क्या है ‘सुशांत सिंह राजपूत का परिवार’ होने का मतलब? नौ पेज में परिवार ने बयां किया दर्द, कहा- दी जा रही सबक सिखाने की धमकी
पटना : अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच की जा रही है. वहीं, उनके परिवार ने नौ पृष्ठ का बयान जारी कर बताया है कि 'सुशांत सिंह राजपूत का परिवार' होने का मतलब क्या है? मालूम हो कि सुशांत के परिवार में चार बहनें और बूढ़े पिता हैं. मां का निधन हो चुका है. साथ ही जारी बयान में कहा गया है कि परिवार को सबक सिखाने की धमकी दी जा रही है. परिवार के सदस्यों पर कीचड़ उछाला जा रहा है. साथ ही पत्र में सुशांत के परिवार ने कई सवाल उठाये हैं.
पटना : अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच की जा रही है. वहीं, उनके परिवार ने नौ पृष्ठ का बयान जारी कर बताया है कि ‘सुशांत सिंह राजपूत का परिवार’ होने का मतलब क्या है? मालूम हो कि सुशांत के परिवार में चार बहनें और बूढ़े पिता हैं. मां का निधन हो चुका है. साथ ही जारी बयान में कहा गया है कि परिवार को सबक सिखाने की धमकी दी जा रही है. परिवार के सदस्यों पर कीचड़ उछाला जा रहा है. साथ ही पत्र में सुशांत के परिवार ने कई सवाल उठाये हैं.
नौ पेज में लिखे गये पत्र की शुरुआत फिराक जलालपुरी के शेर से की गयी है. लिखा है कि ”तू इधर-उधर की ना बात कर ये बता कि काफिला क्यूं लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है.” साथ ही पत्र में लिखा है कि तमाशा करनेवाले और देखनेवाले ये नहीं भूले कि वो भी इसी दुनिया के लोग हैं.
क्या है पत्र में?
सुशांत का परिवार
तू इधर-उधर की ना बात कर
ये बता कि क़ाफ़िला क्यूं लुटा।
मुझे रहजनों से गिला नहीं
तेरी रहबरी का सवाल है।।
फ़िराक़ जलालपुरी
कुछ साल पहले की ही बात है. ना कोई सुशांत को जानता था, ना उसके परिवार को. आज सुशांत की हत्या को लेकर करोड़ों लोग व्यथित हैं और सुशांत के परिवार पर चौतरफा हमला हो रहा है. टीवी-अखबार पर अपना नाम चमकाने की गरज से कई फर्जी दोस्त-भाई-मामा बन अपनी-अपनी हांक रहे हैं. ऐसे में बताना जरूरी हो गया है कि आखिर ‘सुशांत का परिवार’ होने का मतलब क्या है?
सुशांत के माता-पिता कमाकर खानेवाले लोग थे. उनके हंसते-खेलते पांच बच्चे थे. उनकी परवरिश ठीक हो, इसलिए नब्बे के दशक में गांव से शहर आ गये. रोटी कमाने और बच्चों को पढ़ाने में जुट गये. एक आम भारतीय माता-पिता की तरह उन्होंने मुश्किलें खुद झेली. बच्चों को किसी बात की कमी नहीं होने दी. हौसलेवाले थे, सो कभी उनके सपनों पर पहरा नहीं लगाया. कहते थे कि जो कुछ दो हाथ-पैर का आदमी कर सकता है, तुम भी कर सकते हो.
पहली बेटी में जादू था. कोई आया और चुपके से उसे परियों के देश ले गया. दूसरी राष्ट्रीय टीम के लिए क्रिकेट खेली. तीसरे ने कानून की पढ़ाई की, तो चौथे ने फैशन डिजाइन में डिप्लोमा किया. पांचवा सुशांत था. ऐसा, जिसके लिए सारी माएं मन्नत मांगती हैं. पूरी उमर, सुशांत के परिवार ने ना कभी किसी से कुछ लिया, ना कभी किसी का अहित किया.
