पटना : बिहार में जहरीले सांप की केवल 6 प्रजातियां पायी जाती हैं. पटना जिले की बात करें तो यहां राजधानी में सांपों की संख्या काफी कम है, जो भी सांप मिलते हैं वह मोकामा और बाढ़ के टाल क्षेत्र में ही पाये जाते हैं लेकिन जमुई व चंपारण में सांपों की संख्या सर्वाधिक है. पटना में सांप बरसात के दिनों में दिखते हैं और गर्मी की शुरूआत में मार्च में पाये जाते हैं.
विश्व सांप दिवस पर इन बातों की जानकारी देते हुए ट्रिकी स्क्राइब के संंस्थापक आदित्य वैभव ने बताया कि सांप एक शर्मिला प्राणी है, जो खुद इंसानों से अलग रहना चाहता है. वह कभी भी बिना छेड़छाड़ किए किसी को नहीं काटता लेकिन बिहार में या अन्य जगहों पर आज भी लोगों में जानकारी के अभाव है इस कारण काफी दिक्कतें आती है.
लोग सांपों को मार देते हैं. खास बात यह है कि जितने सांप लोग डरकर मार देते हैं, उनमें से 10 प्रतिशत सांप भी जहरीले नहीं होते. जहरीले सांपों में पहला- कोबरा, दूसरा रसल्स वाइपर, तीसरा करैत, चौथा सॉ स्केल्ड वाइपर ये चारो प्रजाति सभी 38 जिलों में पाये जाते हैं. इन्हीं चारों के कारण सबसे ज्यादा मौत होती है.
पटना जू में आठ प्रकार के सांप उपलब्ध हैं. इस बारे में जू के डायरेक्टर अमित कुमार ने बताया कि यहां सैड बोआ, वाइपर रसैल, कोबरा अजगर धामिन की प्रजातियां उपलब्ध है, जो पटना जू के सांप घर घर में रहते हैं. इसके अलावा पटना जू में पहली बार ग्रीन एनाकोंडा आने वाला है, जो लॉकडाउन के कारण नहीं आ सका. यह एनाकोंडा सांप घर के बगल में ही रखा जायेगा. जिसके लिए अलग से व्यवस्था की गयी है. बता दें ग्रीन एनाकोंडा दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है. मुख्य रूप से निशाचर एनाकोंडा प्रजातियां अपने जीवन का अधिकांश पानी या उसके आसपास में बिताती है. ग्रीन एनाकोंडा की आने की तैयारी चल रही है.
बिहार में सांप के काटने से हर साल करीब 5 हजार मौत होती है. बता दें इनमें से कई मौत हर्ट अटैक की वजह से भी हो जाती है. क्योंकि सांप काटने के दौरान कई लोग समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या करना है, कहां ले जाना है, किसके पास दवाएं हैं. यह जानकारी आज भी कमी है. वहीं अस्पतालों में भी सांप काटने की दवा जिसे एंटी वेनम कहते हैं, वह भी न की मात्रा में उपलब्ध है.
Posted By : Rajat Kumar