Interview : जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा- पानी के लिए दुनिया में हो रहे युद्ध, नाम दिया जा रहा धर्म का
प्रभात खबर कार्यालय आये प्रतिष्ठित मेगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने जल संकट को अंतरराष्ट्रीय बताते हुए इसके समाधान के भी उपाय बताये.
मिथिलेश, पटना
Interview Of Water Man Rajendra Singh : जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा है कि दुनिया भर में हुए दर्जन भर से अधिक युद्धों का वास्तविक कारण पानी है. मौजूदा फिलस्तीन और इजरायल के बीच हो रहे युद्ध का कारण भी जोर्डन नदी का जल ही है. लेकिन, इन युद्धों का कारण धर्म बताया जा रहा है. उन्होंने कहा कि हम जितनी मात्रा में जल धरती से बाहर निकाल रहे हैं, उतनी मात्रा में जमा नहीं कर पा रहे. पानी पर पिछले पचास सालों से काम कर रहे राजेंद्र सिंह ने 127 देशों की यात्रा की है. उन्होंने पानी संरक्षण को लेकर बिहार खास कर युवाओं को पांच सूत्री संदेश भी दिया.
- सवाल : बिहार से लेकर पूरे देश में पानी संकट है. एक ओर वर्षा नहीं होने से सूखे की स्थिति है, वहीं कुछ इलाकों में बाढ़ की नौबत आ गयी है, ऐसा क्यों?
- जवाब : त्रेता युग में भी राजा जनक के काल में सूखे की स्थिति आयी थी. जनक ने रानी के साथ खेत में हल चलाया, उनके शरीर से निकले पसीने से बारिश हुई. द्वापर युग में भी कुछ इस तरह की घटनाएं देखने को मिलती हैं. अभी भी रास्ता बचा है. प्रकृति ने समाधान का भी रास्ता दिखाया है. क्लाइमेट बहुत ही खराब स्थिति में है. धरती का पेट खाली हो रहा है. यही कारण है कि एक साथ बाढ़ और सूखे का संकट हमें झेलना पड़ रहा है. पानी और मिट्टी के सरंक्षण पर ध्यान देना होगा. प्रकृति से प्यार करने वाले कानूनों पर अमल करना होगा. जागरूकता के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है. सिर्फ मीटिंग, इटिंग और चिटिंग हो रही है. धरातल पर समाधान नहीं दिख रहा. पूरी दुनिया बेपानी होकर उजड़ रही है. पानी संकट से जूझ रहे देशों के लोगों को दुनिया रिफ्यूजी समझ रही है. दक्षिण अफ्रीका और कुछ एशियन देशों के लोग यूरोप की ओर बढ़ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय तनाव का यही मूल कारण है. टर्की ने छह डैम बना दिये, इससे सीरिया जैसे खेतिहर देश की परेशानी बढ़ गयी. जोर्डन नदी का पानी इजरायल ने अपनी डिफेंस मिनिस्ट्री को सौंप दिया, इससे फिलिस्तिनियों को दिक्कत होने लगी. युद्ध का ताजा कारण यही है.
- सवाल : देश में भी पानी को लेकर विकराल स्थिति होती जा रही है?
- जवाब : यह सही है. इसका कारण विद्या और शिक्षा के अंतर को नहीं समझना है. शिक्षा पैसा बनाने की सीख देती है. जबकि विद्या हमें सर्व गुण संपन्न बनाती है. चंबल में जब तक पानी का अभाव था, लोग बंदूकें लेकर बागी बन रहे थे. वहां तीन सौ तालाबों को जीवित किया. अब देखिये वहां तीन हजार बागी किसान बन गये. मेरी समझ है कि शिक्षा ने शोषण की तकनीक को बढ़ावा दिया. इंजीनियर धरती में छिपे वाटर बैंक का पता लगा उसे निकालने में लगे हैं. वर्षा के पानी को जमा कर फिर उसे धरती में वापस भेजे जाने की तकनीक हमें नहीं दिख रही. पटना की ही बात लीजिये. यहां यूपी से आ रही गंगा नदी ढलान की ओर है. लेकिन, जब यूपी में ही पानी का प्रवाह रोक लिया गया तो बिहार और पटना में उसकी धारा कमतर तो होगी ही.
- सवाल : पूर्व में पानी संकट इस तरह नहीं था, क्या कारण हैं?
