लॉकडाउन खत्म होने के बावजूद लंबी यात्रा से बच रहे लोग, लांग रूट की बसों में यात्रियों का टोटा
मीठापुर बस स्टैंड से केवल 50 फीसदी बसें चल रही हैं. उनमें भी यात्रियों की संख्या आधा से भी कम है.
पटना
लॉकडाउन का असर जैसे जैसे खत्म हो रहा है, नगर सेवा की बसों में यात्रियों की भीड़ बढ़ती जा रही है. लेकिन पटना से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में जाने वाली लांग रूट की बसों में यात्रियों का टोटा अभी भी दिख रहा है. मीठापुर बस स्टैंड से केवल 50 फीसदी बसें चल रही हैं. उनमें भी यात्रियों की संख्या आधा से भी कम है. इसकी वजह है कि लोग लंबी दूरी की यात्रा करने से अभी भी परहेज कर रहे हैं. ज्यादातर लोगों को लगता है कि बस की सीट पर दूसरे सहयात्रियों के साथ तीन-चार घंटे या अधिक समय तक लगातार बैठे रहने से उन्हें कोरोना से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा है. खासकर बगल वाली सीट पर बैठे व्यक्ति से संक्रमित होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है, क्योंकि उसके सांस की हवा से तो व्यक्ति मास्क पहन कर बच सकता है, लेकिन सीधे शारीरिक स्पर्श से बचना मुश्किल है. यही वजह है कि ज्यादातर लोग बेहद जरूरी होने पर ही एक जिले से दूसरे जिले या एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा कर रहे हैं.
बीएसआरटीसी से आ-जा रहे 27-28 हजार यात्री : बीएसआरटीसी की बसों में एक माह पहले तक जहां हर दिन सात-आठ हजार यात्री आ जा रहे थे अब यह संख्या बढ़ कर 27-28 हजार हो गयी है. हर दिन नगर सेवा की सभी 13 रुटों पर बसें चल रही हैं जिनकी कुल संख्या 120 है. इनमें गांधी मैदान दानापुर, गांधी मैदान पटना सिटी जैसे शहर के भीतर के नौ रूटों में पीक आवर (सुबह नौ से 12 और शाम में पांच से आठ बजे तक) में सीट पूरी तरह फुल रहती है जबकि बिहटा, बिहार शरीफ और हाजीपुर जैसे शहर के बाहर वाले रूट में कुछ कम यात्री दिखते हैं.
हर दिन दौड़ रहीं 300 पीली सिटीराइड बसें
यात्रियों की संख्या में बढ़ोतरी को देख कर पीली सिटीराइड बसें भी अब पूरी तरह सड़क पर उतर चुकी है और 365 में से लगभग 300 गाड़ियां चल रही हैं. पीक आवर में इनमें सीट क्षमता से अधिक यात्री सवार दिखते हैं और कई तो गेट तक पर खड़े दिखते हैं.
पांच हजार में से ढाई हजार बसें ही चल रहीं : मीठापुर बस स्टैंड से लगभग पांच हजार बसें सामान्य दिनों में हर रोज चलती हैं, जिनकी संख्या इन दिनों घट कर केवल ढाई हजार रह गयी है. इनमें भागलपुर, मुंगेर और नवादा रूट को छोड़ अन्य रूटों में चलने वाली बसों में आधा से ज्यादा सीटें खाली रहती हैं.