एक कागज जिसे पढ़ते ही नरेंद्र मोदी ने लगाया था प्रशांत किशोर को फोन, अब खुद चलाना चाहते हैं बिहार

Prashant Kishor: प्रशांत किशोर नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. बिहार के रोहतास जिले से आने वाले प्रशांत किशोर के लाइफ की कहानी एक नजर में सिनेमाई लगती है. आजकल प्रशांत किशोर बीपीएससी अभ्यर्थियों के समर्थन में आमरण अनशन करने के कारण चर्चा में हैं. एक रिसर्च पेपर ने कैसे उन्हें कैसे भारतीय राजनीति में एंट्री दिलाई जानिए इस प्रभात खबर एक्सप्लेनर में...

By Paritosh Shahi | January 6, 2025 12:50 PM
an image

Prashant Kishor: स्वास्थ्य विशेषज्ञ के रूप में 8 साल संयुक्त राष्ट्र संघ में नौकरी करने के बाद प्रशांत किशोर ने 2011 में राजनीति में एंट्री ली और उन्हें यह एंट्री गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिलाई. दरअसल, उन्होंने देश के सबसे समृद्ध और उच्च विकास दर वाले राज्यों में कुपोषण पर एक रिसर्च पेपर लिखा जिसमें महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक और गुजरात जैसे विकसित राज्यों में कुपोषण की क्या स्थिति है और इसे कैसे सुधारा जा सकता है इस बारे में पूरी जानकारी दी. इस लिस्ट में सबसे नीचे गुजरात का नाम था. गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने जब इसे पढ़ा तो उन्हें लगा कि अगर इसमें बताए गए उपायों पर अमल किया जाए तो राज्य में कुपोषण की जो स्थिति है उसमें कमी लाई जा सकती है. इसके बाद उन्होंने प्रशांत किशोर को फोन किया और गुजरात में काम करने के लिए बुलाया.

Narendra modi prashant kishor

शुरूआती जीवन कैसा रहा

प्रशांत किशोर के पिता श्रीकांत पांडे नौकरी की वजह से बक्सर में रहते थे. इसलिए उनकी स्कूली पढ़ाई लिखाई बक्सर में ही हुई. इसके बाद पीके इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने हैदराबाद चले गए. पब्लिक हेल्थ में पीजी करने के बाद पीके ट्रेंड पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट के रूप में संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में काम करने लगे. काम करने में तेज तर्रार पीके को उनकी पहली पोस्टिंग आंध्र प्रदेश में मिली और फिर कुछ समय बाद उन्हें पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम चलाने के लिए बिहार ट्रांसफर कर दिया गया. बिहार में उन्होंने दो साल काम किया और उन्हें फिर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय कार्यालय बुला लिया गया. यहां अपने काम से उन्होंने प्रसिद्धि पाई और फिर दो साल बाद उन्हें यूएन के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में बुलाया गया.

राजनितिक सफर

लोकसभा चुनाव 2014 के लिए बीजेपी ने जो रणनीति बनाई थी उसमें प्रशांत किशोर की अहम भूमिका रही. उन्होंने 2014 में कुछ नए तरह के प्रचार माध्यम को भी भारत में शुरू किया. जिसमें 3D रैली, सोशल मीडिया पर प्रचार, मंथन, चाय पर चर्चा जैसे काम शामिल थे. हालांकि 2014 के चुनाव के बाद कुछ नाराजगी की वजह से वह बीजेपी से अलग हो गए और नीतीश कुमार के साथ चले गए. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने ‘फिर एक बार नीतीशे कुमार’ का नारा तैयार किया और अपनी टीम से बिहार के सभी 4000 गांव का दौरा करा कर जनता की राय ली. इस चुनाव में लालू यादव और नीतीश कुमार ने मिलकर शानदार जीत हासिल की. इसके बाद प्रशांत किशोर जनता दल यूनाइटेड के सदस्य बन गए. लेकिन ज्यादा दिन वह नीतीश कुमार के साथ भी नहीं रहे और पार्टी छोड़ दी. इसके बाद उन्होंने ममता बनर्जी, कैप्टन अमरिंदर सिंह, अरविंद केजरीवाल और एमके स्टालिन के साथ भी काम किया.

Prashant kishor mamata banerjee

एक जगह क्यों नहीं टिकते हैं प्रशांत?

प्रशांत किशोर ने समय-समय पर अलग-अलग राजनीतिक दलों के लिए काम किया. उनकी जीत में अहम भूमिका निभाई. जब सवाल उठता है कि प्रशांत किशोर एक जगह क्यों नहीं टिकते हैं तो उनका जवाब होता है कि मैं ज्यादा दिन एक जगह नहीं रह सकता. मैं समय-समय पर खुद को नया चैलेंज देता हूं और उसे पूरा करने के लिए अपना सब कुछ झोंक देता हूं. हालांकि उनके काम करने के इस तरीके पर विरोधी खूब हमला बोलते हैं और कहते हैं कि जो आदमी एक जगह एक साल नहीं टिक सकता वह बिहार का क्या भला करेगा?

जन सुराज की शुरुआत

साल 2022 तारीख 2 अक्टूबर से पहले प्रशांत किशोर की पहचान राजनितिक सलाहकार और चुनावी रणनीतिकार की थी. हालांकि पीके ने कभी इस विवरण को पसंद नहीं किया. राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग आज भी पीके को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते हैं जो चुनाव जिताने और वोटरों की राय को एक खास पॉलिटिकल पार्टी के पक्ष में करने में माहिर हैं. फिर आती है तारीख 2 अक्टूबर 2022, इस दिन पीके ने बिहार के पश्चिम चंपारण से पद यात्रा शुरू किया. इस दौरान वो रोज लगभग 20 किलोमीटर पैदल चले और लोगों से सीधा संवाद करना शुरू किया. हर गांव और चौक पर छोटी-छोटी सभाओं के माध्यम से उन्होंने लोगों को अपने विजन के बारे में बताना शुरू किया. लगातार दो साल बिहार की मिट्टी की खाक छानने के बाद उन्होंने 2 अक्टूबर 2024 को पार्टी लांच किया और नाम रखा ‘जन सुराज’.

प्रशांत किशोर को करना पड़ रहा है राजनीतिक चुनौतियों का सामना

प्रशांत किशोर की सफलता के बावजूद, उन्हें सभी विपक्षी दलों से कई चुनौतियों और आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है. राजनितिक विश्लेषकों का भी मानना है कि उनकी रणनीतियां केवल चुनाव जीतने तक सीमित हैं. पीके की रणनीतियों में किसी पार्टी को सत्ता में बनाए रखने के लॉन्ग टाइम अप्रोच की कमी है. प्रशांत किशोर को कोई बीजेपी की बी टीम तो कोई वोट कटवा पार्टी का नेता बताता है. पप्पू यादव उन्हें भाजपा का एजेंट तो तेजस्वी यादव उनको नेता मानने से भी इंकार करते हैं. इन तमाम आलोचनाओं के बावजूद प्रशांत किशोर अपने काम में लगे हुए हैं.

क्या है प्रशांत किशोर की भविष्य की योजनाएं?

प्रशांत किशोर ने ऐलान किया है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जन सुराज राज्य के सभी 243 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारेगी. उनसे जब सवाल किया गया कि आप बीजेपी का वोट काटेंगे या महागठबंधन का? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं 2025 में बीजेपी और महागठबंधन दोनों को ही बिहार के रास्ते से साफ कर दूंगा.

Prashant kishor in bpsc protest

फिलहाल इस वजह से चर्चा में

पीके ने बीपीएससी की 70वीं प्रारंभिक परीक्षा को रद्द करने की मांग को लेकर पटना के गांधी मैदान में 2 जनवरी से आमरण अनशन शुरू किया था. वह इस कंपकपाती ठंड में महात्मा गांधी की प्रतिमा के नीचे बैठे हुए थे. उनकी मांग थी कि बिहार के मुख्यमंत्री धरना स्थल पर आएं और बिहार लोक सेवा आयोग के परीक्षार्थियों को सुने और उनकी मांगों पर निर्णय करें. यह तो नहीं हो पाया लेकिन आज उन्हें सुबह 4:00 बजे पटना पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और धरना स्थल को भी खाली करा दिया. आने वाले दिनों में इस गिरफ्तारी से उनको क्या राजनीतिक एज मिलता है यह देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि राजद और बीजेपी का आरोप है कि पीके राजनीतिक लाभ लेने के चक्कर में इस आंदोलन को हाईजैक कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें: BPSC Protest: पीके गिरफ्तार, अब पटना में क्या है प्रदर्शन की स्थिति? 

Exit mobile version