Pitru Paksha 2022: फल्गु नदी के तट पर ही क्यों किया जाता है पिंडदान?, जानें क्या हैं इसके महत्व

Pitru Paksha 2022 पितृपक्ष के समय बिहार के गया में पिंडदान,श्राद्ध और तर्पण करने का विशेष महत्व है.कहा जाता है कि गया में पिंडदान करने पर पूर्वज को मोक्ष की प्राप्ति होती है.यही कारण है पितृपक्ष के समय बिहार के गया में दूर- दूर से पिंडदान,श्राद्ध और तर्पण करने यहां लोग आते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 31, 2022 7:45 PM
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हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में बिहार के फल्गु नदी के तट पर बसे गया में पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का सरल मार्ग है. कहा जाता है कि भगवान राम और देवी सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए यहां पर पिंडदान किया था. श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का यहां पर कर्मकांड करते हैं. इस वर्ष 10 सितंबर 2022 से पितृपक्ष शुरू हो रहा और 25 सितंबर 2022 तक रहेगा. इसको लेकर देश-विदेश से श्रद्धालु का गया आने का सिलसिला शुरु हो गया है.

दरअसल, देश -विदेश से आने वाले श्रद्धालु अपने पूर्वजों को तर्पण कर उन्हें याद करते हैं तथा उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं. कहा जाता है कि फल्गु नदी में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन ये तीन मुख्य कार्य होते हैं. इसकी चर्चा महाभारत में भी की गई है. उसमें लिखा है कि जो व्यक्ति फल्गु तीर्थ में स्नान करके श्राद्धपक्ष में भगवान विष्णु का दर्शन करता है वो पितरों के ऋण से विमुक्त हो जाता है. विष्णु पुराण के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी के पीठ से पितर उत्पन हुए. पितर को उत्पन होने के बाद ब्रह्मा जी ने उस शरीर को त्याग दिया. जिससे पितर को जन्म देने वाला शरीर संध्या बन गया. इसलिए ऐसी मान्यता है कि संध्या काल में पितर बहुत शक्तिशाली हो जाते हैं.

फल्गु नदी के तट पर क्यों किया जाता है पिंडदान

धर्मशास्त्रों में लिखा है कि जो लोग अपने पितरों की पूजन नहीं करते है, उनके पूर्वज को मृतलोक में जगह नहीं मिलती है और उनकी आत्मा भटकती रहती है. देव पितर का काम न्याय करना है. जब ये अपने परिवार पर न्याय नहीं करते है, तो वह परिवार विखंडित हो जाता है. भगवान कृष्ण ने कहा है की वह पितरों में अर्यमा नमक पितर है. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु पितरों की पूजा को स्वीकार करते हैं. फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से माता-पिता के साथ कुल के सभी पीढ़िया तृप्त हो जाती है. शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निर्मित जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उनका मनोरथ पूर्ण होता है. पितृपक्ष के अवधि में जो पूजन होता है, पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म के लिए उसमें भगवान विष्णु की विशेष रूप से पूजन की जाती है. भगवान विष्णु की पूजन से ही प्रेत से पितृ योनी में जाने की दरवाजा खुल जाती है और साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.

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