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सोनपुर मेला में गौहर जान के राग मल्हार गाते ही हो गयी थी बारिश, पर्शियन कलाकारों ने पहली बार किया था थियेटर

सोनपुर मेला में कभी बनारस, आगरा, कानपुर, लखनऊ और दिल्ली से प्रसिद्ध नृत्यांगनाएं और तवायफें आती थीं. यहां एक समय रामलीला, कृष्ण लीला आदि का प्रचलन था, लेकिन 1930 तक मेले में थिएटर, नृत्य और गायन का बोलबाला हो गया था. पर्शियन कलाकार यहां थिएटर स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति थे.

अनिकेत, पटना. विश्व प्रख्यात सोनपुर मेला पशु व्यापार के साथ-साथ वहां होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है. इस मेले के बारे में जानकारी रखने वाले लोग बताते हैं कि हरिहर क्षेत्र के धार्मिक कार्यों में कोई विशेष परिवर्तन तो नहीं हुआ है, लेकिन सांस्कृतिक रूप से यह समाप्ति की ओर है. लेखक उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि वर्ष 1830 के लगभग यहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत हुई थी. उस वक्त रामलीला, कृष्ण लीला आदि का प्रचलन था, लेकिन 1930 तक आते-आते थियेटर, नृत्य व गायन ने यहां दस्तक दे दी. सबसे पहले पर्शियन कलाकारों ने यहां थियेटर लगाया था.

मशहूर तवायफों की सजती थी महफिल

बताया जाता है कि एक जमाने में सोनपुर मेला में देश की मशहूर गायक – गायिकाएं , नृत्यांगनाएं, बॉलीवुड की हस्तियां आती थीं. कुछ मशहूर तवायफों में कोलकाता की मशहूर तवायफ गौहर बाई, इलाहाबाद की जानकी देवी, पटना की मुहम्मद वॉदी और राजेश्वरी बाई तथा इटावा की तिलोत्तमा के साथ-साथ भारत की प्रसिद्ध नर्तकी तथा गायिका जोहरा बाई के शिविर और महफिलें इस मेले में सजा करती थीं.

गौहर जान के राग मल्हार गाते ही हो गयी थी बारिश

गौहर बाई के विषय में सोनपुर के बुजुर्ग नागरिक बताते हैं कि एक बार जब वह सोनपुर में अपना कार्यक्रम दे रही थीं, आसमान बिल्कुल साफ था. श्रोताओं ने उनसे से राग मल्हार सुनाने की फरमाइश की. उनके विशेष अनुरोध पर गौहर जान ने राग मल्हार गाना शुरू किया. पहले से आसमान साफ होने के बावजूद गाने का अंत आते आते-आते बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे, जोरों की बारिश शुरू हो गयी. जब तक गौहर जान गाती रही, घमासान बारिश होती रही. सारी महफिल भीग गयी, खुद गौहर जान भी भीगती रही और गाती रहीं.

जद्दनाबाई, तिलोत्तमा सहित कई नृत्यांगनाओं का होता था जलवा

इस मेले में बनारस, आगरा, कानपुर, लखनऊ तथा दिल्ली की प्रसिद्ध नृत्यांगनाओं, गणिकाएं आती थीं. प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस दत्त की मां और अभिनेता संजय दत्त की नानी जद्दनाबाई कई वर्षों तक लगातार सोनपुर मेले में अपनी प्रस्तुति देती रहीं. इटावा की तिलोत्तमा अपने रूप और गले के मिठास के लिए प्रसिद्ध थीं. कहते हैं कि तिलोत्तमा इतनी गोरी थीं और बदन की चमड़ी इतनी पतली, मुलायम और पारदर्शी थी कि जब वह पान चबातीं तो पान की लाली उसके गाल और गले की चमड़ी से बाहर दिखायी पड़ती थी. यहां के बुजुर्ग बताते हैं कि सांस्कृतिक रूप से मेले में अब कुछ नहीं बचा, सिर्फ फुहड़ता के अलावा. पहले देश के नामी गिरामी लोग यहां नृत्य और संगीत का आनंद उठाने के लिए आया करते थे. अब न वैसे दर्शक रहे और न वैसे कलाकार.

मुगलकाल में पड़ा था सोनपुर नाम

इस क्षेत्र का सोनपुर नाम मुगल काल में पड़ा था. लेखक उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि महाभारत, श्रीमद्भागवत सहित सात पुराणों में गज-ग्राह युद्ध का उल्लेख मिलता है. 28 वें मन्वंतर में गजेंद्र मोक्ष की परिकल्पना मिलती है.

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लार्ड मेयो ने नेपाल के राजा राणा जंग बहादुर का किया था महिमा मंडन

हरिहर मेला क्षेत्र में कई बड़ी ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं. यहीं पर 1857 की क्रांति के दबने के बाद भारत के वायसराय लार्ड मेयो ने वर्ष 1871 में दरबार लगाया था. इस दरबार में नेपाल के तत्कालीन राजा राणा जंग बहादुर का महिमा मंडन किया गया था, क्योंकि उन्होंने 1857 की क्रांति को दबाने में अंग्रेजों की मदद की थी. इससे पहले अंग्रेजों को भगाने के लिए 1846 में सोनपुर में ही हरिहर क्षेत्र रिजोल्यूशन पास किया गया था. इसमें पीर अली, वीर कुंवर से लेकर ख्वाजा अब्बास आदि लोग शामिल हुए थे. 1908 में सोनपुर मेले में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की एक महत्वपूर्ण बैठक खान बहादुर नवाब सरफराज हुसैन की अध्यक्षता में हुई थी. इस बैठक में बिहार कांग्रेस की स्थापना की गयी थी. सोनपुर मेला के प्रांगण में ही 1929 में स्वामी सहजानंद सरस्वती की अध्यक्षता में बिहार राज्य किसान सभा की नींव पड़ी थी.

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