पटना पुस्तक मेला : मोबाइल में खोये रहने वाले युवा भी खरीद रहे साहित्यिक किताबें, आज है अंतिम दिन
पुस्तक मेले में आने वाले युवाओं का मानना है कि मनोरंजन हो या ज्ञान वे मोबाइल पर हद से ज्यादा निर्भर हो गये थे. लेकिन पुस्तक मेले ने उन्हें किताबों और साहित्य से रूबरू होने का जब मौका दिया तो वे प्रेमचदं और रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे लेखकों को भी पढ़ने के लिए किताबें खरीद रहे हैं.
पटना पुस्तक मेले की थीम मोबाइल छोड़िए किताब पढ़िए कामयाब होती दिख रही है. पटना पुस्तक मेले ने दिन-रात मोबाइल में खोये रहने वाले युवाओं को भी किताबों से जोड़ने में कुछ हद तक सफलता पायी है. मेले में हर दिन बड़ी संख्या में युवाओं का आगमन हो रहा है. कोविड काल में मोबाइल का प्रयोग बढ़ने के बाद बहुत से युवाओं के दिन का बड़ा हिस्सा मोबाइल में बीत रहा है. ऐसे युवा जब पटना पुस्तक मेले में आ रहे हैं तो उनके लिए किताबों की यह दुनिया बड़ी ही रोचक लग रही है. यहां आने वाले ऐसे युवा अपनी पसंद की किताबें खरीदते इन दिनों खूब दिख रहे हैं. इन युवाओं का मानना है कि मनोरंजन हो या ज्ञान वे मोबाइल पर हद से ज्यादा निर्भर हो गये थे. लेकिन पुस्तक मेले ने उन्हें किताबों और साहित्य से रूबरू होने का जब मौका दिया तो वे प्रेमचदं और रविन्द्रनाथ टैगोर जैसे लेखकों को भी पढ़ने के लिए किताबें खरीद रहे हैं.
ग़मों से हारकर जीवन नहीं बर्बाद करना तुम…
सोमवार को पटना पुस्तक में इल्मी मजलिस बिहार की ओर से नालंदा सभागार में युवा कवयित्री रेखा भारती मिश्रा की के ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण समारोह सह मुशायरा का आयोजन किया गया. बिहार उर्दू पुस्तकालय के अध्यक्ष अरशद फिरोज , पूर्व जिला जज अकबर रज़ा जमशेद , मशहूर शायर खुर्शीद अकबर , सरकार में संयुक्त सचिव सैयद परवेज आलम , वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विनय कुमार विष्णुपुरी और पुस्तक मेला के सूत्रधार तथा साहित्यकार नरेंद्र कुमार झा के संयुक्त हाथों से “बात आंखों की” (ग़ज़ल संग्रह) पुस्तक का लोकार्पण हुआ.
काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन
पुस्तक मेले में सोमवार को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया. इसमें कवियत्री रश्मि भारद्वाज, सदफ इकबाल और युवा कवि उत्कर्ष ने हिस्सा लिया. रश्मि भारद्वाज ने “मां से कभी नहीं”, “हो राम! चुन चुन खाए” शीर्षक से कविताएं सुनायी. कवियत्री सदफ इकबाल ने अपनी गज़लों से लोगों को मोहित किया. उनकी शुरुआत की गज़ले देश के नाम थी.
लेखक से बड़े उनकी कहानी के पात्र होते हैं
पटना पुस्तक मेला में सोमवार को जनसंवाद कार्यक्रम के अंतर्गत “कहानी के पात्र” विषय पर परिचर्चा हुई. कार्यक्रम में शिव दयाल, कमलेश और संतोष दीक्षित ने हिस्सा लिया. इसमें शिव दयाल ने कहा कि कोई भी कहानी पात्रहीन नहीं होती है. पात्र कहानी को स्तरीयता देते हैं. वहीं दूसरे वक्ता कमलेश ने अपनी पुस्तकों के पात्रों की चर्चा की. उन्होंने कहा की पात्रों को बुनते समय उनके आभामंडल में खो जाते हैं. अंतिम वक्ता लेखक संतोष दीक्षित ने कहा कि मैं लेखक से बड़ा पाठक हूं. किसी भी लेखक से बड़े उनकी कहानी के पात्र होते है. उन्होंने कहा की लेखक का परिवेश उसके पात्रों में देखा जा सकता है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हुआ पुस्तक का लोकार्पण
पटना पुस्तक मेले में डॉ कुमार वरुण द्वारा संपादित पुस्तक प्रयोगधर्मी विकास-शिल्पी नीतीश कुमार शीर्षक से पुस्तक का लोकार्पण किया गया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लिखी इस पुस्तक के लोकार्पण समारोह में राज्यसभा सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार जी ने समाजवाद के सपनों को साकार करने के लिए सफल प्रयोग किये हैं. कार्यक्रम में पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. रासबिहारी सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री ने सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक विकास पर जोर दिया है. खासकर महिलाओं के उत्थान में उनकी भूमिका समाज सुधारक जैसी है जो इतिहास में दर्ज होगी. इस किताब ने बखूबी उसे रेखांकित करने का काम किया है.
चीनी लेखक की किताब का हुआ लोकार्पण
पटना पुस्तक मेले में चीन के प्रतिष्ठित लेखक ‘श्वेमो की चुनी कहानियां’ किताब का लोकार्पण किया गया. किताब प्रकाशन संस्थान से छपी है. पुस्तक के लोकापर्ण समारोह में कहानीकार अवधेश प्रीत, पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो तरुण कुमार, कथाकार कमलेश, संस्कृति कर्मी अनिल अंशुमान आदि शामिल थे.
मेले में पुस्तक “गांधी क्यों नहीं मरते” हैं पर हुई परिचर्चा
पटना पुस्तक मेले में “गांधी क्यों नहीं मरते” पुस्तक पर परिचर्चा की गयी. इसके लेखक चंद्रकांत वानखेड़े है और इसका हिंदी अनुवाद कल्पना शास्त्री ने किया है. इस कार्यक्रम में कल्पना शास्त्री, गांधीवादी विचारक शुभमूर्ति और प्रियदर्शी अशोक चक्रवर्ती ने हिस्सा लिया. मौके पर वक्ताओं ने कहा कि इस किताब में गांधी से जुड़े कई पहलुओं की चर्चा की गयी है. जातिवाद जैसी कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष की चर्चा की गयी है. यह किताब इतिहास के प्रसंगों को याद दिलाती है. इस किताब को पढ़ने से निडर बनने की प्रेरणा मिलती है. यह पुस्तक गांधी के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास पर बराबर नजर रखते हुए हमें बताती है कि गांधी हमारे आज और आने वाले समय के लिए क्यों जरूरी हैं.