही, बलदईया, बैती, चन्द्रभागा, छोटी बागमती, खुरी, फल्गू, गूवाया, कंचन, ठोरा, छाड़ी, सोन, धनखड़.

डंपिंग जोन के रूप में हो रहा नदियों का इस्तेमाल

बिहार की इन नदियों को कभी जीवन रेखा कहा जाता था, लेकिन इन नदियों की पेट गाद से भर चुका है. नदियों की काया लगातार दुबली होती जा रही है. पानी को अपनी पेट में जमा करने की इनकी क्षमता कमतर होती गई है. साथ ही नदियों के बड़े भूभाग पर अतिक्रमण भी पानी के सूखने का कारण है. कई इलाकों में नदियों व पोखरों का किनारा भरकर लोग घर बना रहे हैं. आबादी बढ़ने के कारण नदियों के किनारे बसे शहरों में खासतौर से यह समस्या भयावह बन गई है. अतिक्रमण से नदियों के पाट सिकुड़ गये हैं. कई जगहों पर प्रवाह बंद हो गया है. नदियों का इस्तेमाल डंपिंग जोन के रूप में भी हो रहा है. जल विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, अनियमित व कम बारिश, जमीन का रिचार्जन होना, गाद भरते जाना और नदियों के मूल स्रोत से पानी नहीं मिलने से नदियां संकट में हैं. नदियों के असमय सूखने का बड़ा कारण जंगलों का बेतहाशा कटना भी है. इससे बारिश का पानी सीधे जमीन पर जा रहा, जिससे पानी और गाद दोनों नदियों में पहुंच रही है.

Also Read: Bihar: राबड़ी देवी ने बहू राजश्री को सिखाया चक्की चलाना, तेजस्वी की पत्नी ने इंस्टा पर शेयर की फीलिंग

पलायन को मजबूर हैं पशुपालक

नदियों के सूखने से कई दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं. बिहार में भू-जल स्तर अप्रत्याशित रूप से नीचे गिर रहा है. राजधानी पटना का भूजल स्तर ही 50 फुट नीचे चला गया है. इससे पेयजल संकट पैदा हो गया है. कई इलाकों में जलस्तर नीचे चले जाने से चापाकल बंद हो गये हैं. जलापूर्ति की योजना बाधित हो चुकी है. कोसी जैसे इलाके में भी गंभीर पेयजल संकट से लोगों को जूझना पड़ता है. कैमूर-गोपालगंज के कई इलाकों में मवेशी पालकों को दूसरी जगह पलायन करना पड़ रहा है. लोगों का कहना है कि राज्य सरकार की ओर से जल-जीवन हरियाली अभियान के तहत जल स्रोतों को अतिक्रमण मुक्त कराने का अभियान चल रहा है, लेकिन इसका लाभ तभी मिलेगा जब नदियों के गाद प्रबंधन की कोई ठोस कार्य योजना बने. बहरहाल, नदियों के सूखनेकी समस्या कितनी गंभीर होगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें