- हाइपरटेंशन, अनियंत्रित डायबिटीज व बीपी किडनी को कर रहा खराब
- बड़े और बुजुर्गों के अलावा युवा भी आ रहे इस बीमारी की चपेट में
- हर साल मार्च के दूसरे गुरुवार को मनाया जाता है विश्व किडनी दिवस
- आजीआइएमएस में 2016 से अब तक 111 किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है
- 86 महिलाओं ने अपनी एक किडनी डोनेट कर बचायी है कई जान
किडनी शरीर के सबसे जरूरी अंगों में से एक है. ये 24 घंटे शरीर से खून को फिल्टर करती हैं और विशाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है. बदलती जीवनशैली और खानपान के चलते साल दर साल किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसमें केवल बड़े और बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं. किडनी के खतरे को कम करने और किडनी को हेल्दी रखने के तरीकों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल मार्च महीने के दूसरे गुरुवार को ‘वर्ल्ड किडनी डे’ मनाया जाता है.
हर 100 व्यक्ति में 11 को किडनी की बीमारी
पटना समेत पूरे बिहार में किडनी की बीमारियों के मामले हर साल बढ़ रहे हैं. लोगों को किडनी डिजीज के बारे में जागरूक करने के लिए हर साल मार्च में विश्व किडनी दिवस मनाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, किडनी से संबंधित बीमारियां मौतों का एक बड़ा कारण है. पिछले दो दशकों में किडनी से संबंधित समस्याओं के मामले तेजी से बढ़े हैं. चिंता की बात यह है कि अब बच्चे भी इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. बिहार नेफ्रोलॉजिस्ट एसोसिएशन व इंडियन सोसायटी ऑफ पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी की रिपोर्ट में बताया गया है कि अस्पताल में आने वाले हर 100 में से 11 मरीज किडनी की बीमारी से ग्रस्त होकर आते हैं. जिनमें बच्चों की संख्या दो होती है.
किडनी दान देने में महिलाएं पुरुषों से आगे
महिलाओं के मुकाबले पुरुष आज भी किडनी डोनेट करने में हिचकिचाते हैं. जबकि महिलाएं इसके लिए आगे आ रही हैं. कोई पति, कोई बेटा, कोई भाई तो कोई अन्य नजदीकी के लिए किडनी डोनेट कर रही हैं. आइजीआइएमएस में 2016 से अब तक करीब 111 किडनी फेलियर मरीजों का ट्रांसप्लांट हुआ है. इनमें 86 महिलाओं ने अपनी एक किडनी डोनेट कर जान बचायी है जबकि इनकी तुलना में मात्र 25 पुरुष ही किडनी दान दिये हैं. 86 में सबसे अधिक मां 48, पत्नी 33 और 05 बहनों ने किडनी दान दिये हैं. जबकि 20 पिता, 03 भाई और एक दादा ने अपनी किडनी दान दिया है.
पीएमसीएच में रोजाना 30 मरीजों की होती है डायलिसिस
शहर के पीएमसीएच व आइजीआइएमस में किडनी डायलिसिस के लिए मरीजों को लंबी वेटिंग दी जाती है. आइजीआइएमएस में 10 दिन तो पीएमसीएच में भी आठ दिन की वेटिंग मिलती है. पीएमसीएच में रोजाना सिर्फ करीब 30 मरीजों की ही डायलिसिस होती है, जबकि अगर स्वास्थ्य विभाग चाहता तो यह संख्या 300 के पार होती. सात साल में प्रशासन यहां डीएम नेफ्रोलॉजिस्ट तक नहीं तैनात कर पाई जिससे किडनी फेलियर मरीजों को कुछ राहत मिल सके. यह अस्पताल बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल है और यहां से गरीब मरीजों को काफी उम्मीद होती है.
इमरजेंसी डायलिसिस की योजनाओं पर नहीं हुआ काम
पीएमसीएच को लेकर आठ साल पहले ही योजना बनी थी कि यहां किडनी के मरीजों को बड़ी राहत दी जायेगी. विभाग ने इस मंशा के तहत संस्थान के नेफ्रोलॉजी विभाग के लिए हाइटेक डायलिसिस मशीनों की खरीद की. किडनी फेलियर के बढ़ते मामले और डायलिसिस की डिमांड को लेकर ही सरकार ने इस मंशा पर काम किया लेकिन वह मरीजों को राहत नहीं दे पाई. योजना बनाई गई थी पटना में पीएमसीएच ऐसा सेंटर होगा जहां किडनी ट्रांसप्लांट के साथ-साथ निजी अस्पतालों की तरह 24 घंटे मरीजों को डायलिसिस की सुविधा मिलेगी. इमरजेंसी डायलिसिस की आठ साल पहले बनी योजना पर अब तक विभाग काम नहीं कर पाई है.
किस अस्पताल में डायलिसिस की कितनी सुविधा
शहर के पीएमसीएच, न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल, पटना एम्स, एनएमसीएच और आइजीआइएमएस में किडनी डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध है. इसमें एम्स व आइजीआइएमएस में कुछ चार्ज लेकर डायलिसिस की जाती है. जबकि अन्य तीनों अस्पतालों में यह सुविधा नि:शुल्क है. जबकि किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा सिर्फ आइजीआइएमएस अस्पताल में ही है.
एंटीबायोटिक्स व दर्द की दवा कैसे किडनी खराब करती है
न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल के अधीक्षक डॉ मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि अत्यधिक एंटीबायोटिक्स किडनी में एंटी ऑक्सीटेंटस की मात्रा को कम करता है. किडनी में जो सामान्य ऑटोरेगुलेशन होता है, उसे बिगाड़ता है. कुछ एंटीबायोटिक और दर्द निवारक किडनी में एलर्जिक या इंटरस्टियल नेफ्राइटिस नामक बीमारी पैदा करते है, जिससे उचित समय पर इलाज नहीं होने पर किडनी में क्रोनिक बदलाव आ जाता है.
किडनी डिजीज के लक्षण
- वजन लगातार कम होना
- चेहरे पर सूजन दिखाई देना
- पेशाब में जलन
- पेशाब का रंग बदल जाना
- पेशाब करने में अधिक समय लगाना
- पेट में दर्द
- भूख न लगना
- थकान
कैसे करें किडनी की देखभाल
- लाइफस्टाइल को ठीक रखें
- रोजाना आधे घंटे पैदल टहलें
- घर का बना सादा और पोषक खाना दें
- बच्चों को फास्ट फूड से परहेज कराएं
- पर्याप्त मात्रा में पानी और दूसरे तरल पदार्थों का सेवन करने के लिए कहें
- बच्चों को खेलकूद के लिए प्रेरित करें.
क्या कहते हैं किडनी रोग विशेषज्ञ
अनियंत्रित डायबिटीज और ब्लड प्रेशर, गुर्दे में पथरी, पेशाब में संक्रमण और मोटापा किडनी बीमारी की जड़ है. इसे नजरअंदाज करने वाले मरीजों में किडनी की समस्या अधिक देखने को मिल रही है. किडनी की बीमारी की पहचान व रोकथाम के लिए समय-समय पर डॉक्टर की सलाह से जांच कराते रहें.
– डॉ आरके झा, किडनी रोग विशेषज्ञ.
आइजीआइएमएस में किडनी डोनेट करने वालों में सबसे अधिक महिलाएं हैं. वहीं ओपीडी में रोज करीब 200 से अधिक मरीज इलाज कराने आते हैं. इनमें 70 प्रतिशत मरीज बढ़ी हुई बीमारी के साथ आ रहे हैं. कई साल तक उचित इलाज नहीं कराने पर करीब 30 प्रतिशत का गुर्दा खराब हो जाता है. जिसके बाद में डायलिसिस व ट्रांसप्लांट करानी पड़ती है. ऐसे में बीमारी की पहचान होते ही समय पर इलाज हो जाये तो रोग से निजात मिल सकती है.
– डॉ अमरेश कृष्ण, एडिशनल प्रो. नेफ्रोलॉजी विभाग आइजीआइएमएस.