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ठनके को लेकर डेंजर जोन में बिहार, धरती से बादल की बढ़ती नजदीकयां बरसा रहीं मौत

bihar Weather alert बिहार सहित पूरे हिमालय की तराई में पिछले आधा दशक से ठनका एक भीषण आपदा के रूप में तब्दील होता जा रहा है़ इसकी वजह है कि खास प्रकार के कपासी बादलों का तेजी से बनना.

By Prabhat Khabar News Desk | July 6, 2020 6:05 AM

पटना : बिहार सहित पूरे हिमालय की तराई में पिछले आधा दशक से ठनका एक भीषण आपदा के रूप में तब्दील होता जा रहा है़ इसकी वजह है कि खास प्रकार के कपासी बादलों का तेजी से बनना़ इनके बनने की आवृत्ति इतनी तेज है कि मेघों की टकराहट जल्दी-जल्दी होती है़ यह बादल धरती से बेहद नजदीक बन रहे हैं.बादलों की मोटाई इनके निचले सिरे से 10 किमी ऊपर तक देखी गयी है़ यह बादल जितनी ऊंचाई पर पहुंचता है, ठनका गिरने की तीव्रता उतनी ही अधिक होती है.

पिछले तीन दिनों में इन बादलों की मोटाई इसके निचले सिरे से आठ किमी ऊपर तक थी़ फिलहाल इस साल एक अप्रैल से पांच जुलाई तक प्रदेश में 247 लोगों की मौत ठनके से हो गयी है़ मौसम विज्ञानी प्रो प्रधान पार्थ सारथी ने बताया िक वज्रपात पहले भी होता रहा है़ लेिकन पिछले सालों में इसकी रफ्तार बढ़ी है़ दरअसल निचले व मध्यम बादल, जो धरती से दो से पांच किमी ऊपर बन रहे हैं, उनमें ताप की अधिकता से नमी भी तेजी से ऊपर उठती है़ यह बादल को तेजी से बनाने में सहायक भी होती है़ उनके मुताबिक बादलों के ऊपर पॉजिटिव व निचला सिरा निगेटिव चार्ज लिये होता है. धरती उस समय पॉजिटिव चार्ज लिये होती है. इससे ठनका ज्यादा घातक होता है, क्योंकि धरती गीली होती है. शहरों में ठनके की घटना दुर्लभ होती है, क्योंकि उसे समुचित नमी व धनात्मक आवेश नहीं मिल पाता.

वर्टिकल होते हैं कपासी बादल, सीधे ऊपर उठते हैं

कपास के रंग के काले घने बादलों का निर्माण वर्टिकल होता है़ ये सीधे ऊपर उठते हैं. ये उसी तरह ऊपर उठते हैं, जिस तरह चाय या दूध खौलते हुए ऊपर की ओर उठता है. उसी प्रकार गर्मी और नमी पाकर ये बादल ऊपर पहुंचते है. इसकी मोटाई बादल के निचले सिरे से 10 किमी तक बन रही है. सामान्य तौर पर पानी बरसाने वाले बादलों की मोटाई चार से पांच किमी ही होती है.

जागरूकता बढ़ाने की जरूरत

पूर्व चेतावनी के लिए लोगों को भारतीय मौसम विज्ञान का ‘दामिनी एप’डाउनलोड करना चाहिए. इसमें सेटेलाइट, राडार और जमीन स्थित वज्रपात मापक विशेष यंत्रों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर पूर्वानुमान जारी किया जाता है. विश्व में यह अपनी तरह का अनोखा एप है. दरअसल ठनके से होने वाली मौतों को रोकने के लिए चेतावनी और जागरूकता को बढ़ाने की जरूरत है. साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों का इन्फ्रास्ट्रचर मजबूत करना होगा. तड़ित रोधी मकान बनाये जाएं. ऐसी आपदा से नुकसान रोकने के लिए सामाजिक और आर्थिक बदलाव तेजी से लाने होंगे.

कर्नल संजय कुमार श्रीवास्तव , चेयरपर्सन क्लाइमेट रेजिलिएंट आॅब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल

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