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पितृपक्ष 2023ः विष्णुपद में भीष्म पितामह ने भी अर्पित किया था पिंड, जानिए क्या है पूरी कहानी..

Pitripaksha 2023 धर्मारण्य में अपने पितरों व परिजनों की आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करने का विधान है. पितृपक्ष के अलावा यहां पूरे वर्ष लोग त्रिपिंडी श्राद्ध करने पहुंचते हैं.

पितृश्राद्ध विधान-पंचमी तिथिः तीन पक्षीय श्राद्ध करनेवाले आश्विन कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि यानी पितृपक्ष के छठे दिन को सर्व प्रथम विष्णुपद में श्राद्ध करते हैं. भीष्म पितामह जब गयाजी श्राद्ध करने आये और पितरों का ध्यान कर पिंड देने के लिए उद्यत हुए, वैसे ही उनके पिता शांतनु के दोनों हाथ निकले. भीष्म ने हाथ पर पिंड न देकर विष्णु पद पर पिंड दिया. संतुष्ट होकर शांतनु ने कहा कि तुम शास्त्रार्थ में निश्चल हो. दृष्टि त्रिकाल होवे और अंत में विष्णु लोक को प्राप्त हो.

विष्णुपद के दर्शन से पापों का नाश, स्पर्श व पूजन से पितरों को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है. विष्णुपद मंदिर परिसर में 19 तीर्थ हैं, जो पंचमी से अष्टमी तक उन तीर्थों में श्राद्ध करते हैं. इन सभी तीर्थों में कश्यप पद, विष्णु पद, रुद्र पद, ब्रह्म पद इन चारों तीर्थों में से किसी एक से प्रारंभ करें और किसी एक से अंत करें. जैसे विष्णु पद से प्रारंभ करें, तो कश्यप पद पर पूरा करें. गज कर्ण पद पर केवल दूध तर्पण करें. रुद्र पद पर श्राद्ध करने से कुलगत पितरों को रुद्र पद की प्राप्ति होती है.

हाथ में पिंड देने से हमारी स्वर्ग गति नहीं होती

भगवान श्रीराम जब रुद्र पद श्राद्ध करने को उद्यत हुए तब महाराज दशरथ स्वर्ग से हाथ फैला कर सामने आ गये. किंतु श्रीराम ने हाथ में पिंड न देकर रुद्र पद पर दिया. शास्त्र के अतिक्रमण से डर कर महाराज दशरथ ने श्रीराम से कहा-हे पुत्र तुमने हमें तार दिया, अब हम रुद्र लोक को प्राप्त कर लेंगे. हाथ में पिंड देने से हमारी स्वर्ग गति नहीं होती. तुम चिरकाल तक राज्य करते हुए प्रजा व ब्राह्मणों का पालन करते हुए बहुत दक्षिणा वाले यज्ञों को करके अयोध्यापुरी की प्रजा एवं कीट-पतंगों के साथ विष्णु लोक चले जाओगे, ऐसा कह कर दशरथ जी रूद्र लोक चले गये. इसके बाद ब्रह्म पद, दक्षिणाग्नि पद, गार्हपत्याग्नि पद पर श्राद्ध कर छठे दिन की विधि पूर्ण करें.

टेंट सिटी में ठहरने में समस्या हो, तो वाट्सएप नंबर पर करें संपर्क

पितृपक्ष मेला क्षेत्र में आनेवाले श्रद्धालुओं को ध्यान में रखते हुए गांधी मैदान में टेंट सिटी लगायी गयी है. रविवार की देर रात डीएम डॉ त्यागराजन टेंट सिटी पहुंचे और वहां ठहरे हुए यात्रियों से फीडबैक लिया. उन्होंने करीब 200 तीर्थयात्रियों से बातचीत की. डीएम ने तीर्थयात्रियों से कहा कि टेंट सिटी में ठहरने के लिए कोई समस्या आने पर वाट्सएप नंबर 8789456528 (वरीय उप समाहर्ता प्रवीण कुमार) व 8285683083 पर संपर्क कर सकते हैं. टेंट सिटी तीर्थ यात्रियों के लिए हर एक सुविधा को ध्यान में रखकर उस के अनुरूप तैयार किया गया है.

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संध्या के समय यहां भजन कीर्तन का भी तीर्थयात्री भरपूर आनंद ले रहे हैं. नि:शुल्क भोजन का भी लाभ हर संध्या में उठा रहे हैं. टेंट सिटी में तीर्थ यात्रियों के लिए पीने के लिए गंगा का पानी भी दिया जा रहा है. डीएम ने कहा कि टेंट सिटी में इस बार 2500 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है. ठहरे हुए यात्रियों से फीडबैक लगातार लिया जा रहा है. लोग काफी खुश नजर आ रहे हैं. व्यवस्थाओं से काफी संतुष्ट नजर आ रहे हैं.टेंट सिटी में एक अक्तूबर रात नौ बजे से दो अक्तूबर की अहले सुबह छह बजे तक कुल 1282 यात्री ने ठहरे थे. इसमें टेंट पंडाल संख्या एक में 295 यात्री, पंडाल संख्या दो में 280 यात्री, पंडाल संख्या तीन में 210 यात्री व पंडाल संख्या चार में 433 तीर्थ यात्री ठहरे हैं.

पितृपक्ष के तृतीया को बोधगया स्थित पिंडवेदी धर्मारण्य व मतंगवापी में पिंडदान कर पिंडदानियों ने अपने-अपने पितरों की आत्मा को मुक्ति दिलाने की कामना की. इससे पहले ज्यादातर पिंडदानियों ने मुहाने नदी के कछार पर स्थित सरस्वती मंदिर के पास नदी में तर्पण किया. सोमवार को धर्मारण्य व मतंगवापी में लगभग 30 हजार से ज्यादा पिंडदानियों ने पिंडदान किया व इस दौरान धर्मारण्य स्थित यज्ञ कूप में पिंड अर्पित कर अपने पितरों की आत्मा की शांति की कामना की व पास स्थित प्रेत कूप में नारियल व अन्य सामग्री अर्पित कर मृतकों की आत्मा को प्रेत बाधा से मुक्ति दिलायी. धर्मारण्य मंदिर परिसर के अलावा आसपास के मैदान में भी पिंछान का विधान पूरा किया गया, जबकि पास में प्रवाहित मुहाने नदी में पिंडदानियों ने तर्पण किया. इसी तरह मतंगवापी में मंदिर परिसर के साथ ही बाहरी चबूतरे पर पिंडदान की प्रक्रिया पूरी की गयी.

यहां स्थित सरोवर में पिंडदानियों ने तर्पण किया व पिंडदान की प्रक्रिया भी पूरी की गयी. इसके साथ ही सरस्वती मंदिर परिसर में भी पिंडदान के साथ नदी में प्रवाहित तेज जलधारा में तर्पण की प्रक्रिया पूरी की गयी. धर्मारण्य मंदिर में कर्मकांड करा रहे आचार्यों ने बताया कि महाभारत युद्ध के बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां यज्ञ किया था व उतरा के गर्भ में मृत हुए अभिमन्यु के पुत्र जो कि बाद में राजा परीक्षित के नाम से जाने गये, उनके प्रेतबाधा व पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने पिंडदान व त्रिपिंडी श्राद्ध भी किया था. बताया गया कि धर्मारण्य में अपने पितरों व परिजनों की आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करने का विधान है. पितृपक्ष के अलावा यहां पूरे वर्ष लोग त्रिपिंडी श्राद्ध करने पहुंचते हैं.

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