दरभंगा. उमस भरी गर्मी ने लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी है. मौसम की मार से बड़ी संख्या में लोग बीमार हो रहे हैं. इस मौसम में विशेषकर चक्कर, बेहोशी, सांस लेने में दिक्कत, माइग्रेन, उल्टी, दस्त और पेट दर्द की काफी शिकायत मिल रही है. डीएमसीएच, पीएचसी व निजी क्लिनिकों में इस तरह के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गयी है. डॉक्टरों का कहना है कि इन दिनों हर 10 में तीन मरीज मौसमी बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार डीएमसीएच, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र आदि जगह प्रतिदिन 1378 के लगभग रोगी इलाज कराने पहुंच रहे हैं. इसमें सबसे अधिक चर्म रोग, चक्कर, बेहोशी व सांस रोग, सर्दी एवं खांसी के मरीज हैं.
गर्मी बढ़ते ही मौसमी बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है. इसमें डायरिया, त्वचा, लू लगना, पानी की कमी, फूड पॉइजनिंग आदि बीमारी शामिल है. तारडीह पीएचसी प्रभारी डॉ मिहिर कुमार चौधरी का कहना है कि गर्मी में थकावट, लू लगना, पानी की कमी, फूड पॉइजनिंग आम बीमारी है. इसके अलावा हीट-स्ट्रोक की संभावना अधिक रहती है. इस दौरान शरीर का तापमान बहुत ज्यादा होता है, त्वचा रूखी और गर्म होती है, शरीर में पानी की कमी, कन्फ्यूजन, तेज या कमजोर नब्ज, छोटी-धीमी सांस, बेहोशी तक आ जाने की नौबत आ जाती है. हीट-स्ट्रोक से बचने के लिए दिन के सबसे ज्यादा गर्मी वाले समय में, घर से बाहर नहीं निकलें. अत्यधिक मात्रा में पानी और जूस पीएं, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. ढीले-ढाले और हल्के रंग के कपड़े पहने.
फूड पॉइजनिंग गर्मियों में आम तौर पर हो जाती है. खाना साफ- सुथरे माहौल में बनाया जाए. पीने का पानी भी दूषित हो सकता है. अत्यधिक तापमान की वजह से खाने में बैक्टीरिया बहुत तेजी से पनपते हैं, जिससे फूड पॉइजनिंग हो जाता है. सड़क किनारे बिकने वाले खाने- पीने के सामान भी फूड पॉइजनिंग के कारण बन सकते हैं. फूड पॉइजनिंग से बचने के लिए बाहर जाते वक्त हमेशा अपना पीने का पानी घर से ले के चलें. खुले में बिक रहे कटे हुए फल खाने से परहेज करें. शरीर में पानी की मात्रा को पर्याप्त बनाए रखने के लिए अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ पीएं. प्यास लगने का इंतजार नहीं करें. हमेशा घर में बना हुआ नींबू पानी और ओआरएस का घोल आस-पास रखें.
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फिजिशियन डॉ राजीव कुमार सिंह ने बताया कि उमस का असर एलर्जी के मरीज पर पड़ता है. इससे उनको सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है. अगर उमस ज्यादा बढ़ता है, तो घुटन के कारण बेहोशी के मामले भी देखने को मिलते हैं. घुटन से बीपी लो हो जाता है. पल्स तेज हो जाता है. जब परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है, तो पल्स कम होने लगता है. शरीर में नमक-पानी और पोटेशियम आदि इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी हो जाती है. दिल और दिमाग पर भी असर पड़ता है.