सुशांत के परिवार को पहला झटका तब लगा, जब मां असमय चल बसी. फैमिली मीटिंग में फैसला हुआ कि कोई ये ना कहे कि मां चली गईं और परिवार बिखर गया. सो कुछ बड़ा किया जाये. सुशांत के सिनेमा में हीरो बनने की बात उसी दिन चली. अगले आठ-दस साल में वो हुआ, जो लोग सपनों में देखते हैं.
लेकिन, अब जो हुआ है, वो दुश्मन के साथ भी ना हो. एक नामी आदमी को ठगों-बदमाशों लालचियों का झुंड घेर लेता है. इलाके के रखवाले को कहा जाता है कि बचाने में मदद करें. अग्रजों के वारिस हैं. एक अदना हिंदुस्तानी मरे, इन्हें क्यों परवाह हो?
चार महीने बाद सुशांत के परिवार का भय सही साबित होता है. अंग्रेजों के दूसरे वारिस मिलते हैं. दिव्यचक्षु से देखकर बता देते हैं कि ये तो जी ऐसे हुआ है. व्यावहारिक आदमी हैं. पीड़ित से कुछ मिलना नहीं, सो मुलजिम की तरफ हो लेते हैं.
अंग्रेजों के एक और बड़े वारिस तो जालियांवाला-फेम जनरल डायर को भी मात दे देते हैं. सुशांत के परिवार को कहते हैं कि तुम्हारा बच्चा पागल था, सुसाइड कर गया, होता रहता है, कोई बात नहीं. ऐसा करो कि पांच-दस मोटे-मोटे लालों का नाम लिखवा दो, हम उसका भूत बना देंगे.
सुशांत के परिवार को शोक मनाने का भी समय नहीं मिलता है. हत्यारों को ढूंढ़ने के बजाय रखवाले उसके मृत शरीर की फोटो प्रदर्शनी लगाने लगते हैं. उनकी लापरवाही से सुशांत मरा. इतने से मन नहीं भरा, तो उसके मानसिक बीमारी की कहानी चला उसके चरित्र को मारने में जुट जाते हैं. सुशांत के परिवार ने मोटे लालों का नाम नहीं लिया, तो क्या हुआ? अंग्रेजों के वारिस हैं, कुछ भी कर सकते हैं, सो फैशन परेड में जुट गये.
सुशांत के परिवार का सब्र का बांध तब टूटा, जब महीना बीतते-ना-बीतते महंगे वकील और नामी पीआर एजेन्सी से लैस ‘हनी ट्रैप’ गैंग डंके की चोट पर वापस लौटता है. सुशांत को लूटने-मारने से तसल्ली नहीं हुई, सो उसकी स्मृति को भी अपमानित करने लगता है. उनकी बारात में रखवाले भी साफा बांधे शरीक होते हैं.
सच्ची घटनाओं से प्रेरित उपन्यास ‘गॉडफादर’ में उसके माफिया किरदार डॉन कोरलीओन ने कहा ”अमेरिका एक सुंदर देश है. यहां कानून का राज है.”
सवाल सुशांत की निर्मम हत्या का है. सवाल ये भी है कि क्या महंगे वकील कानूनी पेचीदगियों से न्याय की भी हत्या कर देंगे? इससे भी बड़ा सवाल है कि अपने को ईलिट समझनेवाले, अंग्रेजियत में डूबे, पीड़ितों को हिकारत से देखने वाले नकली रखवालों पर लोग क्यों भरोसा करें?
सुशांत के परिवार, जिसमें चार बहनें और एक बूढ़ा बाप है, को सबक सिखाने की धमकी दी जा रही है. एक-एक कर सबके चरित्र पर कीचड़ उछाला जा रहा है. सुशांत से उनके संबंधों पर सवाल उठाया जा रहा है.
तमाशा करनेवाले और तमाशा देखनेवाले ये ना भूलें कि वे भी यहीं हैं. अगर यही आलम रहा, तो क्या गारंटी है कि कल उनके साथ ऐसा ही नहीं होगा?
हम देश को उधर लेकर क्यों जा रहे हैं, जहां अपने को जागीरदार समझनेवाले अपने गुर्गों से मेहनतकशों को मरवा देते हैं और सुरक्षा के नाम पर तनख्वाह लेनेवाले खुलेआम बेशर्मी से उनके साथ लग लेते हैं?
Posted By : Kaushal Kishor