- जवाब: आप नालंदा विवि को देखिये. वहां दस हजार छात्र और दो हजार शिक्षक थे. विवि के पास खुद के 52 तालाब थे. साल दो साल सूखे की नौबत भी आयी, तो इन 12 हजार लोगों के पीने के पानी का संकट नहीं होता था. जबतक नालंदा में विद्या थी, पानी का संकट नहीं देखने को मिलता है. लेकिन, शिक्षा ने श्रमनिष्ठ का हरण कर लिया है. प्रकृति से लोगों के प्रेम का संबंध दूर हो गया. यदि हम शिक्षा और विद्या का फर्क समझ लेंगे तो बाढ़ और सूखे का समाधान निकाल पायेंगे. आज की शिक्षा शोषण, प्रदूषण को बढ़ाने और अतिक्रमण करने की सीख देती है. इससे इतर हमें विद्या को प्राथमिकता देनी होगी. शिक्षा से लाभ होता है और विद्या शुभ फल देती है.
- सवाल : पिछले दिनों से तापमान में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है, सैकड़ों की संख्या में लोगों की मौतें हो गयी, क्या रास्ता है?
- जवाब : प्रकृति पर हमें बहुत विश्वास है. निष्ठा भी है और वो हमारी इष्ट भी है. भरोसा है कि वो हमें जल्द खत्म नहीं होने देगी. गुस्सा है पर हमारा अंत नहीं करेगी. हमें अपनी जिम्मेवारी को समझना होगा, केवल हकदारी से काम नहीं चलेगा. और, यही हकदारी के कारण तापमान में बढ़ोतरी होती जा रही है. बढ़ते तापमान को कम करने के लिए जल और मिट्टी के संरक्षण पर ध्यान देना होगा. पानी का दुरुपयोग नहीं हो, अनुशासित होकर इसका उपयोग करें. कार्बन डायआक्साइड को हटाने के लिए हरियाली को बढ़ाना होगा. मिट्टी के कटाव को रोकना होगा और नमी को मेंटेन रखना होगा. पर्यावरण को लेकर बने कानूनों का पालन करना होगा. नदियों के साथ अच्छा व्यवहार करना होगा और प्रकृति के प्रति नरमी बरतते हुए कुंभ परंपरा को अमल में लाना होगा. प्रत्येक 12 वर्ष पर लगने वाले कुंभ में जहर और अमृत को अलग-अलग रखने पर बहस-मंथन होता था. हमें इसी प्रकार प्रदूषित और साफ पानी को अलग-अलग रख कर उसके उपयोग के नियम बनाने होंगे.
- सवाल : वाटर हार्वेस्टिंग की तो बात हो रही, पर इसका लाभ उस रूप में दिख नहीं रहा?
- जवाब : वाटर हार्वेस्टिंग की बात तो अच्छी हो रही है लेकिन किसी निकाय ने ऐसा सिस्टम नहीं बनाया, जिसका लाभ आम लोगों, सरकार और प्रकृति को मिले. बिहार एक पानीदार प्रदेश है. पूरे देश को अपना पानी दे सकता है. पानी यहां आ तो रहा लेकिन प्रबंधन नहीं हो रहा. पानी का प्रबंधन जरूरी है. जहां से पानी का प्रवेश हो रहा, उसी प्वाइंट पर पानी का प्रबंधन करना होगा. पानी आता है और बाहर चला जाता है. हमारे राजस्थान में एक कहावत है, बादल तो आते हैं हर साल मेरे गांव में, बरसते हैं, पर पानी दौड़ कर चला जाता है. उसे पकड़ कर धरती माता की गोद में बिठा दें तो फिर नजर नहीं लगेगी सूखे की. हमें देखना होगा कि भौगोलिक कारणों से बाढ़ पर कंट्रोल नहीं हो सकता, लेकिन प्रबंधन तो हो सकता है. बिहार को अपने पानी का सामुदायिक प्रबंधन करना होगा. सरकार को आगे आना होगा, समाज को मौका देना होगा.
- सवाल : बिहार के लिए आपके क्या संदेश हैं?
- जवाब : बिहार ज्ञान का केंद्र रहा है. आप लाभ के काम तो करते हैं, करते रहो, लेकिन शुभ के साथ करो. इससे समृद्धि आयेगी. पानी और हवा के प्रदूषण को रोक हरियाली को बढ़ाना होगा. एक अच्छे नागरिक की तरह हर आदमी को व्यवहार करनाहोगा, तभी हम पुराने बिहार को वापस पा सकेंगे.